Edited By ,Updated: 01 Oct, 2015 04:24 PM
एक सेठ जी थे जिनके पास काफी दौलत थी। सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी परंतु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति
एक सेठ जी थे जिनके पास काफी दौलत थी। सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी परंतु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया, जिससे सब धन समाप्त हो गया। बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?
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सेठ जी ने कहा कि ‘‘जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जाएंगे...।’’
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गए थे कि तभी उनका दामाद घर आ गया। सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डुओं में अर्शफियां रखी दी जाएं।
यह सोच कर सास ने लड्डुओं के बीच में अर्शफियां दबा कर रख दीं और दामाद को टिक्का लगा कर विदा करते समय पांच किलो शुद्ध देसी घी के लड्डू, जिनमें अशर्फियां थीं, दिए। दामाद लड्डू लेकर घर से चला। दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाए क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिए जाएं और दामाद ने वह लड्डुओं का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डाल कर चला गया।
उधर सेठ जी बाहर से आए तो उन्होंने सोचा घर के लिए मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलूं और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे, मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापस बेच दिया। सेठ जी लड्डू लेकर घर आए। सेठानी ने जब लड्डुओं का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोड़ कर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया।
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफियां छिपाने की बात कह डाली। सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंने पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा। देखा मोहरें न तो दामाद के भाग्य में थीं और न ही मिठाई वाले के भाग्य में इसलिए कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा। इसीलिए ईश्वर जितना दे उसी में संतोष करो।