डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन

Edited By Seema Sharma,Updated: 20 Aug, 2019 04:38 PM

sarvepalli radhakrishnan

भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है द्य बचपन से किताबें पढ़ने के शौकीन राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था।

भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है द्य बचपन से किताबें पढ़ने के शौकीन राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। साधारण परिवार में जन्में राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता । वह शुरू से ही पढाई.लिखाई में काफी रूचि रखते थेए उनकी प्राम्भिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई और आगे की पढाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई। स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे ए जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था। कम उम्र में ही आपने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढा तथा उनके विचारों को आत्मसात भी किया। आपने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति भी प्राप्त की ।

 

क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास ने भी उनकी विशेष योग्यता के कारण छात्रवृत्ति प्रदान की। डॉ राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एमण्एण् किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला। डॉ राधाकृष्णन के नाम में पहले सर्वपल्ली का सम्बोधन उन्हे विरासत में मिला था। राधाकृष्णन के पूर्वज सर्वपल्ली नामक गॉव में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी गॉव में बस गये। लेकिन उनके पूर्वज चाहते थे किए उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गॉव का बोध भी सदैव रहना चाहिए। इसी कारण सभी परिजन अपने नाम के पूर्व सर्वपल्ली धारण करने लगे थे। डॉक्टर राधाकृष्णन पूरी दुनिया को ही एक विद्यालय के रूप में देखते थे । उनका विचार था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सही उपयोग किया जा सकता है। अतरू विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए। अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से भारतीय दर्शन शास्त्र कों विश्व के समक्ष रखने में डॉ राधाकृष्णन का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

 

सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई। किसी भी बात को सरल और विनोदपूर्ण तरीके से कहने में उन्हें महारथ हांसिल था यही कारण है की फिलोसोफी जैसे कठिन विषय को भी वो रोचक बना देते थे। वह नैतिकता व आध्यात्म पर विशेष जोर देते थेय उनका कहना था किए श्आध्यात्मक जीवन भारत की प्रतिभा है। 1915 में डॉ राधाकृष्णन की मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हुई। उनके विचारों से प्रभावित होकर राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समर्थन में अनेक लेख लिखे। 1918 में मैसूर में वे रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिले । टैगोर ने उन्हें बहुत प्रभावित किया ए यही कारण था कि उनके विचारों की अभिव्यक्ति हेतु डॉक्टर राधाकृष्णन ने 1918 में ष्रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शनष् शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। वे किताबों को बहुत अधिक महत्त्व देते थेए उनका मानना था किए श्पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।

 

उनकी लिखी किताब ष्द रीन आफ रिलीजन इन कंटेंपॅररी फिलॉस्फीष् से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली । गुरु और शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ राधाकृष्णन अपने विद्यार्थियों का स्वागत हाथ मिलाकर करते थे। मैसूर से कोलकता आते वक्त मैसूर स्टेशन डॉण् सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जय-जयकार से गूंज उठा था। ये वो पल था जहाँ हर किसी की आँखे उनकी विदाई पर नम थीं। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव केवल छात्राओं पर ही नही वरन देश.विदेश के अनेक प्रबुद्ध लोगों पर भी पङा। रूसी नेता स्टालिन के हृदय में फिलॉफ्सर राजदूत डॉण् सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रति बहुत सम्मान था। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनेक देशों की यात्रा किये। हर जगह उनका स्वागत अत्यधिक सम्मान एवं आदर से किया गया। अमेरिका के व्हाईट हाउस में अतिथी के रूप में हेलिकॉप्टर से पहुँचने वाले वे विश्व के पहले व्यक्ति थे। डॉण् राधाकृष्णन ने कई विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र बनाने में अपना योगदान दिया।

 

वे देश की तीन प्रमुख यूनिवर्सिटीज में कार्यरत रहे 1931-1936 वाइस चांसलर ए आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय 1939 .1948 चांसलर ए बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय 1953 - 1962 चांसलर एदिल्ली विश्वविद्यालय डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिभा का ही असर था किए उन्हें स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। 1952 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर राधाकृष्णन सोवियत संघ के विशिष्ट राजदूत बने और इसी साल वे उपराष्ट्रपति के पद के लिये निर्वाचित हुए। 1954 में उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1962 में राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। 13 मईए 1962 को 31 तोपों की सलामी के साथ ही डॉण् सर्वपल्ली राधाकृष्णन की राष्ट्रपति के पद पर ताजपोशी हुई। सिद्द दार्शनिक बर्टेड रसेल ने डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर कहा था दृ श्यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं विशेषतरू खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है।

 

बच्चों को भी इस महान शिक्षक से विशेष लगाव था ए यही कारण था कि उनके राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद विद्यार्थियों का एक दल उनके पास पहुंचा और उनसे आग्रह किया कि वे 5  सितम्बर उनके जन्मदिन को टीचर्स डे यानि शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन इस बात से अभिभूत हो गए और कहा मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के आपके निश्चय से मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करूँगा। तभी से 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। डॉ राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे ए और कार्यकाल पूरा होने के बाद मद्रास चले गए। वहाँ उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया।

 

उनका पहनावा सरल और परम्परागत था ए वे अक्सर सफ़ेद कपडे पहनते थे और दक्षिण भारतीय पगड़ी का प्रयोग करते थे। इस तरह उन्होंने भारतीय परिधानों को भी पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। डॉ राधाकृष्णन की प्रतिभा का लोहा सिर्फ देश में नहीं विदेशों में भी माना जाता था। विभिन्न विषयों पर विदेशों में दिए गए उनके लेक्चर्स की हर जगह प्रशंशा होती थी । श्मौत कभी अंत या बाधा नहीं है बल्कि अधिक से अधिक नए कदमो की शुरुआत है।श् ऐसे सकारात्मक विचारों को जीवन में अपनाने वाले असीम प्रतिभा का धनी सर्वपल्ली डॉण् राधाकृष्णन लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैलए 1975 को प्रातःकाल इहलोक लोक छोङकर परलोक सिधार गये। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी। परंतु अपने समय के महान दार्शनिक तथा शिक्षाविद् के रूप में वे आज भी अमर हैं। शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉण्सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन का कहना है किए जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है।

जीवन धीमान नालागढ़

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