Edited By pooja,Updated: 06 Jul, 2018 02:07 PM
जाने कितने राज छिपे है इस ज़माने में, अक्सर भरे गिलास टूट जाते है मैखाने में,
जाने कितने राज छिपे है इस ज़माने में,
अक्सर भरे गिलास टूट जाते है मैखाने में,
हम तो हार कर भी जी रहे हैं जिंदगी की दौड़,
वरना दुनिया कम नहीं है नीचा दिखाने में.
खुलते है भेद दिलों के इन चौपालों पर,
अक्सर दिखती है टूटी मुहबत दीवालों पर,
हम तो खो कर भी निभा रहे हैं प्यार की कसमे,
वरना दुनिया कम नहीं है ठोकरे लगाने में.
धुलती है रोज कितने आसुंओ से ये मधुशाला,
कितने लोग आये और कितनो ने इसे अपना बना डाला,
हम तो रो कर जी रहे है अपनी वीरान शामे,
वरना दुनिया कम है तान्हे लगाने में,
जाने कितने राज छिपे है इस ज़माने में,
प्रमोद कुमार “हर्ष”