कम्युनिस्ट चीन की कथनी और करनी में बड़ा अंतर

Edited By Riya bawa,Updated: 06 Sep, 2020 01:30 PM

difference between the words and actions of communist china

मौजूदा चल रहे लद्दाख विवाद में चीन द्वारा बातचीत के पटल पर आने के बाद भी नहीं मामला शांत हो रहा। बातचीत के दौरान ही लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिको द्वारा भारतीय सैनिको पर कायरता पूर्वक हमला ...

मौजूदा चल रहे लद्दाख विवाद में चीन द्वारा बातचीत के पटल पर आने के बाद भी नहीं मामला शांत हो रहा। बातचीत के दौरान ही लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिको द्वारा भारतीय सैनिको पर कायरता पूर्वक हमला हुआ। जिसमें हमारी शूरवीर भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए। चालाक चीन ने गलवान हिंसा में अपने मारे गए और घायल सैनिको की संख्या की पुष्टि ही नहीं की। उसके बाद फिर पैंगोंग झील के पास चीनी सेना के तम्बू पाए जाना। बातचीत का बार बार विफल होना और बातचीत के बाद भी कोई हल ना निकलना, चीन का सेना पीछे हटाने से इंकार करना। भारत में चीनी राजदूत हमेशा मामले की लीपापोती में जुटे रहते है। यह क्या दर्शाता है ? इससे यह साफ है की कायर चीन की करनी और कथनी में बहुत अंतर है। दिखावा बातचीत का करना और पीठ पीछे छुरा घोंपना। ऐसा चीन आज से ही नहीं कर रहा, उसका शुरू से यही रवैया रहा है। 1949 में वामपंथ की हिंसक लहर से चीनी राष्ट्रवादी सरकार को उखाड़ कर चीन पर कब्ज़ा करने वाली माओ के नेतृत्व वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा छल कपट की कूटनीतियां भी साथ ही चालू हो गई। सबसे पहले चीन की खूनी चालों का शिकार 1951 में तिब्बत हुआ। चीन ने तिब्बत से अच्छे संबंध रखने का दिखावा किया, चीन ने तिब्बत की सीमा के पास सड़को का निर्माण किया और कहता रहा की इस रास्ते के ज़रिए तिब्बत से व्यापार होगा परंतु एक दिन उन रास्तों से चीनी सेना तिब्बत में दाखिल हो गई और तिब्बत की सरजमीं पर कब्ज़ा कर लिया। मज़बूरी में दलाई लामा और कई लाख तिब्बतियों को अपना वतन छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी। तिब्बत में चीन की आक्रांताओ ने उनकी संस्कृति पर प्रहार किया। उनके बौद्ध मंदिर, धरोहर से जुड़ी चीज़ो को नष्ट किया। जो अपने हक़ की आवाज़ उठाता है उसे या तो मार दिया जाता है या अग़वा कर लिया जाता है। 

तिब्बत में आज़ादी के लिए बहुत प्रदर्शन और आंदोलन हुए परंतु आक्रामक चीन उन्हें बल पूर्वक शांत करता रहा है। उनकी आवाज़ को लगातार दबाते आया है। इसी प्रकार 1950 से चल रहे कोरिया विवाद में भी चीन अपनी नकरात्मक भूमिका निभाने से भी नहीं चूक रहा। चीन दुनिया के सामने उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में चली आ रही दुश्मनी जिसे तीसरे विश्व युद्ध का भी खतरा है और परमाणु युद्ध का भी पूरा पूरा खतरा है, खत्म करने चाहने का दावा तो करता है लेकिन करता उससे बिलकुल उल्टा है। अमेरिका और दक्षिण कोरिया को ठेंगा दिखाने के लिए चीन ने पाकिस्तान की मदद से उत्तर कोरिया को परमाणु हथयार मुहैया करा दिए जिससे परमाणु युद्ध वाला खतरा पूरी दुनिया के आगे बना हुआ है। चीन दोनो कोरियाओ में शांति की बजाए उनमे विवाद बढ़ा रहा है। यदि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में युद्ध हुआ तो उसका असर पूरी दुनिया पर पढ़ेगा। लेकिन चीन को सिर्फ अपना दबदबा क़ायम रखने से मतलब है। धोखेबाज़ चीन ने भारत के साथ भी बहुत बड़ा छल किया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चीन को भारत का बड़ा भाई समझते थे। उन्होंने हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा दिया। दगाबाज़ चीन ने उस दोस्ती का नतीजा 1962 में भारत पर आक्रमण करके दिया। चीन ने तब से भारत के अक्साई-चीन पर कब्ज़ा कर रखा है। तब से चीन भारत के खिलाफ कोई ना कोई साज़िशें रचता आया है। चीन भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने की बात तो करता है लेकिन उसकी कोशिश भारत को कमज़ोर करने पर ही केंद्रित रहती है। चीन भारत में नक्सलवाद को बढ़ावा देता आ रहा है, उत्तर पूर्व भारत में अलगावाद का पोषण और दुश्मन पाकिस्तान को मज़बूत करता आया है। इतना ही नहीं चीन भारत को सयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलने से रोक रहा है और नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह में भी भारत की सदस्यता का विरोध करता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को हमेशा अपना बताते आया है परंतु अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का है और रहेगा। 

चीन वियतनाम के एकीकरण का समर्थन करता है फिर उसके बाद 1979 में उसी यूनाइटेड हुए वियतनाम पर आक्रमण करता है जिससे चीन को करारी हार मिली। चीन की खुदको दुनियाकी महाशक्ति समझता है इसलिए अमेरिका और रूस को आंख दिखाने में लगा हुआ है। चीन इन दोनो देशों से आगे निकलना चाहता है। इसीलिए छोटे देशों को ऋण जाल नीति के तहत देश के सुधर के नाम पर क़र्ज़ बाँट कर उन पर कब्ज़ा कर रहा है। उस क़र्ज़ के जरिए चीन उन देशों की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण हासिल कर रहा है। इसका सबसे बड़ा शिकार पाकिस्तान और श्री लंका है। चीन पाकिस्तान में बहुत निवेश कर चूका है और उन्हें बहुत क़र्ज़ भी दे रहा है। निवेश का सबसे बड़ा उदहारण चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है। इसी प्रकार श्री लंका भी चीन से बहुत अधिक क़र्ज़ ले चूका है और मज़बूरन श्री लंका को अपना हम्बनटोटा पोर्ट चीन को सौंपना पड़ा। अब चीन नेपाल को रिझाने में लगा हुआ है।

चीन के करीब आने से नेपाल अपने सालों पुराने दोस्त भारत से दुरी बढ़ाने लगा है। परंतु अब यह नेपाल को चुनना है की उसका हित किसके साथ है भारत से या चीन से। चीन अब बांग्लादेश, मालदीव, कई अफ्रीका देशों को भी ऋण जाल में फ़साने में लगा हुआ है। चीन दुनिया की महाशक्ति होने का अर्थ नहीं समझता, एक महाशक्ति की अहम ज़िम्मेदारी होती है की दुनिया में शांति बनी रहे। चीन दुनिया में शांति का ढोंग रचता रहता है परन्तु चीन का अपने हर पड़ोसी देशों से कोई ना कोई सीमा विवाद है। चीन की दूसरे देशों की भूमि पर बुरी नज़र रहती है। चीन शांति से विवाद का हल निकलने की बात तो करता लेकिन सीमा पर सैन्य बल दिखाता है। जिस प्रकार 2017 में चीन द्वारा भूटान के डोकलाम विवाद में हुआ। वह डोकलाम हिस्सा भारत, चीन और भूटान की सरहद के बीच है परंतु आधिकारिक तौर पर भूटान में स्थित है। भारत को पड़ोसी भूटान की सुरक्षा के लिए आगे आना पड़ा, कई महीनों की दोनो देशों के सैनिको की तनातनी के बाद चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा। उसमे भी चीन ने भारत को सैन्य धमकिया दी परन्तु कुछ किया नहीं। चीन दक्षिण चीन सागर को अपना बता रहा। इसकी वजह से चीन ऑस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान, अमेरिका से विवाद छेड़ चूका है। इससे भी तीसरे विश्व युद्ध का संकट बना हुआ है। चीन इस मसले का हल शांतिपूर्ण तरीके से निकले को भी त्यार नहीं है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार का अपने नागरिकों के प्रति व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं है, उन्हें अपनी बात रखने का बिलकुल अधिकार नहीं है।

यदि कोई ऐसा करता है तो उसे देशद्रोह के तहत उठा लिया जाता है या गायब कर दिया जाता है। चीन शिनजियांग प्रांत के निवासी उइघर मुस्लिमों पर क्रूरता बरसा रहा है। उन पर चीनी सरकार द्वारा अत्याचार हो रहा है। इसका उदहारण हाल ही में चीन से आई खबर के अनुसार उइघरों की मस्जिद को चीन सरकार द्वारा शौचालय में तब्दील करना जो बहुत दुर्भागयपूर्ण है। चीन हांगकांग की भी स्वतंत्रता पर हाथ डाल रहा है। हांगकांग 1997 में चीन को ब्रिटेन द्वारा स्वशासी रखने की शर्त पर सौंपा गया था परन्तु चीन ने उस शर्त का बिलकुल पालन नहीं किया। जिसकी वजह से वहा धरने-प्रदर्शन होने लगे परन्तु चीन ने बलपूर्वक उन्हें भी दबा दिया। अब इस कोरोनावायरस से दुनिया में आफत आई हुई है, इसकी उत्तपति भी चीन में ही हुई है। सबसे पहले कोरोना चीन में आया फिर उसके बाद धीरे धीरे पूरी दुनिया में फ़ैल गया। इतना ही नहीं चीन अपने भीतर से कोरोना पीड़ित लोगों का सही आंकड़ा बताने से बच रहा था। बाद में अचानक चीन में सब कुछ ठीक हो गया, इससे चीन पर इस वायरस के संक्रमण फैलाने का शक भी होता है। इस वायरस से रोज़ाना लाखों लोगों की जान जा रही है। आम लोगों का रोजगार छीन रहा है। इस महामारी ने तो मनुष्य की दिनचर्या को बदल डाला।

इस कोरोना संकट में भी चीन मुनाफा कमाने में लगा हुआ है। अन्य देशों को खराब उपकरण बेच कर पैसे कमाने में लगा है। हाल ही में भारत ने चिन से खरीदे हुए वेंटीलेटरों के खराब निकलने पर उन्हें चीन को वापिस कर देने से इस बात की पुष्टि होती है। चीन के भारत से लद्दाख विवाद के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य काई शीआ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर संगीन आरोप लगाती है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य पूर्व प्रोफेसर काई शीआ के अनुसार शी जिनपिंग कोरोना के फैलाने की अपनी भूमिका से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए भारत समेत पड़ोसी मुल्को के साथ विवाद पैदा कर रहा है। इसी बात को कहने की वजह से शीआ को कम्युनिस्ट पार्टी से निष्काषित किया गया। प्रोफेसर शीआ के बयान से लद्दाख विवाद का कारण पता लगता मिल रहा है। भारत-चीन बातचीत से भी चीन सेना हटाने के लिए मानने को त्यार ही नहीं हो रहा। चीन विश्व शांति के लिए बहुत बड़ा खतरा है। चीन के लिए हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और कहा जाए तो यह भी गलत नहीं होगा क्योंकि कम्युनिस्ट चीन की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है।

(दिव्यम श्रीधर )

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