‘मिजो मैसी’ के नाम से मशहूर हुआ कम उम्र का ये फुटबॉलर

Edited By ,Updated: 31 Jan, 2017 05:30 PM

mizo massey

पूर्वोत्तर राज्यों ने देश को बाईचुंग भूटिया जैसे कई दिग्गज फुटबाल सितारे...

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर राज्यों ने देश को बाईचुंग भूटिया जैसे कई दिग्गज फुटबाल सितारे दिए हैं और पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के लंगलेई के चांगटे लालचुंगनुंगा तो कम उम्र में ही अपने शानदार खेल से ‘मिजो मैसी’ के नाम से मशहूर हो गये हैं। पूर्वोत्तर में फुटबाल को आगे बढ़ाने की दिशा में टाटा ट्रस्ट्स काम कर रहा है जिसने कई अकादमियां खोली हैं जहां युवा फुटबालरों को उत्कृष्ट कोचों के दिशा निर्देशन में खेल की बारीकियां सिखाकर भविष्य के लिये तैयार किया जा रहा है। टाटा ग्रुप का वैसे भी भारत में खेलों से जुड़ाव 1924 के पेरिस ओलंपिक से बना हुआ है। टाटा ट्रस्ट्स की इस पहल में युवा खिलाडिय़ों को जर्मनी में छह वर्ष का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस सत्र के लिये 35 युवाओं का चयन किया गया है जो कोलकाता से जर्मनी के लिये रवाना हो गये हैं। इन 35 युवाओं में 15 वर्षीय लालचुंगनुंगा बेहद प्रतिभाशाली हैं। पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के लंगलेई के रहने वाले लालचुंगनुंगा ने महज नौ वर्ष की उम्र में ही फुटबाल खेलना शुरु कर दिया था। 

लालचुंगनुंगा अर्जेंटीना के दिग्गज खिलाड़ी लियोनल मैसी से बेहद प्रभावित हैं और अपने बैच में‘मिजो मैसी’के नाम से मशहूर हैं। लालचुंगनुंगा के पिता किसान हैं। लालचुंगनुंगा को उनके शानदार खेल की बदौलत वर्ष 2013 में अंडर-13 टूर्नामेंट में बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी के पुरस्कार से नवाजा गया था। उनका अंडर-14 भारतीय टीम में भी चयन हो चुका है। जर्मनी गये बैच में मिजोरम के ही 15 वर्षीय लालरामजैलवमा भी शामिल हैं। वह सेंटर बैक के रूप में खेलते हैं। उनके चाचा फुटबाल खिलाड़ी रहे हैं जिनसे प्रभावित होकर लालरामजैलवमा ने कम उम्र में ही फुटबाल खेलना शुरु कर दिया। उनके पिता स्कूल टीचर हैं। बैच में 15 वर्षीय राल्टे लालरिनपुईया मिजोरम के कोलासिब से हैं। उनके पिता भी फुटबालर रहे हैं और गोलकीपर की भूमिका में खेल चुकेे हैं। राल्टे ने महज सात वर्ष की उम्र में ही फुटबाल खेलना शुुरू कर दिया था। राल्टे की मां लड बैंक में काम करती हैं और पति से तलाक होने के बावजूद उन्होंने अपने बेटे को भरपूर समर्थन दिया। राल्टे ने कहा कि वह आज जिस मुकाम पर पहुंचे हैं उसके पीछे उनकी मां का अपार समर्थन और कड़ी मेहनत है।  

कोलकाता से रवाना हुये बैच में कोलासिब के ही 16 वर्षीय रामलुनचुंगा भी शामिल हैं। रामलुनचुंगा का बचपन से ही प्रोफेशनल बनने का सपना था और उन्होंने वर्ष 2014 में सुब्रतो कप में सबसे बहुमूल्य खिलाड़ी का पुरस्कार जीता था। रामलुनचुंगा बेहद सामान्य परिवार से हैं। उनके पिता खेती करते थे और अपने बेटे को फुटबालर बनाने के लिये उन्होंने कड़ी मेहनत की है। टाटा ट्रस्ट््स ऐसे ही युवा खिलाड़यिों को आगे लाने के अभियान में जुटा हुआ है। जमशेदपुर स्थित टाटा फुटबाल अकादमी ने 200 से ज्यादा खिलाड़यिों को प्रशिक्षित किया है। इनमें से 134 भारत के लिये खेले हैं जबकि 19 ने पिछले 30 वर्षों में भारतीय टीमों की कप्तानी की है।

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