युद्ध का नया स्थल - सोशल मीडिया

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Apr, 2018 02:27 PM

new battlefield  social media

नीति आयोग के सी.ई.ओ अमिताभ कांत का 22 दिसम्बर 2017 का वह ट्वीट सभी को याद होगा , जिसमें उन्होंने जानकारी दी थी कि - मोबाइल डेटा का उपयोग करने वाले देशों की श्रृंखला में भारत ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है । यह बहुत गर्व की बात है, हमारा देश बदल रहा...

नीति आयोग के सी.ई.ओ अमिताभ कांत का 22 दिसम्बर 2017 का वह ट्वीट सभी को याद होगा , जिसमें उन्होंने जानकारी दी थी कि - मोबाइल डेटा का उपयोग करने वाले देशों की श्रृंखला में भारत ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है । यह बहुत गर्व की बात है, हमारा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है। वही दूसरी ओर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया तथा सोशल मीडिया ने बताया कि यह स्थान कोई आम स्थान नहीं है क्योंकि प्रति माह भारत में 150 गेगाबाइट का कंसम्पशन हो रहा है और यह चीन तथा यू.एस.ए के जोड़ से भी अत्यधिक है। एक चीज में भारत और आगे बढ़ रहा है, जिसकी वजह से पूरा संसार परेशान है। प्रतिदिन सुप्रभात तथा शुभरात्रि के संदेशों की वजह से इंटरनेट की स्पेस भर रही है और इसका पूरा श्रेय भारतीयों को ही मिला है।

 

अगर फ्री डेटा की लुभाने वाली स्कीम कुछ साल पहले आ गई होतीं तो शायद हमारे देश ने बहुत पहले ही यह उपलब्धि हासिल कर ली होती। क्योंकि पहले भी व्यक्ति खाली था, आज भी खाली है , कोई बदलाव नहीं आया है। फर्क बस इतना है कि पहले खाली समयव्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के बारे में सोचता था और आज व्यक्ति सिर्फ सोशल मीडिया पर बैठ कर बिना सोचे समझे चीजें पोस्ट करता है, किसी भी प्रकार की टिप्पड़ी करता है, सांझा करता है, और अब तो पसन्द करने के भी नए-नए तरीके आ गए हैं।
सांझा करते वक्त व्यक्ति यह तक सोचने की जरूरत नहीं समझता है कि आखिर एक बार उसकी असलियत का पता तो लगा लें, कि वह सत्य भी है अथवा नहीं। 

 

बिना समय गवाएं वह बीस से तीस लोगों को उस गलत खबर जैसी हानि कारक बीमारी की चपेट में ले आता है, जिसके कारण एक नई अफवाह का जन्म होता है और वह अफवाह कब वास्तविकता में तब्दील हो जाती है पता ही नहीं चलता। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमारी जेब मे पड़ा दस रुपये का सिक्का है, अफवाहों का दौर कुछ इस तरह चला कि दस का सिक्का तो था, पर हम कुछ वस्तु नहीं खरीद सकते थे क्योंकि देश में ऐसी अफवाह फैल गई कि दस रुपये का सिक्का बंद हो चुका है जिसकी वजह से अधिकतर विक्रेताओं ने सिक्का लेने से मना कर दिया । पिछले कुछ वर्षों पहले सोशल मीडिया पर लोगों की संख्या कम थी, या यूं कहें कि पड़े लिखे लोगों की संख्या ज्यादा थी। डिग्री धारक ही सिर्फ पड़ा लिखा नहीं होता, या शायद कुछ डिग्री धारक पड़े लिखे नहीं समझे जाते। इसका मुख्य कारण शिक्षा व्यवस्था भी रही है। 

 

कुछ वर्षों में सोशल मीडिया बिल्कुल बदल गया है, कुछ समय पूर्व पोस्ट आते थे - इसको लाइक या टिप्पड़ी करो शाम तक अच्छी खभर मिलेगी, इसको आगे ग्यारह लोगों को भेजो आपके साथ कुछ अच्छा होगा, आदि। परन्तु आज की पोस्ट तो इसके विपरीत हैं - एक हिन्दू ने कहा इसपर सौ लाइक्स भी नहीं आ सकते, एक मुसलमान ने कहा है कि देखते हैं कितना दम है हिन्दुओ में इस पर दो सौ शेयर भी न होंगे, आदि। क्या सही में कोई किसी जाती, धर्म, समुदाय के बारे में ऐसा कह सकता है ? परंतु आज सोशल मीडिया ऐसी चीजों से भरा पड़ा है। 

 

वही दूसरी ओर इसको सांझा तथा बढ़ावा देने वालों की कमी भी नहीं है। ऐसी चीजें आती कहाँ से हैं ? किसके पास इतना समय है ? यह सब व्यक्तिगत फायदे के लिए हैं, या दो गुटों के बीच आपसी रंजिश को बढ़ावा देना इसका मकसद है या कहीं यही नया रोजगार तो नहीं ? पोस्ट तो बहुत से हैं, परन्तु कुछ सही में विवादास्पद होते हैं। जैसे- दो दिल, पहला भारत तथा दूसरा पाकिस्तान। सवाल- आपका दिल कौनसा है ? क्या सही में फर्क है दो दिलो में ? जैसा उनका है वैसा ही आपका है। कोई भी इस गलत चीज को गलत नहीं कहता क्योंकि आज के दौर में गलत चीज को गलत बोलने पर देशद्रोह का इल्जाम लग जाता है। 

 

परंतु आज के युग में ऐसे पोस्टों को ज्यादा पसंद किया जाता है इन पोस्टों पर टिप्पणियां तथा शेयर्स की संख्या एक ज्ञानवर्धक पोस्ट से अधिक होती है। हमारे देश में ऐसी पोस्टों पर लड़ने वालों की कमी नहीं है । आज व्यक्ति ज्ञानी तो है पर बस उतना ही जानता है जितना सोशल मीडिया ने उसको बता दिया, ऐसे ज्ञान से रोजगार तो मिलता नहीं शायद इसीलिए वह फिल्म, जाती ,धर्म ,हिन्दू- मुसलमान जैसी चीजों में फसा हुआ है। सोशल मीडिया का पूर्ण इस्तेमाल कश्मीर में हो रहा है जहाँ उग्रवादी आम जनता को भड़काकर उग्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, सिर्फ वहीं नहीं बल्कि हर जगह जहाँ भी दंगे होते हैं उसको भड़काने में सोशल मीडिया सहायक के रूप में कार्य करता है। क्या इन चीजों को रोका नहीं जा सकता ? आधुनिकता के इस दौर में क्या यह पता लगा पाना मुमकिन नहीं की आखिर कहां से आ रहे हैं यह सब विवादास्पद तथ्य ?

 

आज चीन सम्पन्न देशों की श्रेड़ी में काफी अच्छे स्थान पर है। वहां हर घर में रोजगार का साधन है। शायद यह इसलिए है क्योंकि वे लोग अपने खाली समय में अपने रोजगार तथा जरूरत के बारे में सोचते हैं। इसका मुख्य कारण सोशल मीडिया पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। भारत में इस पर प्रतिबंध लगाने से शायद युवा अपनी जरूरत को समझ सकेगा, अपने परिवार के बारे में भी शायद सोचने लगे ? राजनीति वाले पोस्ट तो समझ आते हैं कि ऐसे क्यों है और यह कहाँ से आए हैं ? प्रतिबंध या रोक थाम से राजनीति में इसका काफी गहरा असर पड़ेगा। उन बेचारों की क्या गलती। झूठी अफवाहें सोशल मीडिया से ही आती हंै। सोशल मीडिया तथा नेताओं की बातें सफेद झूठ के अलावा और कुछ नहीं हैं। इसलिए आज के युवा को सोशल मीडिया का उपयोग अत्यंत सीमित कर देना चाहिये ।

 

प्रवीन शर्मा

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