केवल हनुमान जी देते हैं बल, बुद्धि अौर विद्या, जानिए क्यों?

Edited By ,Updated: 22 Aug, 2016 10:34 AM

hanuman ji

समस्त वेद शास्त्रों का सार राम हैं, वही तारक प्रकाश स्वरूप हैं। आत्म ज्ञान की प्राप्ती के लिए श्री हनुमान जी का स्मरण किया जाता है। बल, बुद्धि, विद्या तीनों ही साधना के अंग हैं।

समस्त वेद शास्त्रों का सार राम हैं, वही तारक प्रकाश स्वरूप हैं। आत्म ज्ञान की प्राप्ती के लिए श्री हनुमान जी का स्मरण किया जाता है। बल, बुद्धि, विद्या तीनों ही साधना के अंग हैं। एक की भी कमी हो तो वह साधना उद्धेश्य से दूर ले जाती है। क्या आप जानते हैं हनुमान जी से इन तीनों को क्यों मांगा जाता है क्योंकि

1 बल: निर्बल, कायर जातक साधना का अधिकारी नहीं है।

 

2 बुद्धि: बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए।

 

3 विद्या: विद्या, ज्ञान और विज्ञान से माया ग्रन्थि खुल जाती है।

तो आज के साधकों को इन तीनों की प्राप्ति के लिए हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए। रामचरितमानस में प्रभु श्री राम जब ऋषि वाल्मीकि आश्रम में पधारे तो तीन चीजों को देखा वन, सर, सैल। साधक को इनके अनुरूप साधना करनी चाहिए।

1 वन के समान विद्या होनी चाहिए।

2 सर के समान बुद्धि होनी चाहिए।

3 सैल के समान बल होना चाहिए।

साधक की विद्या भी परोपकारी और बांटने वाली होनी चाहिए। उसमें भावों का कोई भेद भाव न हो। सरोवर का जल स्वच्छ निर्मल होता है वैसे ही साधक की बुद्धि भी स्वच्छ निर्मल और प्रदुषण रहित होनी चाहिए। सैल के समान बल हो जैसे सैल धूप और जल सब सहन करता है। साधक को सहनशील होना चाहिेए तभी बल स्थिर रहेगा। हनुमान जी तीनों को प्रदान करने वाले हैं। इन्होंने तीनों का दर्शन अपने चरित्र में करवाया है।

 

जब श्री राम की आज्ञा पाकर हनुमान जी वानरों की टुकड़ी संग दक्षिण दिशा में पंहुचे तो उन्हें अपनी बल, बुद्धि विद्या का स्मरण नहीं था। वह चुप बैठे थे। तब जाम्बवंत जी ने हनुमान जी को स्मरण करवाया की आपका अवतार राम काज के लिए हुआ है। उठिए पवन पुत्र आपके अंदर जो असीम शक्तियां है उनका प्रयोग करें।

 

हनुमान जी जय श्री राम बोलते हुए उठे और विराट रूप धारण कर मुद्रिका ले कर  माता सिया की खोज खबर लेने चल पड़े। समुद्र के ऊपर से उड़कर श्री हनुमान जी जा रहे थे तभी देवताओं के संकेत पर सर्पों की माता सुरसा हनुमान जी के मार्ग में आई और बोली, "आज मुझे भोजन प्राप्त हुआ है।"

 

हनुमान जी बोले मां," रामकाज के बिना मुझे समय नहीं है। मैं अपने कार्य को पूरा कर लूं तब आप मुझे पा लेना। इस समय अन्य कार्य के लिए समय नहीं है मेरे पास।"

 

सूरसा मानी नहीं हनुमान जी को खाने के लिए मुंह फैलाया तब हनुमान ने अपने शरीर को दोगुना कर लिया। सुरसा ने तुरंत सौ योजन का मुख किया हनुमान जी ने छोटा सा रूप किया और सुरसा के मुख के अंदर जाकर बाहर लौट आए।

 

हनुमान जी बोले," मां आप तो खाती ही नहीं है मेरा क्या दोष है?"

 

सुरसा हनुमान की बुद्धि कौशल को देखकर खुश हुई। केसरी नंदन ने अपनी बुद्धि का परिचय दिया।

 

समुद्र के जल में एक सिंहिका नामक राक्षसी रहती थी। जो आकाश में उड़ते पक्षियों को छाया के द्वारा पकड़ कर खा लेती थी।  हनुमान जी की छाया को उसने पकड़ा तो अपने बल से हनुमान जी ने उसका उद्धार किया।

 

हुनमान जी जब लंका में पंहुचे तो अपनी विद्या से लघु रूप लेकर प्रवेश करने के लिए चले तो लंका द्वार पर पहरा लगा रही लंकिनी राक्षसी ने देखा कि कौन मेरा निरादर कर के अंदर जा रहा है? यहां के चोर तो मेरा आहार होते हैं।

 

वह बोली,"सुनो! तुम मेरे भोजन हो।"

 

तुरंत हनुमान जी ने ज्ञान-विज्ञान का परिचय देकर विद्या का प्रयोग किया और विशाल स्वरूप ले लिया। लंकिनी हैरानी से ऊपर की ओर देखने लगी। हनुमान जी ने एक घूंसा मारा मुख से खून निकला। भूमि पर गिरी तो तुरंत पहचान गई। हनुमान जी की शरण को ग्रहण किया। यहां विद्या का प्रयोग किया गया है।

 

हुनमान जी बल, बुद्धि विद्या की खान हैं। यही हमें प्रदान करें जिससे हमारी माया की ग्रंथी खुल जाए। श्री राम ने हनुमान जी को अपनी कला प्रदान की। इसी कला से हमारे कलेशों को दूर करें, विकार युक्त करें। विकार से समस्त पाप ताप आते हैं। उन्हें दूर करें।   

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