Edited By ,Updated: 04 Aug, 2015 10:31 PM
एेसा समझा जाता है कि जबरदस्त विरोध के मद्देनजर विधि मंत्रालय ने कठोर समय-सीमा के भीतर वाणिज्यिक विवादों का समाधान करने के लिए मध्यस्थता कानून में प्रस्तावित संशोधनों में ढील दे दी है।
नई दिल्ली: एेसा समझा जाता है कि जबरदस्त विरोध के मद्देनजर विधि मंत्रालय ने कठोर समय-सीमा के भीतर वाणिज्यिक विवादों का समाधान करने के लिए मध्यस्थता कानून में प्रस्तावित संशोधनों में ढील दे दी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 में संशोधनों पर कल फैसला करेगा। पिछले महीने भी मुद्दा मंत्रिमंडल के एजेंडा में था लेकिन मामले को टाल दिया गया था।
अधिकतम विदेशी निवेश आकर्षित करने की उत्सुकता के बीच सरकार ने मध्यस्थता अधिनियम में संशोधन करने का फैसला किया है ताकि पीठासीन न्यायाधीश के लिए वाणिज्यिक विवादों का निपटारा नौ महीने के भीतर करना अनिवार्य बना दिया जाए। सूत्रों ने बताया कि उस समय-सीमा को अब 18 महीने कर दिया गया है क्योंकि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक हिस्से ने इसका विरोध किया था।
मध्यस्थता के मामले में कई सेवानिवृत्त न्यायाधीश लगे हुए हैं। एक और संशोधन मध्यस्थों के शुल्क की सीमा तय करने के बारे में है। मध्यस्थ को यह भी बताना होगा क्या जो वह मामला ले रहा है उसमें हितों का टकराव है या नहीं। सरकार में सूत्रों ने कहा कि मध्यस्थता के काम में लगे कुछ पूर्व न्यायाधीशों ने नौ महीने की समय सीमा और फीस की सीमा निर्धारित करने का विरोध किया है।