राष्ट्रहित में जनसंख्या नियंत्रण की नीति स्पष्ट होनी चाहिए

Edited By Tanuja,Updated: 11 Jul, 2019 05:20 PM

population control policy must be clear in national interest

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग "पॉपुलेशन डिविजन" ने द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट 2019 हाइलाइट्स का अपना...

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग "पॉपुलेशन डिविजन" ने द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट 2019 हाइलाइट्स का अपना 26वां अंक हाल ही में प्रकाशित किया। यह विभाग 1950 से विश्व के 235 देशों के जनसांख्यिकीय संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करने के साथ ही भविष्य में उसके प्रभावों व लक्ष्यों को भी इंगित करता है, इसकी रिपोर्ट भविष्य में जनसंख्या के रुझानों पर भी प्रकाश डालती है। वैसे तो यह रिपोर्ट विश्व के सभी देशों के रुझानों को लेकर तैयार की गई है लेकिन इस बार रिपोर्ट में जो ऐतिहासिक रुझान व नवीनतम विश्लेषण भारत को लेकर जारी हुआ है वह देश के लिए बेहद चिंतनीय ही नहीं अपितु डरावाना भी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 8 साल यानी 2027 तक हमारा देश चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा इतना ही नहीं 2019 से 2050 तक भारत में 27.30 करोड़ और लोग बढ़ जाएंगे।

अभी तक चीन 143 करोड़ की जनसंख्या के साथ पहले स्थान पर काबिज है तो वहीं हम 137 करोड़ लोगों के साथ विश्वभर में दूसरे स्थान पर हैं। चीन व भारत में विश्व की क्रमशः 19 व 18 फीसदी आबादी रहती है। अमेरिका 32.90 करोड़ की आबादी के साथ तीसरे व इंडोनेशिया 27.10 करोड़ लोगों के साथ चौथे नंबर पर काबिज है। रिपोर्ट बताती है 2050 की अवधि तक दुनिया की आबादी में 200 करोड़ की वृद्धि होगी और विश्व की कुल आबादी 970 करोड़ हो जाएगी। वैश्विक जनसंख्या में होने वाली वृद्धि में आधे से ज्यादा वृद्धि 9 देशों भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, तंजानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमेरिका आदि में होने की संभावना जताई गई है।

भारत में यह वृद्धि सबसे अधिक होगी। सदी के अंत तक पड़ोसी देश चीन जनसंख्या को नियंत्रित करने की नीतियों के चलते अपनी आबादी को 110 करोड़ तक रोकने में कामयाब हो सकता है। इस शताब्दी के अंत तक पूरी दुनिया की आबादी 1100 करोड़ हो जाएगी। हैरानी इस बात की है जो पड़ोसी देश हमसे आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं उनकी आबादी में भी सदी के अंत तक काफी कमी आने का अनुमान है जैसे बंगलादेश, 2010 के बाद से 27 देश ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या में एक या इससे अधिक फीसदी की कमी आई है, गिरावट का कारण प्रजनन क्षमता का निम्न स्तर है। साल 2019 से 2050 जिन 55 देशों की आबादी में एक फीसदी या उससे अधिक की कमी आने की संभावना है उनमें 26 देशों की जनसंख्या में तो 10 फीसदी तक की कमी आ सकती है। चीन में इस समय अवधि में जनसंख्या में 3.14 करोड़ यानी 2.2 फीसदी कम होने का अनुमान है। कई देशों में प्रवास भी जनसंख्या में बदलाव का महत्वपूर्ण घटक है।

रिपोर्ट कहती है "बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों की मांग के कारण बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपींस आदि देशों से प्रवास हुआ है। इसके अलावा हिंसा, असुरक्षा और सशस्त्र लड़ाई आदि के चलते भी म्यांमार, सीरिया और वेनेजुएला में भी बड़ी संख्या में लोगों ने दूसरे देशों की ओर प्रवास किया है। प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है इस दिवस को मनाने का उद्देश्य भी जनसंख्या संबंधी समस्याओं व चुनौतियों से निपटने के लिए कारगर नीतियां व उपायों को क्रियान्वित करना है। पहली बार यह दिवस 1989 में तब मनाया गया था, जब विश्व की आबादी 5 बिलियन पहुंच गई थी। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की शासकीय परिषद् ने जनसंख्या संबंधी समस्याओं एवं महत्व पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए इस दिन को चुना था। पिछले वर्ष 2018 का विश्व जनसंख्या दिवस का थीम "परिवार नियोजन एक मानवाधिकार" विषय पर केंद्रित था। इस बार जनसंख्या दिवस पर लिंग भेद, लिंग समानता, परिवार नियोजन , महिलाओं में गर्भधारण संबंधी समस्याएं व "प्रजनन स्वास्थ्य और लैंगिक समानता" पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई है।

ब्रिटिश अर्थशास्त्री एवं जनांकिकी विशेषज्ञ प्रो. थॉमस रॉबर्ट माल्थस ने 1798 ई. में अपनी पुस्तक में जनसंख्या के सिद्धांत पर एक निबंध लिखा भले ही उन्होंने यह सिद्धांत जनसंख्या की वृद्धि को यूरोपीय संदर्भ में ध्यान में रखते हुए लिखा लेकिन भारतीय परिपेक्ष्य में यह आज भी सटीक नजर आता है। उनके जनसंख्या सिद्धांत के अनुसार मानव जनसंख्या ज्यामितीय आधार पर बढ़ती है जबकि भोजन और प्राकृतिक संसाधन अंकगणितीय आधार पर बढ़ते हैं जो आगे चलकर जनसंख्या व संसाधनों के बीच आगे अंतर उत्पन्न करता है, परिणामस्वरूप प्राकृतिक घटनाएँ व आपदाएं ही इस अंतर को दूर करती है। सूखा, भुखमरी, बाढ़ या महामारी आदि फैलना इसके ही उदाहरण है। 1859 में प्रकाशित किताब 'द ओरिजिन ऑफ स्पीशीस' के लेखक व मानव इतिहास के सबसे बड़े वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा खुद अपना विकास व नियोजन करती है, आगे चलकर यही सिद्धांत आधुनिक जीव-विज्ञान की नींव बना। डार्विन सिद्धांत के मुताबिक ''जीवन के लिए संघर्ष" वर्तमान में भी लागू होता साफ दिखाई दे रहा है ।

सीमित जनसंख्या में हम उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग करके आरामदायक जीवन जी सकते हैं लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण यही सुख संघर्ष में परिवर्तित होकर जीवन की शांति को भंग करने काम करता है। देश में जब भी कई विकासात्मक परियोजना बनाई जाती है तो वह वर्तमान जनसंख्या को ध्यान में रखकर बनायी जाती है लेकिन आबादी में होने वाली वृद्धि किसी भी ऐसी परियोजना को साकार नहीं होने देती। सामाजिक समस्याएं जैसे बेरोजगारी, गरीबी या मंहगाई आदि इन चीजों के बढ़ने का एकमात्र मुख्य कारण बढ़ती आबादी को ही माना जाता है। विश्व के सबसे युवा देश की युवा शक्ति में इन सब कारणों से तनाव बढ़ता जा रहा है जिससे देश में अपराध व नशाखोरी आदि दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। देश में आज भी एक वर्ग ऐसा है जो शिक्षा के अभाव में अभी भी यही सोच लिए जी रहा है कि परिवार में जितने ज्यादा सदस्य कमाने वाले होंगे उसकी आर्थिकी उतनी मजबूत होगी लेकिन वह यह भूल जाता है की कमाने वाला केवल कमाएगा ही नहीं बल्कि खाएगा भी और अन्य संसाधनों का उपभोग भी करेगा।

हम भूल जाते हैं कि विश्व के सबसे अधिक गरीब और भूखे लोगों की संख्या भी भारत में हैं। कुपोषण और उचित स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव से मरने वाले बच्चों की संख्या भी हमारे देश में ही सबसे ज्यादा है। आम लोग सोचते हैं की उनके परिवार के सदस्य किसी बाहरी चीज पर बोझ नहीं हैं जबकि यह धारणा गलत है। देश में बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने का दबाव परिवार की बजाए सरकार, राष्ट्र व मौजूदा प्रकृतिक संसाधनों पर ज्यादा होता है इन्हीं प्रकृतिक संसाधनों का अत्यधिक शोषण देश की प्रगति में ही अवरोधक बनता है। बडी़ आसानी से हम कह देते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण की असफल नीतियों के लिए सरकार ही दोषी है लेकिन यह कतई सही नहीं सरकारों से ज्यादा आमजन दोषी है। हां बहुत बार सरकार वोट बैंक के चक्कर में न तो प्रभावी नीतियां बना पाती है न ही उन्हें लागू कर पाती है। उदाहरणार्थ तीन तलाक पर कानून लाने को लेकर जिस तरह देश भर में राजनीति की जा रही है वह देशहित में नहीं क्योंकि तीन तलाक केवल "तलाक" तक ही नहीं जुड़ा जनसंख्या वृद्धि भी इससे कहीं न कहीं जुड़ी हुई है।

भले ही आज शहरी व शिक्षित वर्ग परिवार नियोजन जैसे उपायों को खुद आगे बढ़कर अपना रहा है लेकिन अशिक्षित व गरीब आबादी अभी भी परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रमों से कोसों दूर है। अभी तक हम " बच्चे दो ही अच्छे" सिद्धांत को पूरी लागू नहीं कर पाए हैं तो "एक बच्चा नीति" के बारे में तो सोचना ही दूर की बात होगी। समाज में शिक्षा का प्रसार जितना अधिक होगा, जनसंख्या नियंत्रण उपाय उतने ही प्रभावी ढंग से लागू होंगे। परिवार नियोजन के उपायों को लेकर लोगों को विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। पुरुष समाज को भी परिवार नियोजन के लिए नसबंदी की तरफ बढ़ना चाहिए न कि यहां भी महिलाओं की ही जिम्मेदारी समझ कर पल्ला झाड़ लिया जाए।

किशोरावस्था में युवा पीढ़ी को असुरक्षित यौन संबंधों के बारें में जागरूक किया जाए। सरकार निजी व सरकारी क्षेत्र में नौकरीपेशा लोगों के लिए नियुक्ति से लेकर सेवानिवृत्ति तक "दो या एक बच्चा नीति" को राष्ट्रीय स्तर पर सख्ती से बिना भेदभाव सभी धर्मों, वर्गों व समुदायों पर लागू करे। वहीं विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हीं को मिलना चाहिए जो परिवार नियोजन की नीति को अपनाते हैं। क्या हम भूखे नंगों का देश बनकर विश्व में अपनी पहचान बनाए रखने में यकीन रखते हैं? एक बेटे की चाह में बेटियों की फौज खड़ा करना हमारी उस सोच को दर्शाता है जो न तो देशहित में है न ही अपने पारिवारिक हित में। सरकारें जनसंख्या पर अपनी नीति स्पष्ट करने के साथ इसे कठोर तरीके से लागू करने की तरफ आगे बढ़ें । हमें चीनी में सिर्फ आर्थिक विकास का उदाहरण ही नहीं देखना चाहिए वहां की जनसंख्या नियंत्रण की नीति को भी देखना चाहिए।

धन्यवाद।

राजेश वर्मा। 
गांव बतैल, डाकघर भांबला तहसील बलद्वाड़ा जिला मंडी 175004

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