पंजाब रत्न ही नहीं वो भारत रत्न थी

Edited By vasudha,Updated: 03 Sep, 2019 12:34 PM

not only the punjab ratna she was the bharat ratna

भारतीय साहित्य जगत की महान विभूति अमृता प्रीतम की 100 वीं जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया।पंजाब के गुजरांवाला,पाकिस्तान में 31 अगस्त 1919 को जन्मी अमृता प्रीतम ने बचपन से ही लेखनी में अपनी धार देना शुरु कर दिया था उनको पंजाबी भाषा की पहली...

भारतीय साहित्य जगत की महान विभूति अमृता प्रीतम की 100 वीं जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया।पंजाब के गुजरांवाला,पाकिस्तान में 31 अगस्त 1919 को जन्मी अमृता प्रीतम ने बचपन से ही लेखनी में अपनी धार देना शुरु कर दिया था उनको पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है।उनका पहला संग्रह 'अमृत लहरें'(Immortal Waves) 1936 में प्रकाशित हुई उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 वर्ष की थी।1936 ने ही अमृता प्रीतम का विवाह प्रीतम सिंह के साथ हुवा। भारत और पाकिस्तान के विभाजन की त्रासदी को उन्होंने करीब से देखा था।1947 के दंगों में लाखों लोगों की जानें चली गयी थी।इससे उनका मन काफी व्यथित हुवा। उनका बचपन पाकिस्तान में ही बीता था इसलिए उनको भारत और पाकिस्तान से समान रूप से लगाव रहा ।बचपन मे ही उनके सिर से माँ का साया उठ गया था।माँ की मृत्यु के उपरांत उनके जीवन मे बहुत अकेलापन आ गया और उन्होंने इस अकेलापन को लेखनी में
तब्दील कर दिया और वो उपन्यास, कहानी आदि लिखने लगी।विभाजन के बाद उनका परिवार 1947 में लौहार से दिल्ली आ गया।उनके द्वारा लिखित पंजाबी उपन्यास' पिंजर' पर 2003 में हिंदी फ़िल्म बनी।फिल्म भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय हिन्दू तथा मुसलमानों की समस्याओं पर फिल्माई गयी है।उनकी कृतियों का विभिन भाषाओं में अनुवाद हुवा है।साहित्य की हर विधा पर उनकी पकड़ थी।उपन्यास,कहानी, कविता,निबन्ध संग्रह उनकी रचना के प्रमुख स्तम्भ रहे हैं। कई पुरस्कार और सम्मान से लबालब प्रीतम का आज 100 वां जन्म दिन साहित्य प्रेमी देश भारत भूल गया जबकि अमरेकी सर्च इंजन गूगल ने उनको डूडल में स्थान देकर उनको श्रधांजलि अर्पित की है जिसके लिए गूगल को धन्यवाद देना चाहिए।साहित्य श्रंगार की शिरोमणि की साहित्यिक ऊंचाइयों और सम्मान पर एक झलक डालने से पूर्व उनकी ही कृति से उनको श्रद्धासुमन अर्पित करना उचित होगा।

एक मुलाकात---कई बरसों बाद अचानक एक मुलाकात

हम दोनों के प्राण एक नज्म की तरह कांपे--
सामने एक पूरी रात थी
पर आधी नज्म एक कोने में सिमटी रही
और आधी नज्म एक कोने में बैठी रही
फिर सुबह सवेरे
हम कागज के फ़टे हुए टुकड़ों की तरह मिले
मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया।
उसने अपनी बांह में मेरी बांह डाली
और हम दोनों एक सेंसर की तरह हंसे
और कागज को एक ठंडे मेज पर रखकर
उस सारी नज्म पर लकीर फेर दी।

साहित्य विभूति अमृता प्रीतम की जीवन यात्रा को शब्दों में समेटना संभव नहीं हो सकता है क्योंकि वो उस दौर में एक ऐसा उगता हुवा सूरज थी जिसकी लालिमा के आगे हर रंग और हर रोशनी फीकी पड़ जाती थी।कुछ प्रकाश पुंज जो उनके जीवन को अमर कर देती है।इस प्रकार हैं--

जन्म-----31 अगस्त 1919 गुजरांवाला,पाकिस्तान

1947 में लाहौर से भारत आई और दिल्ली में बस गए।

प्रथम संग्रह----अमृत लहरें(Immortal Waves)

विवाह---1936 प्रीतम सिंह

पुरस्कार--1957 साहित्य अकादमी पुरस्कार (इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली
महिला साहित्यकार)

पद्मश्री--1969

ज्ञानपीठ पुरस्कार--1980-81 में "काजल और कैनवास"संकलन के लिए दिया गया।

पदम् विभूषण--2004

मानद उपाधियां--डी लिट् दिल्ली विश्वविद्यालय(1973)

जबलपुर विश्वविद्यालय (1973) तथा विश्व भारती द्वारा भी सन 1987 में डीलिट् की मानद उपाधि दी गयी।

रचनाएँ----

उपन्यास--1-डॉक्टर देव

2-कोरे कागज,उनचास दिन

3-धरती सागर और सीपें

4-रंग का पत्ता

5-दिल्ली की गलियां

6-तेरहवां सूरज

7-यात्री

8-विलावतन

9..पिंजर

10-पक्की हवेली

11-अग दा बूटा

12-अग दी लकीर

13- कच्ची सड़क

14-कोई नहीं जानदा

15-उन्हीं दी कहानी।

कविता संग्रह--लोक पीड़ ,लामियाँ वतन,कस्तूरी सुनहरे(साहित्य पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह तथा तै कैनवस के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला)कुल 18 कविता संग्रह गद्य-किरमिची लकीरें,काला गुलाब,अग दियाँ लकिरा,औरत:एक दृष्टकोण, कच्चे अखर, अपने-सोने चार वरे।

आज अमृत लहरें के लेखक की 100वीं जयंती है और ओ हमेशा अमर हो चुकी हैं ।आश्चर्य होता है कि क्यों तुलसीदास ने ऐसा लिखा होगा कि-"ढोल गंवार ,शूद्र, पशु और नारी सब ताड़न के अधिकारी"100 पुस्तकें जिन्होंने लिखी और भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी उनकी रचनाएँ बहुत लोकप्रिय हुई ।1979 में बुल्गारिया ने वत्सराय पुरस्कार से उनको शुशोभित किया।साहित्य के क्षेत्र के साथ-साथ उनको 1986 में राज्य सभा के लिए भी चुना गया।साहित्य लेखन के साथ-साथ आपने दो सन्तानों की भी परवरिश बहुत अच्छे तरीके से की ।हालांकि इनका दाम्पत्य जीवन ज्यादा दिन तक नहीं टिक सका।पति से तलाक हो गया मगर आपने लेखन से कभी तलाक नहीं लिया और अंतिम सांसों तक अपनी कलम को रुकने नही दिया।साहित्य और संघर्ष का ये सूरज 31 अक्टूबर 2005 को दिल्ली ने अस्त हो गया।मगर उसकी रोशनी हमेशा याद रहेगी।

(आई पी ह्यूमन)

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