कोरोना से भी खतरनाक हैं सोशल मीडिया पर फैलती अफवाहें

Edited By Riya bawa,Updated: 25 May, 2020 12:50 PM

rumour spread on social media is more dangerous than corona

कोरोना क्या फैला पूरी दुनिया घबरा गई । आज पूरे प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया आदि सभी का ध्यान कोरोना से जुड़ी खबरों पर हो गया है । इसी दौड़ में दुनियाभर की सबसे ज़्यादा सच्ची-झूठी जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से 24 घंटे लोगों तक...

कोरोना क्या फैला पूरी दुनिया घबरा गई । आज पूरे प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया आदि सभी का ध्यान कोरोना से जुड़ी खबरों पर हो गया है । इसी दौड़ में दुनियाभर की सबसे ज़्यादा सच्ची-झूठी जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से 24 घंटे लोगों तक पहुंच रही है। क्या फेसबुक? क्या व्हाट्सएप? क्या ट्विटर? हर माध्यम से ऐसी जानकारी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच व पहुंचाई जा रही है । लोग बिना सोचे-समझे, बिना सच्चाई जाने वीडियो, चित्र तथा अन्य सामग्री को 'फॉरवर्ड ’कर रहे हैं। हालात यह हैं कि व्यक्ति जिस संदेश को खुद तैयार करके औरों को भेजता है वही संदेश उसी के पास किसी और के माध्यम से वापस पहुंच जाता है। हमारे देश में यह प्रवृत्ति अन्य देशों के लोगों की तुलना में कहीं अधिक है। कोरोना काल में ऐसा लगता है क्या बड़े क्या छोटे सब डाक्टर व कोरोना विशेषज्ञ बन चुके हैं। जबकि ऐसे परोसे जाने वाले अधिकांश संदेश, वीडियो और अन्य सामग्री फेक होती हैं। अपनी फेसबुक वॉल, वाटसप या ट्विटर अकाउंट के माध्यम से अफवाहें फैला कर ज्यादा-से-ज्यादा हिट्स व लाईक हासिल करना ही ऐसे लोगों का एकमात्र प्रमुख उद्देश्य होता है । कोरोना वायरस के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। 

करोड़ों स्मार्टफोन उपयोगकर्ता बिना किसी शोध या समझ के ऐसे संदेशों को धड़ाधड़ आगे पास करना शुरू कर देते हैं । ऐसी अफवाहें व फर्जी खबरें ही समाज व देश में भय का माहौल बनाती हैं। चिंता का विषय यह भी है कि एक तरफ मानव जाति का कोरोना से जीवन-मृत्यु का संघर्ष चला हुआ तो दूसरी ओर फर्जी खबरों और अफवाहों का प्रचार-प्रसार हो रहा है। सोशल मीडिया ने इस दिशा में सकारात्मक कम और नकारात्मक माहौल ज्यादा बनाया है। यदि इसे दोधारी तलवार कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हां यह सस्ता और उपयोगी है इसकी पहुंच भी आसान है, घड़ी पल में ही सोशल मीडिया दुनियाभर के लोगों के सामने असंख्य सूचनाएं सामने रख देता है लेकिन सूचनाओं के इस खजाने ने बड़े पैमाने पर फर्जी-मनगढ़ंत खबरें व कंटेंट फैलाने का काम भी किया है। अफ़वाहों की इस भट्ठी में बहुत से लोग फर्जी खबरों का ईंधन डालकर समाज में नफरत की आग लगा कर भय का वातावरण बना रहे हैं जिससे लोग तनावग्रस्त हो रहे हैं। कोरोना वायरस को लेकर गलत जानकारी व अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कोविड-19 'फैक्ट चेक यूनिट' एक पोर्टल बनाया है और यह काम भी कर रहा है । इस पोर्टल से लोग कोरोना संक्रमण से जुड़ी सभी तरह की जानकारी हासिल कर सकते हैं, भ्रामक व फर्जी खबरों का सत्यापन भी इस पोर्टल के माध्यम से किया जा सकता है। 

सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का यह कहना सही है कि प्रेस की आजादी की आड़ में फर्जी खबरें फैलाना कतई सही नहीं। बहुत से सर्वे में सामने आया है कि सोशल मीडिया पर चल रही कोरोना वायरस संबंधी जानकारियां या खबरें 50-80 फीसदी ‘फर्जी’ हैं। नागपुर के राष्ट्रसंत तुकोजी महराज यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग ने 28 मार्च से 4 अप्रैल के दौरान 1200 लोगों के बीच ऐसा ही एक सर्वे किया जिसमें 40 फीसदी लोगों का मानना था कि सोशल मीडिया पर मिल रही जानकारी 50-80 फीसदी फर्जी है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का मानना ​​है कि नकली समाचार न केवल स्वास्थ्य बल्कि आर्थिक और सामाजिक क्षति का कारण भी बनते हैं।  इंटरनेशनल फैक्ट चेकिंग नेटवर्क द्वारा जारी किए गए आंकड़े भी चौंका देने वाले हैं, मार्च के अंतिम सप्ताह में 243 फर्जी समाचार सामने आए जिनमें से 24 फीसदी सरकारों से संबंधित थे और 16 फीसदी कोरोना उपचार से संबंधित थे। स्थिति को भांपते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सतर्क हो गए हैं अकेले फेसबुक ने मार्च में इस तरह की 4 करोड़ पोस्टें डिलीट की।  

ट्विटर ने भी इस तरह के फर्जी कंटेंट को हटाने का काम शुरू कर रखा है ।  गूगल और यूट्यूब ऐसी सामग्री पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। व्हाट्सएप ने संदेशों को अग्रेषित करने की क्षमता को सीमित कर दिया है। इन्हीं चीजों के चलते संदेश अग्रेषण में 70 फीसदी की कमी आई है। टिकटॉक ने गलत सूचनाओं के वीडियो आदि को हटाने के लिए टीमों का गठन कर रखा है। लंदन स्थित एक शोध केंद्र के अनुसार जनवरी और मार्च के बीच कोविड -19 वैक्सीन पर 24 करोड़  डिजिटल और सोशल मीडिया संदेश भेजे गए थे। इनमें से 35 फीसदी वीडियो, 29 फीसदी टेक्स्ट, 29 फीसदी तस्वीरें तथा 3 फीसदी ऑडियो संदेश थे। इनमे से ज़्यादातर विश्वसनीय नहीं थे। एक सर्वे में यह बात भी सामने आई कि सोशल मीडिया के इस तरह के फर्जी कंटेट पर 35 फीसदी लोग आंखें मूंदकर विश्वास कर लेते हैं। वहीं एक वर्ग फर्जी खबरों व जानकारियों से हमेशा चिंतित रहता है। 

इन्हीं फर्जी खबरों से देश में विभिन्न जातियों व समुदायों के बीच में हिंसा की कई घटनाएं हो चुकी हैं। लोगों व व्यापारिक संस्थानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। कई बार तो बड़ी-बड़ी कंपनियों को शेयर बाजार में फर्जी खबरों के कारण हजारों करोड़ रुपये तक का नुकसान उठाना पड़ा है। यही कारण है देश में साइबर क्राइम का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। फर्जी खबरों व जानकारियों से होने वाली आर्थिक हानि से देश की आर्थिक वृद्धि में बाधाएँ खड़ी होती हैं। अफवाह फैलाने वाले ज़्यादातर लोग पढें लिखे व चालाक होते हैं यह इस कार्य को एक व्यवसाय के रूप में करते हैं । अन्य लोग भी भय के कारण ऐसी अफवाहों को आगे बढ़ाने से गुरेज नहीं करते। 

सरकारों व लोगों को इस तरह की प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक-दूसरे का सहयोगी बनना होगा। समाज को सोशल मीडिया पर निर्भरता कम करने की जरूरत है। एक तरफ़ विश्व कोरोना से लड़ रहा है और दूसरी तरफ़ समाज कोरोना से जुड़ी भ्रामक व फर्जी खबरों से जूझ रहा है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कोरोना तो अभी आया है देर सवेर चला भी जाएगा लेकिन अफवाहों व फर्जी खबरों का दौर बहुत पुराना है अब तो इसने अपनी जड़ें और गहरी कर ली हैं, आपदा के दौर में यह सहायक नहीं खलनायक की भूमिका निभा रहा है। कोरोना के डर को जिस तरह सोशल मीडिया की लैब में अपग्रेड करके बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि भले ही कोई कोरोना से न मरे लेकिन अफवाहें व फर्जी खबरें इंसान को जरूर डरा कर मार देंगी। 

(राजेश वर्मा)
 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!