रामायण के ये मुख्य पात्र, जिन्होंने महाभारत में भी निभाई है महत्वपूर्ण भूमिका

Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Dec, 2017 04:41 PM

characters of ramayana who have played important role in the mahabharata

हम सब रामायण के सभी पात्रों से जरूर वाकिफ होंगे लेकिन हम में  से शायद ही किसी को पता हो कि इस महाकाव्य में निभाए गए उन सभी पात्रों ने महाभारत में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

हम सब रामायण के सभी पात्रों से जरूर वाकिफ होंगे लेकिन हम में  से शायद ही किसी को पता हो कि इस महाकाव्य में निभाए गए उन सभी पात्रों ने महाभारत में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आईए जानतें हैं उन्हीं पौराणिक पात्रों के बारे में-

 

हनुमानजी
रामायण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भगवान हनुमान महाभारत में महाबली भीम से पांडव के वनवास के समय मिले थे। कई जगह तो यह भी कहा गया है कि भीम और हनुमान दोनों भाई हैं क्योंकि भीम और हनुमान दोनी ही पवन देव के पुत्र थे। 


 
परशुराम
अपने समय के सबसे बड़े ज्ञानी परशुराम को कौन नहीं जानता। माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों को पृथ्वी से नष्ट कर दिया था। रामायण में उनका वर्णन तब आता है जब राम सीता के स्वंयवर में शिव का धनुष तोड़ते है जबकि महाभारत में वो भीष्म के गुरु बनते है तथा एक वक्त भीष्म के साथ भयंकर युद्ध भी करते है। इसके अलावा वो महाभारत में कर्ण को भी ज्ञान देते है।


 
जाम्बवंत

रामायण में जाम्बवंत का वर्णन राम के प्रमुख सहयोगी के रूप में मिलता है। जाम्बवंत ही राम सेतु के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते है। जबकि महाभारत में जाम्बवंत, भगवान श्री कृष्ण के साथ युद्ध करते है तथा यह पता पड़ने पर की वो एक विष्णु अवतार है, अपनी बेटी जामवंती का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर देते है। 


 
मयासुर
बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा की रावण के ससुर यानी मंदोदरी के पिता मयासुर एक ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र थे। इन्होंने ही महाभारत में युधिष्ठिर के लिए सभाभवन का निर्माण किया जो मयसभा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी सभा के वैभव को देखकर दुर्योधन पांडवों से ईर्षा करने लगा था और कहीं न कहीं यही ईर्षा महाभारत में युद्ध का कारण बनी।

 

महर्षि दुर्वासा
हिंदुओं के एक महान ऋषि महर्षि दुर्वासा रामायण में एक बहुत ही बड़े भविष्यवक्ता थे। इन्होंने ही रघुवंश के भविष्य संबंधी बहुत सारी बातें राजा दशरथ को बताई थी। वहीं दूसरी तरफ महाभारत में भी पांडव के निर्वासन के समय महर्षि दुर्वासा द्रोपदी की परीक्षा लेने के लिए अपने दस हजार शिष्यों के साथ उनकी कुटिया में पंहुचें थे।

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