हैवानियत !

Edited By Tanuja,Updated: 18 Feb, 2020 04:59 PM

poem

लुटती आबरू को...

 हैवानियत!

 

लुटती आबरू को, 

अब बचायेगा कौन ?

किसकी नियत में है, 

हैवानियत,

ये बतायेगा कौन ?

 

हर कोई लूट रहा है, 

अब इज़्ज़त सरे आम!

इस दरिंदगी को, 

अब मिटायेगा कौन ?

 

बाहर नहीं है हिफाजत, 

ये समझ में आता है!

घर में ही, 

हो रही है बे-आबरू बेटियां!

उन जानवरों का, 

नामों-निशान, 

अब मिटायेगा कौन ?

 

समाज के डर से, 

छुपाए जाते है,

क्यूं गुनाह ?

इन समाज के ठेकेदारों से, 

अब टकरायेगा कौन ?

 

जिस दर्द से गुजरी है,

बे-आबरु होकर एक बेटी!

उसे समाज में,

अब इज़्ज़त दिलायेगा कौन ?

 

बंद हो रखी है, 

जब कानून में, 

न्याय की आँखे!

तो फैसला इन्साफ का, 

करायेगा कौन ?

 

जला दो, एक-दो हैवानों को,

जिन्दा शहर में,

फिर देखते है,

बेटियों पे कहर‌ ढायेंगा कौन ?

 

 

                                                                           - रेखा रुद्राक्षी, नई दिल्ली।

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