गंगा नदी के दर्शन तो कहीं भी हो सकते हैं, गंगोत्री जाने की आवश्यकता क्यों

Edited By ,Updated: 21 May, 2016 08:24 AM

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गंगा नदी के किनारे एक गुरु की कुटिया थी। एक शाम वे अपने शिष्यों के साथ धार्मिक स्थलों के बारे में विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी एक शिष्य बोला," गुरु जी! क्यों

गंगा नदी के किनारे एक गुरु की कुटिया थी। एक शाम वे अपने शिष्यों के साथ धार्मिक स्थलों के बारे में विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी एक शिष्य बोला," गुरु जी!  क्यों न इस बार गर्मियों में गंगोत्री, यमुनोत्री के दर्शन करने चलें। आपके साथ जाने का अलग ही आनंद होता है। दर्शन के साथ-साथ उनके महत्व का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है।"

 

दूसरे शिष्य ने कहा," गुरु जी! तो सदा कहते हैं कि परमात्मा का वास कण-कण में है भगवान आप में भी अौर मुझ में भी है। गंगा नदी तो यहां भी बहती हैं फिर उनके दर्शन करने गंगोत्री, यमुनोत्री जाकर इतना समय क्यों व्यर्थ करें। कहावत भी है मन चंगा तो कठोती में गंगा" 

 

शिष्य की बात सुनकर गुरु जी कुछ समय मौन रहने के बाद बोले,"धरती में सभी जगह पानी है, हमें वहां से जल प्राप्त हो सकता है फिर हमें कुएं, तालाब, बावड़ी बनाने की क्या आवश्यकता है?"

 

कुछ शिष्य एक स्वर में बोले,"ये कैसे संभव हो सकता है? जब प्यास लगी हो तो किस वक्त व्यक्ति कुंआ खोदेगा, कब उसमें से पानी निकलेगा अौर कब उसे पीकर प्यास बुझाएगा?"

 

गुरु जी ने कहा,"यही आपके सवालों व उत्सुकता का उत्तर है। धरती में जल होने पर भी हमें प्यास बुझाने वही जाना पड़ता है जहां जल संचित करके रखा गया हो। उसी तरह परमात्मा सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापक हैं, तीर्थ स्थल, कुंएं अौर बावड़ी की तरह उस सूक्ष्म शक्ति के प्रत्यक्ष स्थल हैं।"

 

किसी महान आत्मा की साधना और मेहनत से त्रिकालदर्शी सोच से सूक्ष्म-शक्ति इन स्थानों पर प्रकट होकर कुदरत के विशाल आंचल में समा गई। जब हमें अपनी आत्मशक्ति को जागृत करने की अावश्यकता अनुभव करते हैं तो इन पवित्र स्थलों पर जाकर अपनी विलीन आत्म-शक्ति को अर्जित करते हैं। अन्य शब्दों में कहा जाए तो व्यक्ति की संकल्प-शक्ति को यहीं से आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है अौर हमें प्यास लगने पर कुआं, बावड़ी खोदने की आवश्यकता नहीं होती।

 

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