Edited By ,Updated: 11 Feb, 2016 03:27 PM
सृष्टि के सभी चराचरों में मानव श्रेष्ठ है क्योंकि केवल उसी में चिंतन करने की क्षमता है और उचित-अनुचित का निर्णय करने की काबिलियत। अन्य प्राणी किसी काम को करने से पूर्व उसके परिणाम के बारे में सोच-विचार करने में असमर्थ हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब...
सृष्टि के सभी चराचरों में मानव श्रेष्ठ है क्योंकि केवल उसी में चिंतन करने की क्षमता है और उचित-अनुचित का निर्णय करने की काबिलियत। अन्य प्राणी किसी काम को करने से पूर्व उसके परिणाम के बारे में सोच-विचार करने में असमर्थ हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब पढ़े-लिखे इंसान की व्यवहार-अकुशलता उन्हें श्रेष्ठ मानव की श्रेणी से नीचे ले आती है। समाज में ऐसे तमाम लोग हैं जो सामान्य व्यक्ति से जब बड़े पद या ओहदे पर आसीन हो जाते हैं तो अहंकारी हो जाते हैं। शोहरत के कारण उनका मृदु स्वभाव छिन जाता है।
आपके व्यवहार में 70 प्रतिशत प्रभाव माहौल का पड़ता है। अगर हमारे आसपास ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो आत्ममुग्ध, संकीर्ण और मेलजोल की भावना से दूर होते हैं, तो हम भी अपने आप में सीमित हो जाएंगे। दुर्गुण जल्दी फैलता है। ईर्ष्या, द्वेष, बदले की भावना, तिरस्कार भाव आदि तो अच्छे-भले लोगों में भी आ जाता है, यदि वे नैतिक मूल्यों की महत्ता नहीं जानते हैं।
स्वाति की एक बूंद केले में जब पड़ती है तो वह कपूर बन जाती है, सीप में पड़ कर मोती और सर्प के मुख में पड़ कर विष बन जाती है। यानी जैसी संगति होगी, वैसा ही फल मिलेगा। श्रेष्ठजनों के साथ मित्रता कर उनके आचरण से दुर्जन भी सज्जन बन सकता है। खरबूजे को देखकर जैसे खरबूजा रंग बदलता है, ठीक वैसे ही व्यक्ति पर संगति का प्रभाव पड़ता है। उत्तम मनुष्यों का संपर्क व्यक्ति को गुणवान बनाता है।
अगर किसी अनुचित के साथ से हमारा नैतिक पतन और व्यवहार में रूखापन आता है तो वैसे व्यक्ति का साथ तुरंत छोड़ देना चाहिए। आज समाज में जो अच्छाइयां और बुराइयां नजर आ रही हैं, उनके पीछे एक कारण संगति का प्रभाव है। अगर संगति अच्छी है तो व्यक्ति नौतिक मूल्यों पर अमल करता है।