तुलसी व रुद्राक्ष की माला पहनकर यहां व्रत करने वाले की हर मनोकामना होती है पूरी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Feb, 2018 04:14 PM

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केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 कि.मी दूरी पर पंपा, से चार कि.मी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग 1000 मीटर की ऊंचाई पर सबरीमाला मंदिर स्थित है।

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 कि.मी दूरी पर पंपा, से चार कि.मी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग 1000 मीटर की ऊंचाई पर सबरीमाला मंदिर स्थित है। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।


वास्तव में यह स्थान सह्याद्रि पर्वतमाला से घिरे हुए पथनाथिटा जिले में स्थित है। पंपा से सबरीमाला तक पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह रास्ता पांच किलोमीटर लंबा है।


यहां हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं क्योंकि बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। यह मंदिर  भगवान अयप्पा को समर्पित है। भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसलिए उस दिन यहां सबसे ज्यादा भक्त पहुंचते हैं।


वहीं, आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता प्रचलित है कि भगवान अयप्पा कि ब्रह्मचारी थे, इसलिए इनके मंदिर में महिलाओं का आना वर्जित है। 
 

कौन थे अयप्पा
पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा था। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का प्रमुख तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
 

क्या है खास
यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। पहली पांच सीढ़ियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है, इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है व अगली तीन सीढ़ियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है। 
 


यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। इस पोटली में नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीजें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। मान्यता अनुसार यहां तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

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