Edited By Riya bawa,Updated: 21 May, 2020 02:32 PM
तुम्हारी छतें बनाता रहा मैं,
आज ख़ुद ही बेघर हो गया,
फसलों की कटाई करता था ...
तुम्हारी छतें बनाता रहा मैं,
आज ख़ुद ही बेघर हो गया,
फसलों की कटाई करता था मैं,
दो वक़्त की रोटी को मौहताज हो गया।
कारखानों की रीढ़ था मैं,
आज भीड़ में ही कहीं खो गया,
नेता नहीं, मजबूर मज़दूर हूँ मैं,
यह सोचता-सोचता भूखा ही सो गया।
ग़रीब होना ही है गुनाह मेरा,
यह आज मैं जान गया,
जब विदेश में फँसे "भारतीयों" को लाने
नौका और जहाज़ गया।
अब जो आए चुनाव तो,
उन "भारतीयों" के ही दर पर जाना तुम,
चप्पल पहनने वाला बैठेगा हवाई जहाज़ में,
ऐसा झूठा आश्वासन मत दिलवाना तुम।
अगर पहुँच गया ज़िंदा गाँव अपने तो,
लौट कर फिर नहीं आऊँगा,
भूखे पेट ही सही मगर ,
आत्म-सम्मान से मौत के गले लग जाऊंगा।
(डिंकल पोपली)