ज्योतिष और वास्तु को अपनाना आस्था है या अंधविश्वास, क्या कहते हैं विद्वान

Edited By ,Updated: 01 Jul, 2016 11:33 AM

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अधिकांश पढ़े-लिखे लोग समझते हैं कि अंधविश्वासी और कर्महीन लोग ही तावीज, रुद्राक्ष, अंगूठी, यंत्र आदि धारण करते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसे प्रतीकों को पहनना वाकई लाभदायक है।

अधिकांश पढ़े-लिखे लोग समझते हैं कि अंधविश्वासी और कर्महीन लोग ही तावीज, रुद्राक्ष, अंगूठी, यंत्र आदि धारण करते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसे प्रतीकों को पहनना वाकई लाभदायक है। इंग्लैंड के हर्टफोर्डशायर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड वाइजमैन के नेतृत्व में कुछ शोधकर्ताओं ने तावीज, रुद्राक्ष, अंगूठी आदि धार्मिक प्रतीकों के लाभकारी पक्षों का आकलन किया। रिचर्ड वाइजमैन का कहना है कि इसे पहनने से लोगों की नियति में वाकई सुधार आता है।

 

निश्चित ही इन प्रतीकों एवं यंत्रों का प्रयोग लाभदायक रहता है, उससे मानव की सकारात्मक सोच विकसित होती है। वे अपने भविष्य के प्रति ज्यादा आशावान होते हैं। इन प्रतीकों का उपयोग करने वाला व्यक्ति निराशा से मुक्ति पाता है व उसमें आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। आत्मविश्वास से प्रेरित होकर व्यक्ति अधिक मेहनत करता है जिससे उसकी कामयाबी का रास्ता खुलता चला जाता है। पिछले 7-8 सालों से हमारे देश में वास्तुदोष निवारण में भी इन प्रतीकों का उपयोग जोर-शोर से किया जाने लगा है।

 

जिसमें श्रीयंत्र, स्वस्तिक यंत्र, वास्तुदोष निवारक यंत्र, स्वस्तिक पिरामिड, सिद्ध गणपती, पंचमुखी हनुमान इत्यादि प्रमुख प्रतीकों के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। इन भारतीय प्रतीकों के साथ-साथ फेंगशुई के माध्यम से आए चीन के कुछ प्रतीक जैसे लाफिंग बुद्धा, डबल हैप्पीनेस सिम्बल, फुक-लुक-शु, तीन टांग का मेढक, लकी क्वाइन इत्यादि के उपयोग का चलन भी खूब चल रहा है। यह प्रतीक चाहे सिद्ध किए हों या न हो वास्तुदोष निवारण में यह कोई विशेष उपयोगी नहीं होते हैं। जैसे किसी गम्भीर रोग में डॉक्टर अपने मरीज को ठीक करने के लिए उस रोग से संबंधित दवाई देता है साथ ही ताकत के लिए मरीज को विटामिन की गोली भी देता है। उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण वास्तुदोषों में धार्मिक आस्था के प्रतीक केवल विटामिन की गोलियों की तरह होते हैं।

 

क्या केवल विटामिन की गोली से किसी गम्भीर रोग को दूर किया जा सकता है? बिल्कुल नहीं। ठीक उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण वास्तुदोषों को भी उपरोक्त प्रतीको के प्रयोग से दूर नहीं किया जा सकता है। महत्त्वपूर्ण वास्तुदोषों को दूर करने के लिए भवन की बनावट में ही आवश्यक्तानुसार छोटे-बड़े परिवर्तन करने पड़ते हैं। तभी समस्या का पूर्ण रूप से निराकरण हो पाता है।

 

उदाहरण के तौर पर किसी घर के पूर्व आग्नेय में घर एवं कम्पाऊण्ड वाॅल के द्वार हों और आग्नेय कोण में ही भूमिगत पानी की टंकी हो तो उस घर में रहने वालों के मध्य निश्चित रूप से आपसी विवाद एवं कलह रहेगी। परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद भले न हो पर मतभेद अवश्य होगें। वे एक दूसरे के लिए मरने को तैयार हो जाएंगे परंतु एक दूसरे की बात मानने को बिल्कुल तैयार नहीं होंगे।

 

इस प्रकार के दोष युक्त घर में रहने वालों की बाहर के लोगों के साथ भी विवाद एवं कोर्ट कचहरी की नौबत आती रहती है। इस दोष को दूर करने के लिए एक नहीं सैकड़ो पिरामिड लगा लें चाहे वह पिरामिड सामान्य हो या चार्ज किए हुए हों, प्लास्टिक, तांबा, पारद या अन्य किसी भी पदार्थ के बने हो परंतु इससे उपरोक्त समस्या में एक नए पैसे का भी लाभ नहीं होगा। ऐसे वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर एवं कम्पाऊण्ड वाॅल के द्वार पूर्व आग्नेय में दीवार खड़ी करके बंद करने होगें और दोनों द्वार पूर्व ईशान में बनाने होगें साथ पूर्व आग्नेय स्थित भूमिगत पानी की टंकी को पूरी तरह से मिट्टी डालकर बंद करना होगा एवं नई टंकी पूर्व ईशान में बनानी होगी।

 

इस परिवर्तन से परिवार के मध्य एवं बाहरी लोगों से होने वाले विवाद तो निश्चित समाप्त होंगे ही, साथ ही परिवार तेजी से आर्थिक उन्नति करता हुआ सुखद एवं सरल जीवन व्यतीत करने लगेगा। महत्वपूर्ण वास्तुदोष निवारण का महत्त्व आप इस प्रकार समझ सकते हैं कि 1 की संख्या के आगे एक शून्य लगाया जाए, तो वह संख्या 10 हो जाएगी दो शून्य लगाए जाएं तो 100 हो जाएगी तीन शून्य लगाने पर 1000 हो जाएगी।

 

इसी प्रकार प्रत्येक शून्य लगाने पर वह संख्या दस गुना बढ़ती जाएगी। परन्तु यदि अंक 1 की संख्या न हो तो कितने ही शून्य क्यों न लगे हों सभी शून्य ही रहेंगे। अतः संख्या 1 का होना बहुत जरूरी है। इसी प्रकार महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष के निवारण का महत्त्व संख्या 1 के बराबर है और आस्था के प्रतीकों का महत्त्व 0 शून्य के बराबर है। यह तय है कि अच्छे वास्तु में ही यह प्रतीक सोने पे सुहागे का काम करते हैं।

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