बचें ‘द्वार वेध’ से, कर सकता है आपको बर्बाद

Edited By ,Updated: 27 Aug, 2016 03:30 PM

door perforation

वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृह स्वामी को लक्ष्मी, ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक दिशा में

वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृह स्वामी को लक्ष्मी, ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक दिशा में मुख्य द्वार जीवन में समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं। अत: भवन का मुख्य द्वार बनाते समय निम्र सावधानियां बरतें: 
* यथासंभव, पूर्व एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूर्वोत्तर अर्थात ईशान कोण में, पश्चिम मुखी भवन में पश्चिम उत्तर के कोण में और दक्षिण मुखी भवन में द्वार दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए। 
 
* यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण न कर सकें तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है। 
 
* नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे कंडिय़ों की लकड़ी का प्रयोग न करें। मुख्य द्वार आपके भवन के सभी दरवाजों से बड़ा होना चाहिए और इसमें किसी प्रकार का कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। ध्यान रखें कि घर का कोई सदस्य द्वार से प्रवेश करते समय या बाहर जाते समय किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव न करें। 
 
* मुख्य द्वार का आकार आयताकार रखें। इसके सभी कोण आड़े, तिरछे,न्यून या अधिक कोण न होकर समकोण हों। साथ ही यह त्रिकोण, गोल, वर्गाकार या बाहुभुज की आकृति का न हो। विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय कर्कश ध्वनि पैदा न करे। जमीन पर घिसटकर या टकरा कर चलनेवाले दरवाजे घर में कलह पैदा करते हैं। प्रयास करें कि दरवाजे भीतर को खुलने वाले हों क्योंकि बाहर की ओर खुलने वाले दरवाजे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। 
 
* आजकल बहुमंजिली इमारतों ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है जहां तक इन भवनों में मुख्य द्वार का संबंध है इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं जैसे कि चारदीवारी का मेन गेट, अपने ब्लाक में आने का द्वार, लिफ्ट अथवा सीढिय़ों का प्रथम दिशा, ऊपर की मंजिलों के दोनों ओर के फ्लैटों के बीच का कारीडोर। अब ऐसी स्थिति में किस द्वार को मुख्य द्वार मानें यह एक समस्या है। फ्लैट में अंदर आने वाला आपका अपना दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा। 
 
* यहां एक विशेष तथ्य यह है कि जिस तरह प्लाट सिस्टम में भवन का मुख्य द्वार जिस दिशा में होगा उस भवन में उसी दिशा की ओर दरवाजे खिड़कियां आदि ज्यादा से ज्यादा रखे जा सकेंगे व उसी के अनुसार उस भवन के मुख की दिशा का भी निधार्रण होगा। 
 
मुख्य प्रवेश द्वार के प्रभाव 
* मुख्य द्वार अगर उत्तर या पूर्व दिशा में स्थित है तो यह आपके लिए समृद्धि और प्रसिद्धि लेकर आता है।
 
* प्रवेश द्वार अगर पूर्व व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको खुशियां व सम्पन्नता प्रदान करता है।
 
* यदि प्रवेश द्वार उत्तर व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको समृद्धि तो प्रदान करता ही है यह भी देखा गया है कि यह स्थिति भवन में रहने वाले किसी सदस्य का रुझान अध्यात्म में बढ़ा देता है।
 
* भवन का मुख्य द्वार अगर पूर्व दिशा में है तो वह बहुमुखी विकास व समृद्धि प्रदान करता है।
 
* वास्तु के अनुसार अगर आपके भवन का प्रवेश द्वार केवल पश्चिम दिशा में है तो यह आपके व्यापार में लाभ तो देखा, मगर यह लाभ अस्थायी होगा।
 
* किसी भी स्थिति में दक्षिण-पश्चिम में प्रवेश द्वार बनाने से बचें। इस दिशा में प्रवेश द्वार होने का मतलब है परेशानियों को आमंत्रण देना।
— दयानंद शास्त्री 

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