युवा पीढ़ी में मोबाइल के बढ़ते खतरे

Edited By Seema Sharma,Updated: 20 Aug, 2019 04:24 PM

increasing danger of mobile in younger generation

क्या आप मोबाइल फोन का अत्याधिक इस्तेमाल करते हैं ...? या आप मोबाइल फोन को अपने साथ रखकर सोते हैं....? क्या आप मोबाइल फोन को अधिक समय तक वाइब्रेषन मोड पर रखते हैं...? क्या आप जानते हैं मोबाइल फोन से पैदा होने वाले खतरे को

क्या आप मोबाइल फोन का अत्याधिक इस्तेमाल करते हैं ...? या आप मोबाइल फोन को अपने साथ रखकर सोते हैं....? क्या आप मोबाइल फोन को अधिक समय तक वाइब्रेषन मोड पर रखते हैं...? क्या आप जानते हैं मोबाइल फोन से पैदा होने वाले खतरे को ....? विज्ञान के क्षेत्र में मोबाइल ने अविस्मरणीय काम किए हैं। मोबाइल फोन आज के समय में सबसे उपयोगी और जरुरी वस्तु हो गया है। कई लोगों ने 2 या तीन-तीन फोन रखे हुए हैं । क्योंकि आज की युवा पीढ़ी के लिए एक फैशन बन गया है। मोबाइल हमारी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। मोबाइल के बिना आज कोई अपनी कल्पना भी नहीं कर सकता है।

 

मोबाइल फोन का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। बच्चों से लेकर बुढ़ेां तक सभी इसका इस्तेमाल करने लगें हैं। इसमें इतनी सुविधाएं उपलब्ध हैं जैसे कि इंटरनेट चलाना, रिकाडिंग करना , फोटो खींचना, सेल्फी लेना, गाने सुनना, टी.वी. सीरियल देखना, आदि कि लोग इसके बिना जिंदगी अधूरी सी लगने लगती है। लोगों की जिंदगी को इसने बहुत हद तक आसान भी बनाया है। लेकिन फायदों से ज्यादा इसके भयंकर नुकसान भी हैं। लेकिन यही मोबाइल फोन इंसान की सेहत के लिए एक बडा जोखिम भी पैदा कर रहा है। अतः इनके इस्तेमाल करने से इन्सान इसके अंदर इतना गुम हो गया है कि एक नये रोग के रुप में पनप रहा है, जिसे ब्रिटिश वैज्ञानिको ने ‘नोमोफोबिया’ का नाम दिया है। इससे संबन्धित शोध के अनुसार मोबाइल फोन के अत्याधिक प्रयोग से इंसान की नींद प्रभावित हो रही है। उसका फोन कहीं गुम न हो जाए, कहीं गिर न जाए, चार्जिंग खत्म न हो जाए, कहीं सिग्नल न चला जाए जैसे डर आज युवाओं को मानसिक रोगी बना रहे हैं।

 

शोध के अनुसार यह रोग 17 से 24 वर्ष के युवाओं में अधिक पनप रहा है और इसके कारण 78 प्रतिशत युवा ‘नोमोफोबिक’ हो चुके हैं। यूनिवर्सिटी आफॅ केलिफोर्निया के एक शोध के अनुसार मोबाइल को वाइब्रेषन मोड पर ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने से कैंसर का अधिक खतरा होता है। इसका कारण यह है कि मोबाइल के सिग्नल के लिए जो इलेक्टोमैग्नेटिक तरंगें आती हैं, वे दिमाग की कोश्किाओं की वृद्वि को प्रभावित करती हैं। मोबाइल को तकिये के पास रखना भी खतरे से खाली नहीं है। रेडियशन का व्यक्ति के शरीर पर पडने वाला प्रभाव उसके इस्तेमाल किये जाने वाले मोबाइल फोन की क्वालिटी, उसकी उम्र और उसके प्रयोग करने के तरीके व समय पर निर्भर करता है। मोबाइल रेडियशन पर कई रिसर्च पेपर तैयार कर चुके हैं।

 

आईआईटी बाॅम्बे में इलेक्टिकल इंजनियर प्रो. गिरीष कुमार का कहना है कि मोबाइल रेडियशन से तमाम दिक्ततें हो सकती हैं , जैसे कि सिर दर्द, सिर में झनझनाहट , चक्कर आना, थकान महसूस करना, नींद न आना, डिप्रषन, कानों का बजना, सुनने में कमी, जोड़ों में दर्द। मोबाइल रेडियषन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन टयूमर और मिस-कैरेज की आषंका भी हो सकती है। इंटरफोन स्टटी में कहा गया है कि हर दिन आधे घंटे या इससे अधिक मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन टयूमर की आषंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है। मोबाइल रेडियषन से पुरुषों में नपुंसकता का जोखिम बढ़ रहा है। मोबाइल को लंबे समय तक इस्तेमाल करने से जो तरंगे निकलती है वह शरीर का पानी सोख लेती हैं।

 

जवाहरलाल नेहरु काॅलेज के प्रो. जितेद्र बिहारी का कहना है कि मानव ष् शरीर में तकरीबन 70 प्रतिषत पानी होता है और जब यह रेडियेशन के प्रभाव में होता है तो इसका अवषोषण करता है। कई बार मोबाइल इस्तेमाल करते वक्त यह गरम भी हो जाता है और यह सेहत के काफी नुकसानदायक होता है। इतना ही नहीं मोबाइल का अत्याधिक इस्तेमाल करने से विद्युत चुंबकीय क्षेत्र फ्री रेडिकल की संख्या में इजाफा कर देता है जिससे बायोलोजिकल सिस्टम बिगड़ने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है। स्मार्टफोन ने खुद स्मार्ट बनकर लोगों की जिन्दगी को भददा बना दिया है। इसकी रंगीन और अधिक रोशनी वाली स्क्रीन व तकनीकें हमारी आंखों की रोशनी पर काफी बुरा प्रभाव छोड़ती हैं।

 

स्मार्टफोन के स्क्रीन पर कई तरह के कीटाणु होते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते। लेकिन ये कीटाणु त्वचा संबंधी कई तरह की समस्याओं को उत्पन्न करने में सक्षम हैं और ये कीटाणु बीमार भी कर सकते हैं। आज के जमाने में लोग अपने स्मार्टफोन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। कई बार तो एक ही घर में बैठे लोग एक दूसरे से मैसेज के जरिए ही बात करते हैं। इससे घर में छोटी मोटी एक्सरसाइज से भी बंचित रह जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। मोबाइल का प्रयोग गर्भवती महिलाओं द्वारा कम करना चाहिए क्योंकि इसकी रेडिएशन गर्भस्थ शिशु को प्रभावित कर सकती है। इससे षिषु के दिमाग पर नकारात्मक असर पड सकता है और उसका विकास भी प्रभावित हो सकता है। इससे बचने के लिए काॅल और रिसीव के लिए हेंड सेट का इस्तेमाल करें।

 

मोबाइल को तकिये के नीचे पास में रखकर न सोयें। मोबाइल आज के समय में मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है। यह एक ऐसी चीज है जो इंसान के साथ 24 घंटे साथ ही रहती है। यह आज के समय में सबकी आदत बन गयी है, जिसे लोग चाह कर भी नहीं छोड सकते। मोबाइल फोन बढ़ने के साथ - साथ मोबाइल टावर कंपनिया भी बढ़ती जा रही हैं, जो जगह- जगह अपने टावर खडे करते जा रहे हैं। इन मोबाइल टावर का मानव जीवन पर असर पड रहा है। जिंदगी का अच्छे से जीने के लिए जितना हो सके मोबाइल का कम से कम प्रयोग करें और इसको अपने से दूर रखने कोशश करें। बच्चों को फेस बुक, गेम चलाने के लिए न दें। हो सके तो मोबाइल को पाॅकेट में न रखें और गर्म हो जाने पर इसका इस्तेमाल न करें। कई बार मोबाइल ज्यादा चार्ज करने से इसकी बैटरी फूल जाती है और इसके फटने का डर रहता है। मोबाइल का सही तरीके से जीवन में प्रयोग किया जाए तो सही मायने में ये हमारे लिए वरदान साबित हैं। जीवन धीमान नालागढ़

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