चैंपियंस का दर्द: पिता के अंतिम संस्‍कार में नहीं जा पाए गोलकीपर, भावुक हुए कोच

Edited By ,Updated: 19 Dec, 2016 04:57 PM

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ग्यारह बरस पहले रोटरडम में कांसे का तमगा नहीं जीत पाने की टीस उनके दिल में नासूर की तरह घर कर गई थी और अपनी सरजमीं पर घरेलू दर्शकों के सामने इस जख्म को भरने के बाद कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके ।

नई दिल्ली: ग्यारह बरस पहले रोटरडम में कांसे का तमगा नहीं जीत पाने की टीस उनके दिल में नासूर की तरह घर कर गई थी और अपनी सरजमीं पर घरेलू दर्शकों के सामने इस जख्म को भरने के बाद कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके । 

हरेंद्र ने दो साल पहले ही संभाली थी टीम की कमान
भारत के फाइनल में प्रवेश के बाद जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा ,‘‘ यह मेरे अपने जख्म है और मैं टीम के साथ इसे नहीं बांटता। मैने खिलाडिय़ों को इतना ही कहा था कि हमें पदक जीतना है , रंग आप तय कर लो। रोटरडम में मिले जख्म मैं एक पल के लिए भी भूल नहीं सका था।’’ रोटरडम में कांस्य पदक के मुकाबले में स्पेन ने भारत को पेनल्टी शूट आउट में हराया था। अपने सोलह बरस के कोचिंग कैरियर में अपने जुनून और जज्बे के लिए मशहूर रहे हरेंद्र ने दो बरस पहले जब फिर जूनियर टीम की कमान संभाली, तभी से इस खिताब की तैयारी में जुट गए थे। उनका किरदार ‘चक दे इंडिया’ के कोच कबीर खान (शाहरूख खान) की याद दिलाता है जिसने अपने पर लगे कलंक को मिटाने के लिए एक युवा टीम की कमान संभाली और उसे विश्व चैम्पियन बना दिया। हरेंद्र ने खिलाडिय़ों में आत्मविश्वास और हार नहीं मानने का जज्बा भरा, लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि उन्होंने युवा टीम को व्यक्तिगत प्रदर्शन के दायरे से निकालकर एक टीम के रूप में जीतना सिखाया ।  
 

टीम के सात खिलाड़ी हैं ड्राइवर
जूनियर वल्र्‍ड कप जीतने वाली टीम के खिलाडिय़ों ने कड़ी मेहनत की। टीम के सैकंड गोलकीपर कृष्‍ण पाठक अपने पिता के अंतिम संस्‍कार में शामिल नहीं हो पाए क्‍योंकि उस समय टीम इंग्‍लैंड दौरे पर जा रहे थे। उनके पिता का कुछ दिन पहले निधन हो गया था। टीम के सात खिलाड़ी ड्राइवर हैं। इस टीम ने पिछले साल जूनियर एशिया कप जीता भी जीता था। साथ ही इसी साल स्‍पेन में चार देशों का टूर्नामेंट भी अपने नाम किया था। पिछले आठ साल में भारतीय हॉकी में काफी बदलाव हुए हैं। 2008 में भारतीय हॉकी टीम बीजिंग ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई नहीं कर पाई थी, लेकिन इस साल टीम ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। सीनियर हॉकी टीम इस समय दुनिया में छठे पायदान पर है।
 

विश्व कप जीतकर टीम ने रचा इतिहास
भारतीय जूनियर हॉकी टीम ने विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया है। भारत को इस जीत के लिए 15 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। फाइनल मुकाबले में बेल्जिम को मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में 2-1 से हराकर विश्व कप अपने नाम किया।  खास बात ये है कि भारतीय टीम में 10 खिलाड़ी अपने शहर के सुरजीत हाकी मैदान पर ही विकसित हुए हैं। टीम के सदस्य अमृतसर, पटियाला, हशियारपुर, जालंधर आदि शहरों से आकर यहां हाकी तकनीक सीखते हैं। ये खिलाड़ी सुरजीत हाकी एकेडमी के हैं। इन खिलाडिय़ों में टीम के कप्तान हरजीत सिंह, हरमनप्रीत सिंह, वरुण कुमार, कृष्णा पाठक, गुरिंदर सिंह, विक्रमजीत सिंह, मंदीप सिंह, सिमनंजीत सिंह, परविदंर सिंह और गुरजंट सिंह शामिल हैं।

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