लूटे जाना तो किस्मत में लिखा है

Edited By vasudha,Updated: 27 Dec, 2018 03:10 PM

looting is written in luck

हां, लूटे जाना तो भारतीय लोगों के किस्मत में लिखा है। महम्मुद गज़ऩवी बार- बार हमले करता रहा और भारतीयों को लूटता रहा। तैमूर लंग ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अहमद शाह अब्दाली की लूट को भी भारतीय भूल नहीं सकते...

हां, लूटे जाना तो भारतीय लोगों के किस्मत में लिखा है। महम्मुद गज़ऩवी बार- बार हमले करता रहा और भारतीयों को लूटता रहा। तैमूर लंग ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अहमद शाह अब्दाली की लूट को भी भारतीय भूल नहीं सकते। हां, वे कह सकते हैं कि इन लुटेरों के पास तोपें थी 7 जिनका भारतीयों के पास कोई विकल्प नहीं था। सो लुटेरें जीत गये और उन्हें लूट के ले गये। अपनी तोपों और तलवारों के सहारे वे निर्मम आतताई जीत गये। भारतीयों पर अत्याचार करते रहे और उन्हें लूटते रहें 7 लूटना तो भारतीयों की किस्मत में लिखा था।

अगर तोप मुस्लिम आतताइयों के हाथ में सैन्य सामग्री का ताज़ा आविष्कार था तो अंग्रेजों के हाथ में बंदूक सैन्य सामग्री का तोप से भी अधिक ताज़ा आविष्कार थी। ताज़े आविष्कारों के आगे दुनिया को झुकना ही पड़ता हैं। सो मुस्लिम सत्ता टूटती चली गई और अंग्रेज सत्त्तारूढ़ हो गये। ये भला हिंदुस्तान को लूटने में पीछे क्यों रहते। उन्होंने बड़ी चालाकी से भारतीयों के उद्योग धंधों को ख़त्म कर दिया। मज़दूरी करें भारतीय कच्चे माल का उत्पादन करें, भारतीय उन्हें कच्चा माल सस्ते में देते जावें और वे उस कच्चे माल से तैयार वस्तुओं को भारत ही में बेचते चले गये और इस तरह उन्होंने भारत को जी भर कर लूटा। शायद लूटे जाना तो भारत की किस्मत में ही लिखा था।

अंग्रेज चले गये सत्ता की कुर्सियां खाली हो गई उन खाली कुर्सियों पर भारतीय आ बैठे। उन्होंने समझा कि शायद खाली कुर्सियों पर उनके बैठ जाने का नाम ही आज़ादी हैं। वे भी अंग्रेजों की तरह लोगों को लूटने में व्यस्थ हो गये। भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन लक्ष्य बहुत ऊंचा हैं और सरकार व सत्ता तो उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए राह के सफर के केवल प्रबंधकर्ता हैं। सरकार और सत्ता लूटने और स्वाद लेने के लिए नहीं हैं बल्कि लोग सेवा के लिए हैं। इस आदर्श को कुछ मुस्लिम शासकों ने भी निभाया लेकिन आधुनिक भारतीय शासकों ने इस आदर्श को बिल्कुल नजअंदाज कर दिया हैं। बड़े धूम धड़के के साथ चुनाव लड़े जाते हैं असीमित धन ख़र्च किया जाता हैं जो भी सत्ता में आ बैठता हैं वह यहीं समझता हैं कि जिंदगी ने उसे लोगों को जी भर कर लूटने का एक दुर्लभ मौका दिया हैं। 

सो, वह जितना भी लूट सके, लूटता हैं। अफ़सोस तो यह हैं कि भारत में चुनाव किन्हीं मुद्दों पर नहीं लड़े जाते, देश की मूल समस्याओं व उनके हल की चर्चाएं नहीं होती बल्कि विपक्ष तो केवल इसीलिए तड़पता हैं कि सत्त्ताधारी लोग काफी लूट चुके हैं, अब उसे लूटने का मौका दिया जायें। क्या सत्ताधारी पार्टी और क्या विपक्ष, इस हमाम में तो सभी नंगे हैं। अगर एक का मुंह काला हैं तो दूसरा कहता हैं वह पीछे क्यों रहे, वह उससे भी ज्यादा काली करतूते करता है।

क्या सचमुच ही लूटते चले जाना भारत की किस्मत में लिखा हैं। हां, गधों की किस्मत में लिखा हैं कि डंडे खाते रहे और माल ढ़ोते रहे। लूटते चले जाना उनकी किस्मत में लिखा हैं अगर इस लूट से बचना हैं तो लोगों को शासित होने की बजाए कुछ समय के लिए स्वयं शासक बनना होगा। वरना मुर्दों को तो जो भी लूटना चाहे, लूट सकता है। मुरदे बेचारे कुछ भी नहीं कर सकते लूटते चले जाना उनकी किस्मत में लिखा हैं। 

आज देश में मची लूट पाट और दिन प्रतिदिन होने वाले भयंकर घोटालों के लिए भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक जिम्मेवार हैं। चुनाव बेहद खर्चीले बन चुके हैं। चुनाव आयोग ने आज तक यह सोचने का प्रयास ही नहीं किया कि किस तरह देश में बिना ख़र्चे के चुनाव करवायें जा सकें ताकि देश में भ्रष्टाचार के कैंसर की जड़ ही कट जावें। 

आज टी.वी का युग हैं। टी.वी. के सभी चैनल सरकार के अधीन हैं। चुनाव के समय सभी उम्मीदवारों को टी.वी. पर समय दिया जा सकता हैं। वे टी.वी. पर अपने  वोटरों को बतलाने की , उनके चुनाव क्षेत्र की, यां उनके प्रदेश यां देश की क्या समस्याएं हैं और वे उसे कैसे हल करेंगे। उनके श्रोता उनसे सवाल पूछ लें। टी .वी. पर दिए गये उनके  ब्यानों के आधार पर ही यां उनकी जिंदगी में उन द्वारा किये गये कामों के आधार पर ही उन्हें वोट मिलें, चुनाव लड़े जायें। आज के टी.वी. के युग में यहीं एक रास्ता हैं कि चुनाव बिना ख़र्चे के लड़े जायें और भ्रष्टाचार के कैंसर की जड़ काटी जावें। 
    
लेखक:-रमेश तलवाड़

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