चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी का नक्शा बनाने में की मदद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Oct, 2017 09:55 AM

chandrayaan 1 help to map water on moon

भारत ने अक्तूबर, 2008 में चंद्रयान-1 को प्रक्षेपित किया था जो 2009 तक सक्रिय रहा था।

भारत ने अक्तूबर, 2008 में चंद्रयान-1 को प्रक्षेपित किया था जो 2009 तक सक्रिय रहा था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा के वैज्ञानिकों ने भारत के चंद्रयान-1 की मदद से चांद पर पानी की मौजूदगी की मैपिंग की है। चंद्रयान-1 में लगे नासा के उपकरण मून मिनरोलॉजी मैपर (एम.एम.एम.) से चांद के विभिन्न क्षेत्रों में पानी की उपस्थिति को चिन्हित किया गया है और चांद की मिट्टी की सबसे ऊपरी सतह में मौजूद जल के साक्ष्यों का पहला वैश्विक नक्शा तैयार किया गया है।

 
चांद के नक्शे को तैयार करना धरती के नक्शे को तैयार करने जितना आसान नहीं है क्योंकि पृथ्वी का नक्शा तैयार करने के दौरान भूगर्भीय ब्यौरों के बारे में संदेह होने पर जानकारी की पुष्टि के लिए वैज्ञानिक व्यक्तिगत रूप से उस स्थान पर पहुंच भी सकते हैं लेकिन चांद पर ऐसा संभव नहीं है।


यह पहला अवसर है जब चांद में हर जगह पानी की मौजूदगी का पता चला है। अंतरिक्ष विज्ञानी अब इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि चांद पर पाए जाने वाले पानी का अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पेयजल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं। इसके अलावा क्या उससे ऊर्जा हासिल की जा सकती है?


चांद पर पाया गया पानी हाइड्रॉक्सिल के रूप में है। इसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक-एक अणु है। वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष वर्ष 2009 में प्राप्त पानी और उससे जुड़े मॉलीक्यूल का विश्लेषण कर निकाला है। ब्राऊन यूनिवर्सिटी की शुआई ली ने बताया कि चांद की सतह पर हर जगह पानी मौजूद है और यह केवल ध्रुवीय क्षेत्रों तक सीमित नहीं है।


चांद पर पानी की मात्रा के बारे में नई बातें पता चली हैं
उनके अनुसार चांद के ध्रुव की ओर जाने पर पानी का स्तर बढ़ता जाता है लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी इसकी उपलब्धता में ज्यादा अंतर नहीं पाया गया है। उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों की ओर पानी की अधिकतम औसत मौजूदगी 500-750 पी.पी.एम. (पार्ट्स पर मिलियन) तक पाई गई है। यह ज्यादा नहीं है लेकिन यह कुछ भी नहीं से बेहतर है। 


वैज्ञानिकों के अनुसार, ‘‘अब जब हमारे पास ये मात्रात्मक नक्शे हैं जहां दिखाया गया है कि पानी कहां है और किस मात्रा में है तो हम यह सोचना शुरू कर सकते हैं इस पानी का इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्री के पीने के लिए या ईंधन बनाने के काम में लाया जा सकता है या नहीं।’’


जिस तरह से चांद पर पानी फैला हुआ है, उसके स्रोत के बारे में भी सुराग मिलते हैं। चांद पर पानी बड़े पैमाने पर एक समान ही मिलता है मगर उसके मध्य में इक्वेटर की तरफ यह कम हो जाता है। अपवादों के बावजूद अध्ययन में बड़े पैमाने पर पानी के लिए सौर हवा को जिम्मेदार ठहराया गया है। उदाहरण के लिए शोधकर्ताओं ने चांद की मध्य रेखा की तरफ इक्वेटर के पास पानी को औसत से अधिक पाया जहां मिट्टी में पानी की मात्रा कम थी।


यह भी पाया गया है कि चांद पर दिन के दौरान 60 डिग्री से कम के अक्षांश पर पानी की एकाग्रता में परिवर्तन होता है। सुबह और शाम में गीला होता है तो दोपहर के आसपास करीब-करीब पूरा सूख जाता है। यह उतार-चढ़ाव 200 पी.पी.एम. तक हो सकता है।
यह भी सम्भावना है कि चांद की सतह से पानी निकालने के बाद वह दोबारा वहां जमा हो सकता है। हालांकि, इस संबंध में अभी और शोध किए जाने की जरूरत है।


चंद्रयान-1 
इसे 22 अक्तूबर, 2008 को प्रक्षेपित किया गया था, जो अगस्त 2009 तक सक्रिय रहा।


इसकी लंबाई 1.5 मीटर है और क्यूब के आकार जैसा है। इसे एक स्मार्ट कार के आधे आकार के बराबर माना जा सकता है। 


चंद्रयान-1 भारत द्वारा चांद की ओर भेजा गया पहला मानवरहित अभियान था। 


अगस्त, 2009 के बाद इसे लापता माना जा रहा था परंतु इसी वर्ष मार्च में नासा के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था कि यह अभी भी चांद की सतह से करीब 200 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगा रहा है। 


लगभग 3.9 अरब रुपए की लागत वाले इस यान का उद्देश्य चांद की सतह की मैपिंग और कीमती धातुओं का पता लगाना था।

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