जैसी कृपा श्रीराम ने हनुमान जी पर की वैसी आप पर भी हो सकती है, करें कुछ ऐसा

Edited By ,Updated: 05 Oct, 2015 10:11 AM

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तमाम जीव भगवान की तटस्था शक्ति के अंश हैं, इनका भगवान से भेद-अभेद संबंध है तथा ये भगवान के नित्य दास हैं। भगवान की नित्य सेवा करना ही इनका स्वरुप-धर्म है।

तमाम जीव भगवान की तटस्था शक्ति के अंश हैं, इनका भगवान से भेद-अभेद संबंध है तथा ये भगवान के नित्य दास हैं। भगवान की नित्य सेवा करना ही इनका स्वरुप-धर्म है। बहुत बार हम लोग कहते हैं कि हम भगवान के दास हैं परंतु कार्य में उल्टा करते हैं। जब दास हैं तो दास वाले काम भी करने चाहिए। दास के रुप में हम बजरंग जी को देखते हैं ।                                                                                                                                        

जो भगवान राम कहते हैं तुरंत उस आज्ञा का पालन करते हैं फोकट में भगवान की कृपा नहीं मिलती। उसके लिए कुछ करना पडता है। भगवान पक्षपाती नहीं हैं कि बजरंग जी पर कृपा करेंगे, आप पर नहीं। हम मुख से कहते हैं कि हम भगवान के नित्य दास हैं और भगवद-सेवा नहीं करते परंतु हनुमान जी में ऐसा कपट नहीं है। वे अपने आपको राम का दास कहते हैं तो जीवन में भी राम का दासत्व करते हैं। ऐसा नहीं कि जब सेव्य पर कोई मुसीबत देखी तो भाग गए। लीला में जब राम पर विपत्तियां आई तो क्या हनुमान जी राम जी को छोडकर भाग गए।

मुसीबत के समय जो साथ छोडकर भाग जाए, उसे सेवक नहीं कहा जाएगा, वह तो सुविधावादी है। कहते हैं कि जीव यदि वास्तव में विश्वास करे कि वह कृष्ण का नित्य दास है, कृष्ण से उसका नित्य संबंध है तो उसके पास दुख नहीं आ सकता। जब हम अपना संंबंध दुखमय संसार से देखेंगे, दुख-पर-दुख देने वाली माया के संबंध को ही अपना असली संबंध समझेंगे, संसार की नाशवान वस्तुओं से तीव्र आसक्त्ति बनाए रखेंगे तो दुख अवश्यभावी है ही परंतु जब आप समझेंगे कि मैं कृष्ण का नित्य दास हूं ,अखिल-रसामृत-मूर्ति,सच्चिदानन्द-स्वरुप जो कृष्ण हैं वे ही तमाम यज्ञों के भोक्त्ता व प्रभु हैं, वे तमाम चिद्-अचिद् जगत के मालिक हैं और मैं उनका नित्यदास हूं, तो दुख भला कहां से आएगा। 

श्री बी.एस. निष्किंचन जी महाराज

 

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