Edited By pooja,Updated: 03 Sep, 2018 03:12 PM
फाँकते - फाँकते जिंदगी की धूल, हो गया मैं बूढ़ा, गया मैं सब कुछ भूल !
*भूलने की बीमारी - अल्झाइमर *
> फाँकते - फाँकते जिंदगी की धूल,
> हो गया मैं बूढ़ा, गया मैं सब कुछ भूल !
>
> लग गई है मुझे ऐसी बीमारी,
> जिसने भूला दी मुझे मेरी जिंदगी सारी !
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> सब कहते हैं मैं पढ़ाता था विज्ञान,
> पर आज नहीं हैं मुझे अपना ही ज्ञान !
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> लगता हैं मुझे हर एक शख़्श अन्जान,
> वो कहते हैं मैं छिड़कता था उन पर जान !
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> जब से खो गई मेरी यादों की लड़ी,
> तब से मेरे सामने अनगिनत मुसीबते खड़ी !
>
> नहीं याद रहता मुझे करना कोई भी काम,
> मेरे हाथों और कपड़ो पर लिखा है एक पता और नाम !
>
> नहीं ढूंढ पता मैं घर में कोई भी सामान,
> लगता है जैसे बन गया हूँ अपने ही घर में मेहमान !
>
> वक़्त रहता मेरे लिए हरदम ठहरा,
> घरवालो का रहता मुझ पर हरदम पहरा !
>
> वो डरते कही मैं अकेले बाहर न चला जाऊँ,
> और घर वापिस आने का रास्ता न भूल जाऊँ !
>
> नाम लिखी तस्वीरों को अपना सहारा बनाया,
> वो बताती मुझसे मिलने कौन है आया !
>
> कैसी हो गई मुझे ये बीमारी,
> मैंने गवाँ दी अपनी सूझ-बूझ सारी !
>
> असमंजस से घिरा रहता हूँ मैं,
> बहुत बेबस महसूस करता हूँ मैं !
>
> हे भगवान् ! मुझे एक बार बता दे वज़ह,
> किस लिए मिल रही है मुझे ऐसी सज़ा !
>
> - श्रुति