Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Jun, 2018 02:13 PM
"नजरिया- एक युवा सोच" जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट होता है कि लेखक के मन में क्या है? पुस्तक के बारे में कुछ कहने से पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि भविष्य युवाओं का ही है। जिस देश में युवा ताकतवर होंगे, वह देश ताकतवर होगा। आज राजनीतिक दृष्टि से देखा...
क्या कहती है पुस्तक
"नजरिया- एक युवा सोच" जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट होता है कि लेखक के मन में क्या है? पुस्तक के बारे में कुछ कहने से पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि भविष्य युवाओं का ही है। जिस देश में युवा ताकतवर होंगे, वह देश ताकतवर होगा। आज राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो प्राय: सभी राजनीति दल भी इसी राह पर चल रहे हैं और युवाओं का आगे कर रहे हैं। हमारे देश में भी युवाओं की अच्छी खासी आबादी है। युवाओं में असीम ऊर्जा होती है। वह कुछ भी कर गुजरने में सक्षम होते हैं। जिसने भी युवाओं को पहचान लिया, समझो उसने भविष्य पहचान लिया। इसके बावजूद आज युवाओं के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। सरकार की नीतियां भी युवाओं का केन्द्र में रखकर बनती हैं। युवा पीढ़ी ताकतवर रहेगी तो हम ताकतवर रहेंगे। युवा शिक्षित होंगे तो देश शिक्षित होगा। युवाओं के कंधे पर ही सब कुछ टिका है।
लेखक अंकित कुंवर स्वयं एक युवा हैं और जाहिर है कि उन्होंने इस सोच को जागरूक करने के लिए अपने लेखों का ताना-बाना बुना है। चार खंडों में विभक्त इस संग्रह में लेखक ने अपने लेखों को शामिल किया है। इन लेखों में समाज में फैली विसंगतियों को जहां रेखांकित किया गया है, वहीं एक राह दिखाने का भी प्रयास किया गया है।
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पहला खंड समसामयिक विषयों पर
पहले खंड में विश्व में हिंदी की दशा और दिशा में यह प्रयास किया गया है कि युवा वर्ग को बताया जाए कि हिंदी अब ऐसी भाषा नहीं रही कि किसी देश में उसे गंभीरता से न लिया जाए। अब हिंदी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसी खंड में जहां सप्तक के सिद्ध कवि के बारे में युवा पीढ़ी को बताने का प्रयास किया गया है, वहीं जम्मू-कश्मीर की अनूठी संस्कृति को भी रेखांकित किया गया है। भारत की विदेश नीति में भारत-इजरायल के संबंधों का उल्लेख करते हुए यह अवगत कराने का प्रयास लेखक ने किया है कि युवा पीढ़ी को अपने देश की विदेश नीति से भी अवगत रहना चाहिए।
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दूसरा खंड राजनीतिक परिदृश्य पर
दूसरे खंड में राजनीति में हो रहे बदलाव, संविधान के अनुच्छेद ३५-ए, कामयाबी के शिखर पर मोदी लहर, दलित समुदाय और संसद की गरिमा को रेखांकित करते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि युवा पीढ़ी को अपने देश के बारे में जानकारी रखनी ही चाहिए।
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तीसरा खंड मुद्दों पर आधारित
तीसरे खंड में देश के सामने खड़े मुद्दों को रेखांकित किया गया है। देश के सामने बहुत सारे मुद्दे हैं। इसमें भ्रष्टाचार, भुखमरी, जलवायु, सृष्टि के लिए आवश्यक लैंगिक असमानता की बढ़ती खाई, जल संरक्षण ओर किसानों की समस्याओं को रेखांकित किया गया है।
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चौथा खंड में व्यंग्यात्मक निबंध
चौथे खंड में अपने व्यंग्य लेखों के माध्यम से संग्रह में गंभीरता को हल्का करने का प्रयास किया गया और सामाजिक मुद्दों को हलके-फुलके ढंग से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया हैॅ।
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लेखक के बारे में
लेखक अंकित कुंवर पिछले काफी वक्त से देश के विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं। उनका नाम नया नहीं है लेकिन उनका प्रयास नया है और माना जा सकता है कि नई पीढ़ी इस संग्रह में कुछ नया पाएगी।
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युवा सोच को प्रदर्शित करती है पुस्तक
देश को आजाद कराने के लिए न जाने कितने युवाओं ने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, मंगलपाण्डे युवा ही थे। रानी लक्ष्मीबाई तो तब मात्र 26 वर्ष की थीं। उनकी सेना की एक जाँबाज झलकारी बाई युवती ही थी। स्वाधीनता की बलिवेदी पर स्वयं का सर्वस्व लुटाने वाले बाल गंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू आदि ने अपने यौवन के प्रथम पग के साथ ही इस क्रान्ति पथ पर पाँव रखे थे। युवाओं के महान प्रेरक स्वामी विवेकानन्द ने देश के युवाओं से कहा था- ''हे वीर हृदय! भारत माँ की युवा संतानो! तुम यह विश्वास रखो कि अनेक महान कार्य करने के लिए ही तुम लोगों का जन्म हुआ है। किसी के भी धमकाने से न डरो, यहाँ तक कि आकाश से प्रबल वज्रपात हो तो भी न डरो।" स्वामी जी का यह अग्निमंत्र सार्वकालिक है। संभवत: इसी से प्रेरित होकर युवा लेखक अंकित कुंवर ने अपनी सोच को एक रचनात्मक दिशा दी है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। साथ ही आशा करते हैं कि उनकी पुस्तक विभिन्न विषयों पर अपनी स्वतंत्र सोच को प्रदर्शित करने के लिए युवा समेत सभी पाठकों को प्रेरित करेगी। इस पुस्तक लेखन में मेरे सहयोगी श्री संतराम पाण्डेय जी का हार्दिक आभार।
अंकित कुंवर