Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Jun, 2018 02:50 PM
तेरे ख़्वाब लेके मैं आंखों में तमाम रात जागता रहता हूँ एक तिलिस्म है तेरी बातों में जिसके पीछे भागता रहता हूँ जरूर बुझेगी प्यास निगाहों की
खुद से ही सदा कहता रहता हूँ क्यूँ छू दिया मुझे इस खुमार में बारिश में भी दहकता रहता...
तेरे ख़्वाब लेके मैं आंखों में
तमाम रात जागता रहता हूँ
एक तिलिस्म है तेरी बातों में
जिसके पीछे भागता रहता हूँ
जरूर बुझेगी प्यास निगाहों की
खुद से ही सदा कहता रहता हूँ
क्यूँ छू दिया मुझे इस खुमार में
बारिश में भी दहकता रहता हूँ
तेरे साँसों की धनक जो मिली
दिन रात बस महकता रहता हूँ
ये क्या किया है तुमने बता दो
हर घड़ी तुम्हें सोचता रहता हूँ
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कल कोई और शहर जला था
आज ये शहर भी जल जाएगा
जो अब भी नहीं जगे नींदों से
ये शमा खौफ में बदल जाएगा
ज़ुल्म हुआ है तो चीखना सीखो
वर्ना ज़ुबां पत्थरों में ढल जाएगा
ये ज़द्दोज़हद है खुद के होने की
क्या वायदों से सब बदल जाएगा
भूख तमाम रात जगाए रखती है
कौम बातों से कैसे बहल जाएगा
यूँ ही डर से सहते रहे गर तुम सब
तो आज गया है वो कल भी जाएगा
बँध मुट्ठी से कब क्या बदलता है
और तुम समझते हो सब संभल जाएगा
सलिल सरोज