कार्तिक महीने में करेंगे यह पाठ, लोक परलोक में भोगेंगे आनंद

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2016 12:28 PM

kartik gajendra moksha

कार्तिक का महीना उनके लिए आज से आरंभ हो गया है जो एकादशी से किसी भी मास के आरम्भ की गणना करते हैं, वे अगली एकादशी तक ही

कार्तिक का महीना उनके लिए आज से आरंभ हो गया है जो एकादशी से किसी भी मास के आरम्भ की गणना करते हैं, वे अगली एकादशी तक ही पूरा मास मानते हैं और जो लोग संक्रांति के हिसाब से चलते हैं वह सूर्य और जो चन्द्रमा के अनुसार चलते हैं वे पूर्णिमा की गणना के अनुसार मासिक नियम का पालन करते हैं। प्रत्येक मास सूर्य एवं चन्द्रमा के हिसाब से शुरू होता है। 


वैष्णवों का मानना है की कार्तिक मास में गजेन्द्र मोक्ष का पाठ अवश्य करना चाहिए। जो व्यक्ति सूर्य उदय होने से पहले इस स्त्रोत का पाठ करता है, संसार में रहकर उसको कभी किसी चीज का अभाव नहीं रहता और मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्त होती है। 


अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रधानाचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी कहते हैं की गजेन्द्र की तरह ये प्राणी भी माया के चंगुल से छूटने की कितनी भी कोशिश करेगा, वो सब व्यर्थ ही जाएंगी। एकमात्र भगवान के प्रति शरणागति ही जीव को माया के चंगुल से बचा सकती है। इस प्रसंग को सुनाते हुए महाराज श्री एक और बात बताते हैं की भगवान प्राणी की दुनियावी विद्या, उसकी सुंदरता, उसकी जाति या उसके धन-दौलत की ओर ध्यान नहीं देते। वे केवलमात्र समर्पण को ही देखते हैं।


त्रिकूट पर्वत के जंगलों में जहां देवताओं के अनेक बगीचे थे, घाटियां थीं, झीलें थीं, हरे-भरे वृक्ष थे, फूलों से भरे सरोवर थे, वहां एक हाथी रहता था जो बहुत बलशाली था। उससे वन के सभी पशु डरते थे। जब वह अपनी हथनियों के साथ चलता था तो अन्य हाथी, बाघ, शेर, सर्प, भालु आदि सभी दूर भाग जाते थे। उसको अपनी ताकत का बड़ा घमण्ड था, वो जंगल में रास्ता देखकर नहीं चलता था, सामने जो भी पेड़-झाड़ी आता, उसे रौंदते हुए चलता था। वह हाथियों का राजा, गजपति हमेशा झुण्ड में ही चलता था।

 
एक बार गजपति गजेन्द्र को प्यास लगी। वह अपने साथियों के साथ एक विशाल सरोवर के तट पर आया और पानी पीने के लिए सरोवर में घुस गया। वह वहां नहाने लगा और पानी पीने लगा। उसके परिवार ने भी स्नान किया और जल में खेले।  सभी जब जल से बाहर जाने लगे तो अचानक एक घड़ियाल ने हाथी पर हमला कर दिया। उसने पानी के अंदर रहते हुए हाथी का पैर अपने मुंह में जकड़ लिया।

 
गजेन्द्र ताकतवर था, उसने झटका मार के अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की।  उसके साथियोंं ने भी उसको बचाने की कोशिश की परंतु सफल नहीं हुए। सारे हाथी पानी से बाहर आ गए। गजेन्द्र अकेला ही मगरमच्छ से जूझता रहा। काफी समय हो जाने पर एक-एक करके सारे हाथी वहां से जाने लगे। गजेन्द्र अकेला पड़ गया। साथियों के चले जाने पर तथा अपनी बहुत कोशिशों के बाद भी अपने आप को मगरमच्छ के चंगुल से न बचा पाने के कारण गजेन्द्र हताश हो गया। अपने आप को मौत के मुंह में जाता देख लाचार गजेन्द्र को पिछले जन्म के भजन के प्रभाव से भगवान का स्मरण हो आया। उसे वो मंत्र याद आ गए जिनसे वो पिछले जन्म में भगवान की स्तुति करता था।
 
मन ही मन उस स्तुति को याद करते हुए गजेन्द्र ने अपने आप को पूरी तरह से भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। समर्पण के प्रभाव से शरणागत वत्सल भगवान तुरंत वहां पर प्रकट हो गए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उस ग्राह का सर धड़ से अलग कर दिया और अपने गज को बचा लिया। 


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