विचार करें! आपने जीवन में केवल त्याग ही किया है या महात्याग करने का भी है दम

Edited By ,Updated: 20 Aug, 2016 01:12 PM

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श्री चैतन्य गौड़ियां मठ के माहात्माओं के आचरण, खानपान व भजन की महिमा सुनकर एक मारवाड़ी सज्जन मठ में आए। भगवान की सेवा में कुछ द्रव्य व

श्री चैतन्य गौड़ियां मठ के माहात्माओं के आचरण, खानपान व भजन की महिमा सुनकर एक मारवाड़ी सज्जन मठ में आए। भगवान की सेवा में कुछ द्रव्य व रूपए अर्पण करते हुए तथा महात्मा को प्रणाम करते हुए कहने लगे, "महात्मा जी! मैंने आपके मठ-मंदिर के महात्माओं की बहुत प्रशंसा सुनी, वास्तव में आप लोग बहुत बड़े त्यागी हैं।"

 

उस सज्जन की बात सुन कर महात्मा जी मुस्कुराए और कहने लगे, "नहीं, हम लोग त्यागी नहीं हैं। त्यागी तो आप हैं।"

 

महात्मा जी की बात सुन कर वह व्यक्ति कहने लगा,"महात्मा जी! आप मेरा उपहास कर रहे हैं, मैं तो संसार में फंसा हुआ एक गृहस्थी हूं, त्यागी तो आप हैं।"

 

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए फिर उसी अंदाज में कहा,"भाई! हम कहां के त्यागी, हम से बड़े त्यागी आप हैं।"

 

महात्मा जी की बात सुन कर सज्जन आश्चर्य में पड़ गए और कहने लगे, "महाराज जी! आप मेरा उपहास बार-बार क्यों करते हैं? यदि सच पूछें तो संसार में फंसा, मैं एक ऐसा प्राणी हूं जिसे दुनियां के धंधों से फुर्सत ही नहीं है, भगवान को याद करने की।"

 

महाराज जी ने कहा, "जो भी हो वास्तव में आप हो महात्यागी।"

 

(मारवाड़ी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये चक्कर क्या है? उसने सोचा कि मैं तो संसार में फंसा हुआ हूं, मैं भला महात्यागी कहां से आया? त्यागी तो महाराज जी हैं, जिन्होंने इस दुनियां के भोगों को लात मार दी और हर समय भगवान के भजन में मस्त रहतें हैं) 

 

मारवाड़ी सज्जन ने कहा,"महात्मा जी, मैं तो विषयी हूं पर आप मुझे बार-बार त्यागी क्यों कह रहें है। जबकि त्यागी तो आप हैं।"

 

उक्त मारवाड़ी के सवाल का उत्तर देते हुए महात्मा जी ने कहा, "देखो, हम लोग तो छोटे त्यागी हैं क्योंकि हमने तो उन विषय-भोगों को त्यागा है जो कि क्षणिक हैं, नाशवान हैं व जीवों को दु:ख देने वाले हैं जबकि आपने सबसे महान् वस्तु भगवान का एंव सत्संग का परित्याग किया हुआ है इसलिए आप ही महात्यागी हैं, हम नहीं। हम तो तुच्छ संसारिक वस्तुओं को ही त्याग पाए हैं इसलिए हम तो छोटे त्यागी हैं जबकि आपने उस महान वस्तु का ही त्याग कर दिया है इसलिए आप ही महात्यागी हैं।

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से

श्री बी.एस.निष्किंचन जी महाराज 

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