Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Jun, 2018 02:17 PM
जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे" जीवन पथ पर अकेले अग्रसर होने प्रेरणा देते कविगुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर जी के लिखे ये गीत हमें जीवन की अनमोल सीख देते हैं | "आमि तोमारो सोंगे बेधेंचि आमारो प्राण सुरेरो बान्धोंने" , तुमि रबे निरोबे हृदये मम...
"जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे" जीवन पथ पर अकेले अग्रसर होने प्रेरणा देते कविगुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर जी के लिखे ये गीत हमें जीवन की अनमोल सीख देते हैं | "आमि तोमारो सोंगे बेधेंचि आमारो प्राण सुरेरो बान्धोंने" , तुमि रबे निरोबे हृदये मम अर्थात आप रहें न रहें हमारे दिल में सदा रहेंगे | हमारे देश का राष्ट्रगान - 'जन - गण -मन अधिनायक जय हे ' के मधुर स्वर की मधुर ध्वनि कानों में गूंजते ही बांग्ला साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार , दार्शनिक , प्रकृतिप्रेमी , कवि एवं रबीन्द्रनाथ संगीत के जनक रबीन्द्रनाथ ठाकुर की स्मृती ताजा हो जाती है | रबीन्द्रनाथ ठाकुर कविगुरु एवं टैगोर के उपनाम से भी जाने जाते हैं | कविगुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति में जीवंत रुप भरनेवाले 'युगदृष्टा 'कहे जाते हैं | कविगुरु बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं अपने अनुपम सृजनात्मक काव्य रचना की कुशलता से 'नोबेल पुरस्कार' अर्जित करने वाले प्रथम एशियाई थे | वे एकमात्र एेसे कवि हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों में राष्ट्रगान बनी | बांग्ला देश का राष्ट्रगान ' आमार सोनार बांग्ला ' एवं भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन ' गुरुदेव की ही रचनाएं हैं | गीतांजलि , गीताली , महुआ ,वनवाणी , शिशु - भोलानाथ ,गोरा , चोखेर बाली , घोरे बायरे , कणिका ,खेला और क्षणिका , शेषेर कविता इत्यादि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं | काबुलीवाला , मास्टर साहब एवं पोस्ट मास्टर उनकी प्रसिद्ध कहानियां हैं |
रबीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने करीब 2,230 गीतों की रचनाएं की जिनमें गीतांजलि सबसे लोकप्रिय रही | गीतांजलि के लिए ही उन्हें 1913 [tel:1913] ई. में ' नोबेल पुरस्कार ' से पुरस्कृत किया गया | बैशाख प्रकृति और पुरुष के समन्वय का महीना माना जाता है और बैशाख में सूर्य की किरणें एक नवीन स्वरुप धारण करती हैं | चारों ओर से हरीतिमा से सुशोभित वसुधा बैशाख के महीने में खिल सी उठती है | बैशाख के इस अप्रतीम सुंदर नजारों के सानिध्य में प्रकृति प्रेमी एवं संगीत प्रेमी रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 [tel:1861] ई. को बंगाल के जोड़ासांको ठाकुर बाड़ी में एक अमीर एवं खानदानी परिवार में हुआ | उनके माता का नाम शारदा देवी एवं पिता का नाम देवेन्द्रनाथ ठाकुर था | बाल्यावस्था में ही मातृहारा होने के कारण कविगुरु रविंद्रनाथ ठाकुर बाल्यावस्था से ही एकांतप्रिय थे | रबीन्द्रनाथ अपनी बड़ी बौठान अर्थात बड़ी भाभी कादंबरी देवी के दिल के बहुत ही करीब थे एवं दोनों में गहरी मित्रता थी | कादंबरी देवी रबीन्द्रनाथ जी के बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ जी पत्नी थी एवं एक अच्छी कवित्री थीं | रबीन्द्रनाथ जी को कविता लिखने की प्रेरणा उन्हीं से प्राप्त हुई | केवल आठ वर्ष की आयु से ही उन्होंने कविताएं लिखनी प्रारंभ कर दी थी | उनके जीवन की सबसे बड़ी रोचक बात यह थी कि वे बांग्ला साहित्य अनमोल मोती रहे परंतु कभी विधालय में शिक्षा ग्रहण नहीं की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही ग्रहण कर रविंद्रनाथ जी 1878 [tel:1878] ई. को वकालत की शिक्षा लेने अपने बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ ठाकुर के साथ लंदन पहुँचे | परन्तु शिक्षा पूरी किये बिना ही अपने देश वापस लौट आए एवं 1883 [tel:1883] ई. को मृणालिनी देवी के साथ विवाह बंधन में बांध दिए गए | अपने विवाह के बाद रबीन्द्रनाथ जी अपने परिवार के साथ बांग्ला देश के सियालदा में रहते हुए ग्राम्य जीवन को प्रकृति को बहुत निकट से देखा | ग्राम्य जीवन की अनुभूति उनकी कविताओं से साफ झलकती है | गांव खुली हवाओं में अपने अहसास को अपनी संगीत के माध्यम से व्यक्त किया | वर्षा एवं प्रकृति को उनकी कविता हमें सदा आकर्षित करती हैं "ह्रदय आमार नाचे रे आजके , मयूरेर मोतो नाचे रे "| कविगुरु इन पंक्तियों के माध्यम से वर्षा ऋतु में प्रकृति के सुंदर नजारों को देख मन रूपी मयूरा के नाच उठने की अहसास का वर्णन किया है |
बच्चों के लिए उनकी लिखी कविता आज भी बांग्ला के प्रथम श्रेणी के पाठ में बच्चे बड़े ही उत्साह से पढ़ते हैं - आमादेर छोटो नोदी , चोले आंके -बांके बोइशाख मासे तार , हाठु जोल थाके , पार होये जाय गरु , पार होये गाड़ी , दुई धार उंचु तार , ढालू तार पाड़ी | रबीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपनी कविताओं के माध्यम के भारतवासियों बहुमूल्य संदेश की कोशिश की है - अन्न चाई , प्राण चाई , चाई मुक्तो बातास चाई बल , चाई स्वस्थो , आनंद उज्जवल ,पररमान्यु , साहस , विस्तृत वृक्खोपट |
स्वददेशी आंदोलन के समय से रबीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रेरणा से ही राखी बंधन के उत्सव का प्रारंभ राष्ट्रीय उत्सव के तौर पर मनाया जाने लगा | लेखन के साथ - साथ रबीन्द्रनाथ ठाकुर अभिनय एवं चित्रकला के भी काफी शौकीन थे | दर्शनशास्त्र से भी उन्हें बहुत लगाव था केवल सत्रह वर्ष की आयु में अपने भाई सत्येन्द्रनाथ ठाकुर के साथ प्रथम बार इंग्लैंड गए एवं युनिवर्सिटी ऑफ लंदन में वहां के प्राध्यापक हेनरी माले के साथ कुछ समय तक अंग्रेजी की शिक्षा ग्रहण की | 1905 [tel:1905] ई.तक [http://ई.तक] रबीन्द्रनाथ ठाकुर एक सुप्रसिद्ध कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे | अपने उपन्यास "गोरा " के प्रकाशित होने के बाद रबीन्द्रनाथ जी 1906 [tel:1906] ई. राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् से जुड़े एवं 1907 [tel:1907]ई. में बंगीय साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष नियुक्त हुए | कविगुरु की सुप्रसिद्ध ग्रंथ " गीतांजलि " की प्रकाशन के पश्च्यात उनकी प्रथम पत्नी ' मृणालिनी ' देवी मृत्यु की गोद में सो चुकी थी | 1910 [tel:1910] ई. में अमेरिका से लौटने पर 'प्रतिमा देवी ' नामक एक विधवा से विवाह कर समाज के सम्मुख " विधवा विवाह " के प्रेरणा स्रोत बने | 1913 [tel:1913] ई.में [http://ई.में] "गीतांजलि" के लिए नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत होने के बाद शांति निकेतन में अपने प्रकृति प्रेमी स्वाभाव के कारण प्रकृति के सानिध्य में विद्यार्थिओं के अध्यन के लिए"विश्वभारती" नामक विश्वविधालय की स्थापना की | कविगुरु के अथक प्रयासों से ही साहित्य , कला एवं शिक्षा के क्षेत्र में 1921ई.में [http://1921ई.में] एक में "विश्वभारती" एक आदर्श विश्वविधालय के रूप में विश्व विख्यात हुआ |
कविगुरु रविंद्रनाथ ठाकुर ने कविता ,गान , कथा , उपन्यास, नाटक , प्रबंध , एवं शिल्पकला सभी विधाओं में रचनाएं की हैं | उन्होंने करीब 2,२३० गीतों गीतों की रचनाएं की हैं | जिनमें "गीतांजलि "सबसे प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय रहीं | रुसी , जापानी , अंग्रेजी, फ्रेंच , जर्मन इत्यादि विश्व की कई भाषाओँ में का अनुवाद किया गया | इसके बाद रबीन्द्रनाथ जी की ख्याति चारों ओर फैल गई और विश्व साहित्य के विशाल मंच पर प्रतिस्थापित हो गए | रबीन्द्रनाथ जी ने कई देशों की भी की | महान वैज्ञानिक आईन्स्टाईन उनके बहुत प्रसंशक थे | 7 अगस्त 1941 [tel:1941]ई. को भारतीय साहित्य के अनमोल रत्न इस भौतिक संसार से मुक्त परमतत्व में विलीन हो गए |
विनीता चैल
8789418525