Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 May, 2018 01:31 PM
मैंने इश्क़ की और बस आग से खेलता रहा एक घड़ी जलता रहा,एक घड़ी बुझता...
मैंने इश्क़ की और बस आग से खेलता रहा
एक घड़ी जलता रहा,एक घड़ी बुझता रहा ।।1।।
हुश्न को कहाँ इतनी अदीकतें अता हुई हैं
मैं खुद ही गिरता रहा और खुद ही संभलता रहा ।।2।।
खुशफ़हमी थी जब तक दिल-ए-बेकरार को
आप ही मचलता रहा और आप ही बहलता रहा ।।3।।
ये तमाशा यूँ ही खत्म हो जाता तो क्या बात थी
आँख भी मिलाता रहा और नज़रें भी चुराता रहा ।।4।।
हथेलियों से आँखें बंद करके उसने क्या जादू किया
मुझे जगाता भी रहा और ख्वाब भी दिखाता रहा ।।5।।
ये सरापा कयामत नहीं तो और क्या है
मझमें ही खोता रहा और मुझे भी चुराता रहा ।।6।।
सलिल सरोज