ऐसी महान आत्माअों के कारण ‘योग’ पूरे विश्व को कर रहा है आकर्षित

Edited By ,Updated: 11 Oct, 2016 04:09 PM

swami ram pyara ji maharaj yoga

भारत वर्ष में ‘योग’ का विशिष्ट स्थान रहा है। ‘योग’ पूरे विश्व को आकर्षित कर रहा है तो इसका श्रेय उन महान आत्माओं को जाता है जिन्होंने

भारत वर्ष में ‘योग’ का विशिष्ट स्थान रहा है। ‘योग’ पूरे विश्व को आकर्षित कर रहा है तो इसका श्रेय उन महान आत्माओं को जाता है जिन्होंने इसके प्रचार-प्रसार में अपना पूर्ण जीवन लगा दिया। ऐसी ही शख्सियतों में से एक हैं स्वामी राम प्यारा जी। स्वामी जी ने योग को क्रियात्मक रूप से जीवन में अपनाया और जन साधारण तक इसे पहुंचाने के लिए जीवन भर सक्रिय रहे।

 

आडम्बर से परे, स्वभाव से सरल, व्यवहार में विनम्र वह निरंतर योग साधन में लीन रहते हैं। इस महान योगी का जन्म 18 मई 1916 को निक्कू नंगल नामक ग्राम, जिला रोपड़ में हुआ। आपके पिता का नाम ठाकुर विजय सिंह एवं माता का नाम कपूरी देवी था। मात्र 5 वर्ष की आयु तक आते-आते इनमें प्रभु भक्ति की ओर आकर्षण बढऩे लगा और किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते आप प्रभु चिंतन व गुणगान में समय बिताने लगे। 

 

बड़े-बुजुर्गों से सुना कि ‘गुरु बिना गति नहीं’ तो आप गुरु को पाने के लिए आतुर हो उठे। इसी दौरान आपके पिता जी का देहांत हो गया और घर का बड़ा होने के नाते घर की जिम्मेदारी भी आप पर आन पड़ी। इसी सिलसिले में आप नौकरी की तलाश में अमृतसर आए और मात्र 5 रुपए की नौकरी से शुरूआत की। 

 

एक दिन सहसा अपने परिचित की सहायता से योग की महान विभूति योगीराज मुलख राज जी से संपर्क हुआ तो मानो खोई हुई मंजिल मिल गई। यही वह मुकाम था जहां से योग यात्रा शुरू हुई। योगेश्वर मुलख राज जी उन दिनों लोक कल्याण के लिए योग साधना आश्रम, छहर्टा का संचालन करते थे। 

 

अत: स्वामी राम प्यारा जी गुरु जी की सेवा में रह कर योग साधना सीखते तथा पारिवारिक दायित्वों हेतु दिन में छहर्टा से 6 मील दूर अमृतसर में नौकरी करते। 3 नवम्बर 1960 को योगेश्वर मुलख राज जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात स्वामी राम प्यारा जी ने आश्रम का कार्यभार स्वतंत्र रूप से संभाला। उनका लक्ष्य था योग को घर-घर पहुंचाना। 

 

उद्देश्य पूर्ति के लिए उन्होंने लगभग 30,000 योग शिविरों का आयोजन किया तथा असंख्य रोगियों को योग आसनों व क्रियाओं के माध्यम से निरोगता प्रदान की। इसके साथ-साथ योग द्वारा आध्यात्मिक मार्ग का रास्ता भी प्रशस्त किया।

 

यही नहीं, योग के प्रचार-प्रसार हेतु आपने अनेक स्थानों पर योग आश्रमों की स्थापना की जिनमें अमृतसर, जालंधर, जालंधर छावनी, लुधियाना, नंगल, फिरोजपुर, अबोहर, जम्मू व साहिबाबाद मुख्य हैं। 4 दिसम्बर 2012 को स्वामी राम प्यारा जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात स्वामी गुरबख्श राय जी उपरोक्त आश्रमों का संचालन करके योग की अलख को घर-घर पहुंचा रहे हैं।  
 —विजय कपूर
 

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