Edited By Seema Sharma,Updated: 20 Aug, 2019 04:13 PM
बाँधा मुझको शर्म के खूँटे
बाँधा मुझको शर्म के खूँटे,
खुद लेकिन वाहवाही लूटे,
आज्ञाकारी बीवी है पाई
मुँह से कोई बोल न फूटे।
पर नारी को झट से ताके,
मैं देखूं तो ,तू क्यू झाँके?
इज़्ज़त तेरी तो मैं संभालू,
तू आसमां जा तारे टाँके।
जन के बच्चा तेरा वंश चलाऊ,
खुद कहीं मैं बढ न पाऊ,
ममता का ऐसे फंदा डाला
बोल अब किस ठोर मैं जाऊ।
पायल, बिछुये ,बिंदी सिंदूर,
गहनों में लगती हो हूर,
सात वचन में बांध मुझे तू
दिमाग में रखे नया फितूर।
तोड़ के बंधन,गर मैं उड़ जाऊ
आईना एक तुझे दिखलाऊ,
कौन तुझे फिर कोख में पाले
गर मैं इससे भी मुकर जाऊ।
सुरिंदर कौर