पितामह भीष्म की इस सीख को जीवन में उतारें, हो जाएंगे सुखी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Feb, 2018 05:32 PM

take this lesson of bhishma into life will be happy

महाभारत हिंदुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिंदू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ को हिंदू धर्म में पंचम वेद माना जाता है।

महाभारत हिंदुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिंदू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ को हिंदू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। वैसे तो इसके द्वारा व्यक्ति को बहुत सी सीखें मिलती हैं। लेकिन आज हम आपको भीष्म पितामह द्वारा पांडवों को दी गई एक एेसी सीख के बारे में बताएंगे, जिसे पांडवों ने अपने जीवन में उतार सुखी हो गए थे। 


ये बात उस समय की बात है कि जब धर्मयुद्ध अपने अंतिम चरण में था। भीष्म पितामह शैय्या पर लेटे जीवन की आखिरी क्षण गिन रहे थे। पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, वे सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह ज्ञान और जीवन संबंधित अनुभव से संपन्न हैं। इसलिए वे अपने भाइयों और पत्नी सहित उनके सामने पहुंचे और उनसे विनती की पितामह कि आप हमें जीवन के लिए उपयोगी ऐसी शिक्षा दें, जो हमेशा हमारा मार्गदर्शन करे। तब भीष्म ने बड़ा ही उपयोगी जीवन दर्शन समझाया।

उन्होंने कहा जब नदी समुद्र तक पहुंचती है, तो अपने जल के प्रवाह के साथ बड़े-बड़े वृक्षों को भी बहाकर ले जाती है। इस बात को समझाने के लिए उन्होंने एक प्रसंग सुनाया। पितामह कहते हैं कि एक दिन समुद्र ने नदी से प्रश्न किया। तुम्हारा जलप्रवाह इतना शक्तिशाली है कि उसमें बडे-बडे पेड़ भी बहकर आ जाते हैं। तुम पलभर में उन्हें कहां से कहां ले आती हो, लेकिन क्या कारण है कि छोटी व हल्की घास, कोमल बेलों और नम्र पौधों को बहाकर नहीं ला पाती। नदी का उत्तर था जब-जब मेरे जल का बहाव आता है, तब बेलें झुक जाती हैं और उसे रास्ता दे देती हैं। मगर पेड़ अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते, इसलिए मेरा प्रवाह उन्हें बहा ले आता है।

 

इस द्वारा भीष्म पितामह ने पांडवों को समझाया कि इस छोटे से उदाहरण से हमें सीखना चाहिए कि जीवन में हमेशा विनम्र रहें तभी व्यक्ति का अस्तित्त्व बना रहता है। सभी पांडवों ने भीष्म के इस उपदेश को ध्यान से सुनकर अपने आचरण में उतारा और सुखी हो गए।

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