आज का शनिवार है खास बढ़ेगा धन का भंडार, छुटेगा रोगों का साथ

Edited By ,Updated: 10 Oct, 2015 08:14 AM

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10 अक्तूबर शनिवार को शनि प्रदोष व्रत है। सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्यधिक प्रभावकारी माने गए हैं। इस दिन किया गया कुछ खास भर सकता है आपके धन का भंडार और

10 अक्तूबर शनिवार को शनि प्रदोष व्रत है। सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्यधिक प्रभावकारी माने गए हैं। इस दिन किया गया कुछ खास भर सकता है आपके धन का भंडार और छुड़ा सकता है आपको पुराने से पुराने रोग की गिरफ्त से तो आईए जानें कैसे करें शनि देव को प्रसन्न और पा लें उनसे मनवंछित फल।

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तंत्र शास्त्रों में बीज मंत्रों का विधिवत उल्लेख है, जिसके पावन पठन से शनि देव की पडऩे वाली कुदृष्टि को कृपा दृष्टि में परिवर्तित किया जा सकता है। शनिदेव जी का 
 
तांत्रिक मंत्र - ॐ प्रांप्रीं प्रौं स: शनये नम:’ अथवा ॐ शं शनैश्चराय नम:’ है। 
 
शनि के मंत्र का 23 हजार जप किया जाता है किंतु कलियुग में ग्रहों की जप संख्या से चार गुणा कर जप किया जाता है। प्रतिदिन विधिवत पूजन करते हुए एकाग्रचित्त हो निर्धारित संख्या में जप करके दशांश का हवन करें। हवन के दशांश का तर्पण, उसके दशांश का मार्जन एवं उसके दशांश तुल्य ब्राह्मणों को भोजन कराना मंत्रानुष्ठान कहलाता है। 
 
शनिदेव के व्रत के लिए विशेष समय शुक्ल पक्ष में प्रथम शनिवार से प्रारंभ करें। व्रत 51 या 19 करने चाहिए। व्रत के दिन काला वस्त्र धारण करके बीज मंत्र की 19 अथवा 3 माला का जाप करें, फिर एक बर्तन में शुद्ध जल, काले तिल, गंगा जल, शक्कर, थोड़ा दूध डालकर पश्चिम की ओर मुख कर पीपल की जड़ में डाल दें। भोजन में उड़द के आटे का बना पदार्थ, केला फल प्रयोग में लाना चाहिए, वही दान भी करें। 
 
व्रत के अंतिम दिन शनिवार को पूर्णाहुति के बाद तेल में पकी हुई वस्तुओं, काला वस्त्र, कंबल, उड़द, जूता, तेल आदि दान करें। शनि के दान का समय मध्यान्ह या रात्रिकाल होता है। इस व्रत से सभी प्रकार की परेशानियां दूर होती हैं। लोहा, मशीनरी, कारखाने वालों को व्यापार में शनि उन्नति कारक होते हैं। रत्नों में नीलम धारण तथा धातु में काले घोड़े की नाल की बिना जोड़ वाली अंगूठी धारण करना शुभ कारक माना गया है। 

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