समय की मांग है 'लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984' में संशोधन

Edited By Seema Sharma,Updated: 20 Jan, 2020 02:57 PM

demand of times is amendment in prevention of public property loss act 1984

हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था का झंडा बेहद बुलंद है, देश में इसकी जड़ें बेहद गहरी हैं। हमारे वतन में लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वंतत्रता प्राप्त है, किसी मसले पर सरकार से सहमत नहीं होने पर हम लोग सरकार की...

हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था का झंडा बेहद बुलंद है, देश में इसकी जड़ें बेहद गहरी हैं। हमारे वतन में लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वंतत्रता प्राप्त है, किसी मसले पर सरकार से सहमत नहीं होने पर हम लोग सरकार की कार्यप्रणाली का विरोध व आलोचना शांतिपूर्ण गांधीवादी ढंग से करने के लिए स्वंतत्र हैं। हमें अधिकार है कि हम लोग सभ्य तरीकों से सार्वजनिक रूप से भी सरकार के कार्यों से असहमति व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन अगर हम सरकार की नीतियों के विरोध व आलोचना के नाम पर अपने ही देश की बहुमूल्य सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को आगजनी व तोड़फोड़ करके नुकसान करेंगे, तो हम सभी को यह भी जान लेना चाहिए कि हमारे देश में नियम, कायदे व कानून से परिपूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था हमको कभी भी कानून अपने हाथ में लेकर हिंसा और तोड़फोड़ करने का अधिकार नहीं देती है।

 

अगर हम वास्तव में अपने देश से प्यार करते हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था का सम्मान करते हैं तो यह बेहतरीन स्वंतत्र व्यवस्था हम सभी को नियम कायदे व कानून का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है न कि देश की लोक व निजी संपत्ति को नुकसान करने के लिए प्रेरित करती है। हमारे प्यारे भारतीय लोकतंत्र में किसी भी विषय पर सरकार से असहमत होने पर हमको शांतिपूर्ण और अहिंसक गांधीवादी तरीके से विरोध प्रकट करने का पूर्ण अधिकार हर वक्त प्राप्त है। देश के प्रत्येक वाशिंदे के साथ-साथ, हर संगठन, सत्ता पक्ष, विपक्ष और सभी राजनीतिक दलों को गांधीवादी तरीकों से शांतिपूर्ण ढंग से जनता को परेशान करें बिना धरना प्रदर्शन करने का अधिकार प्रदान है। लेकिन अगर इस दौरान हिंसा, आगजनी व तोड़फोड़ करके सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, तो यह देश के मौजूदा कानून के अनुसार दंडनीय अपराध है। लेकिन फिर भी हमारे प्यारे देश में आए दिन धरना प्रदर्शन के दौरान लोक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना देश में फैशन बनता जा रहा है।

 

हालात इतने बदतर होते जा रहे है कि अब तो धरना प्रदर्शन करने वाली भीड़ एक माह व्यतीत होने के बाद भी दिल्ली और उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाले बेहद व्यस्त मार्ग को जामकर के बैठ जाती है और हमारा सिस्टम कहीं ना कहीं किसी तरह की जाति व धर्म की राजनीति से प्रभावित होकर हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहता है, वो धरनारत इन प्रदर्शनकारियों से संवाद करने तक में विश्वास नहीं रखता है। हालांकि प्रदर्शनकारियों की इस भीड़ की जिद के चलते रोजाना लाखों लोगों को कई घंटे जाम से झूझना पड़ता है और सरकार व आम लोगों का भारी वित्तीय नुकसान अलग होता है। जरा-जरा सी बात पर आयेदिन उत्पन्न होने वाली इस सब हालात के लिए हमारा सरकारी तंत्र पूर्ण रूप से जिम्मेदार है, क्योंकि यह सरकारी तंत्र मौजूदा "लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984" में दिये गये मौजूदा प्रावधानों पर अमल करने में राजनीति से प्रभावित होकर के हमेशा ढुलमुल रवैया अख्तियार करता है, जिसके चलते देश में दंगाइयों के हौसले दिन-प्रतिदिन बुलंद होते जा रहे है और वो बेखौफ होकर जब चाहे तब अपने ही हाथों से अपने ही प्यारे चमन को निर्भीक होकर उजाड़ने लग जाते हैं।

 

देश में जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में कभी गुजरात, राजस्थान व हरियाणा में आरक्षण के मसले पर, कभी हरियाणा, पंजाब, दिल्ली व उत्तर प्रदेश में राम-रहीम की सजा के विरोध में, कभी देश में जातिगत उन्माद में अंधे होकर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की तरह हिंसा को अंजाम देकर, कभी धार्मिक मामलों के नाम पर और अब हाल ही में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) पर हुए सारे देश में जबरदस्त बवाल के दौरान, जिस ढंग से दंगाइयों ने सार्वजनिक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, यह हालात देश की विश्वस्तरीय छवि, आर्थिक स्थिति, स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था और विकास की राह के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक है। जिसको रोकने के लिए सरकार को मौजूदा प्रावधानों पर अमल करते हुए भविष्य में और सख्ती करनी होगी। तब ही देश में दंगा करने वालों की सोच में सुधार संभव है। जिस तरह से चंद दंगाई लोगों की वजह देश में आयेदिन सरकारी व निजी संपत्ति में तोड़फोड़ व आगजनी करने की बेहद संवेदनशील परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है।

 

उन परिस्थितियों को देखकर लगता है कि सरकार को अब पुराने पड़ चुके "लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984" में तत्काल संशोधन करके उसको बेहद सख्त करके उसके दायरे को बढ़ाकर सख्ती से लागू करने की तत्काल आवश्यकता है, इसमें सजा के साथ नुकसान पहुंचाईं गयी सार्वजनिक व निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए दोषियों से वसूली के साथ-साथ भारी आर्थिक दंड वसूलने के सख्त प्रावधान करने होंगे, क्योंकि अब अधिकांश लोगों का स्वभाव बन गया है कि अगर हम पर भारी अर्थदंड लगने लगता है तो हम एकदम सिस्टम व तमीज में होकर नियम कानून का पालन करने लग जाते हैं। इसका ताजा उदाहरण हाल ही में लागू हुआ मोटर व्हीकल एक्ट है। जिसके प्रभाव अब देश की सड़कों पर नज़र आने लगे हैं। आज समय की मांग है कि अब केंद्र व राज्य सरकारों को भी राजनीति से प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष रूप से विदेशों की तर्ज पर आधुनिक तकनीक अपना कर आगजनी व तोड़फोड़ करने वाले दंगाइयों की सही व निष्पक्ष रूप से पहचान करके उनको सख्त सजा दिलाने का कार्य करें। साथ ही सिस्टम में बैठे लोग इस बात का भी ध्यान रखें कि राजनीति से प्रेरित होकर जो लोग दोषी बनाये गये हैं उनमें किसी भी निर्दोष व्यक्ति को इसमें गलत ढंग से फंसने से बचायें।

 

आज जरूरत है कि देश में तोड़फोड़ जैसी हिंसक गतिविधियों में संलिप्त रहने वाले दंगाइयों और उनको नेतृत्व प्रदान करने वाले लोगों व नेताओं की तत्काल पहचान की जाये, जिससे कि दंगाइयों के द्वारा निजी और सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचायें गये नुकसान की जल्द से जल्द भरपाई ऐसे सभी लोगों से की जाये और उनको नियमानुसार सजा देकर भविष्य में दंगों पर तेजी से अंकुश लगाया जाये। लेकिन इस सबके लिए हमको ऐसा सिस्टम मानसिक रूप से तैयार करना होगा जिसके लिए जाति-धर्म व राजनीति की जगह देशहित सर्वोपरि हो। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा दंगाइयों की पहचान करके उनको वसूली के नोटिस भेजे गये है। अगर प्रशासन के द्वारा सार्वजनिक व निजी संपत्ति के नुकसान का आकलन करके, उसकी भरपाई के लिये कोई भी कठोर कदम उठाया जाता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। क्योंकि इस तरह के विरोध प्रदर्शन के दौरान निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामलों में हमेशा हमारी न्यायपालिका का रूख बहुत ही सख्त रहा है।

 

न्यायालय ने हमेशा अपने आदेशों में बार-बार कहा है कि आंदोलनों की आड़ में कोई भी व्यक्ति या लोगों का समूह देश को बंधक बना कर नहीं रख सकता है। देश में आगजनी व तोड़फोड़ करके विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठनों और राजनीतिक दलों-चाहें वो कोई भी दल या संगठन हो, को यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि सार्वजनिक व निजी संपत्ति को पहुंचे नुकसान के लिए गलती पाए जाने पर उन्हें भी जिम्मेदार व जवाबदेह बनाया जा सकता है और शासन-प्रशासन उनसे भी वसूली कर सकता है। समय-समय पर देश की शीर्ष अदालत ने इस तरह के दंगा फसाद के दौरान होने वाली हिंसा और आगजनी की घटनाओं से सार्वजनिक और निजी संपत्ति को होने वाले नुकसान को गंभीरता से लेते हुए वर्ष 2009 में यह सुझाव दिया था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से रोकथाम के लिए "लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984" में संशोधन करने और इसकी भरपाई के लिये आंदोलनकारियों, राजनीतिक दलों और आयोजक नेताओं की जिम्मेदारी भी निर्धारित करने का प्रावधान करने का सुझाव दिया था। लेकिन अफसोस की बात यह है कि अभी तक उन सुझावों पर अमल नहीं हुआ है। जिसके चलते आयेदिन चंद दंगाई, चंद लोगों के उकसावे में आकर अपने ही देश में तोड़फोड़ व आगजनी जैसी घटनाओं को बेखौफ अंजाम देकर सिस्टम को लाचार बनाकर के सकून से अपने घर बैठ जाते हैं। जो रवैया देश व समाज हित में ठीक नहीं है।
दीपक कुमार त्यागी

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