Edited By ,Updated: 21 Dec, 2016 03:17 PM
भारतीय हॉकी के लिए वर्ष 2016 मील का पत्थर बन गया और इस साल ने भारतीय हॉकी के सुनहरे दिनों को लौटा दिया।
नई दिल्ली: भारतीय हॉकी के लिए वर्ष 2016 मील का पत्थर बन गया और इस साल ने भारतीय हॉकी के सुनहरे दिनों को लौटा दिया। वर्षाें से इंतजार किया जा रहा था और हर साल यह सवाल पूछा जाता था कि भारतीय हॉकी के सुनहरे दिन कब लौटेंगे। 2016 में इस लंबे इंतजार को अपने आखिरी छह महीनों में खत्म किया। इन छह महीनों में भारतीय हॉकी ने वो उपलब्धियां हासिल कीं जो उसे पहले नहीं मिल पा रही थीं।
भारतीय पुरूष और महिला हॉकी टीमें एक साथ रियो ओलंपिक में खेलने उतरीं। इससे पहले भारतीय पुरूष सीनियर टीम ने एफआईएच चैंपियंस ट्रॉफी में पहली बार रजत पदक हासिल कर नया इतिहास बनाया। ओलंपिक के बाद भारतीय पुरूष और महिला टीमों ने एशियाई चैंपियंस ट्राफी के खिताबों पर कब्जा किया। भारत को साल की सबसे बड़ी उपलब्धि उस समय मिली जब उसकी जूनियर टीम ने लखनऊ में 15 साल के अंतराल के बाद पुरूष जूनियर विश्वकप हॉकी खिताब जीतकर सुनहरा इतिहास रचा।
युवा टीम ने वह कारनामा कर दिखाया जो सीनियर टीम ने 1975 में एकमात्र बार विश्वकप जीतकर किया था। भारतीय युवाओं ने 2001 में विश्वकप जीता था और उसके 15 वर्ष बाद फाइनल में बेल्जियम को 2-1 से हराकर फिर विश्वकप अपने नाम किया। भारत को मैदान में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशासनिक तौर पर भी बड़ी कामयाबी उस समय हासिल हुई जब हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरेंद्र ध्रुव बत्रा को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। बत्रा यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने।