Edited By ,Updated: 30 Sep, 2015 01:26 PM
भगवान श्री चैतन्य के बड़े भाई श्री विश्वरूप जी एक बार अपने पिता जी श्री जगन्नाथ मिश्र जी के साथ विद्वानों की एक सभा में गए।
भगवान श्री चैतन्य के बड़े भाई श्री विश्वरूप जी एक बार अपने पिता जी श्री जगन्नाथ मिश्र जी के साथ विद्वानों की एक सभा में गए।
वहां पर आप से एक भट्टाचार्य ब्राह्मण ने पूछा, "क्या पढ़ते हो बालक?"
आपने कहा, "कुछ-कुछ सब में पढ़ा हूं। "
श्री जगन्नाथ मिश्र जी को अपने पुत्र का यह उत्तर ठीक नहीं लगा। उनको लगा उनके पुत्र ने अहंकार वश ऐसा उत्तर दिया है इसलिए वे वहां से उठ कर चले गए।
श्री विश्वरूप जी पिता जी के पीछे-पीछे चल दिए व पिता जी की बात भी सुनते रहे।
कुछ समय बाद आप फिर उस सभा में गए। सभी आपको प्रश्न सूचक दृष्टि से देखने लगे। आपने मुस्कुराते हुए सभी को संबोधित करते हुए कहा, "हमारे पिता जी हमसे कुछ नाराज़ हो गए। आप हम से कुछ प्रश्न कर लेते तो शायद ऐसा नहीं होता। कृपया आप हमसे प्रश्न पूछिए।"
तब एक विद्वान भट्टाचार्य जी ने कहा, "आज तक तुमने जो अध्ययन किया है, उसके बारे में ही कुछ कहो।"
आपने कुछ सूत्रों की व्याख्या की।
सभी ने कहा, "यह बिल्कुल ठीक व्याख्या है।"
आपने मुस्कुराते हुए कहा, "यह व्याख्या ठीक नहीं है।"
आपने प्रमाण सहित उन व्याख्यायों को गलत साबित कर दिया। तब आपने तीन अलग-अलग ढंग से उन्हीं सूत्रों की व्याख्या की। फिर उनका तीन बार खंडन भी कर दिया। सभी विद्वानों ने ऐसा चमत्कार देख दांतों तले ऊंगलियां दबा लीं।
भगवान की मोहिनी माया के कारण कोई नहीं जान पाया कि श्री विश्वरूप जी भगवान हैं।
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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