Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 May, 2018 03:03 PM
एक बार श्री गुरू नानक देव जी अपने अभिन्न साथी भाई मरदाना जी के साथ भ्रमण करते हुए एक ऐसे गांव पहुंचे जहां के लोग नास्तिक प्रवृत्ति के थे। उनकी ईश्वर,धर्म-कर्म,पूजा- पाठ में कोई आस्था नहीं थी। साधु-महात्माओं को वे ढोंगी का दर्जा देते थे। श्री गुरू...
एक बार श्री गुरू नानक देव जी अपने अभिन्न साथी भाई मरदाना जी के साथ भ्रमण करते हुए एक ऐसे गांव पहुंचे जहां के लोग नास्तिक प्रवृत्ति के थे। उनकी ईश्वर,धर्म-कर्म,पूजा- पाठ में कोई आस्था नहीं थी। साधु-महात्माओं को वे ढोंगी का दर्जा देते थे। श्री गुरू नानक देव जी का विचार रात भर इस गांव में विश्राम कर अगले दिन अन्यत्र प्रस्थान करने का था। जबउनके आने की सूचना गांव वालों को मिली,तो उन्होंने उनका तिरस्कार किया। जो लोग उनके पास पहुंचे भी उन्होंने भी कड़वे बोल बोलकर उन्हें आहत करने का प्रयत्न किया,परन्तु श्री गुरू नानक देव जी बिना प्रतिक्रिया दिए शांत रहे। अगले दिन जब वे प्रस्थान करने को तैयार हुए ,तो कुछ लोगों ने उनका उपहास करते हुए कहा,जाते-जाते कोई आशीर्वाद तो देते जाओ। इस बात पर मुस्कुराते हुए श्री गुरू नानक देव जी ने कहा,‘हमेशा आबाद रहो।’ आगे के गांव वालेलोगों ने श्री गुरू नानक देव जी तथा भाई मरदाना जी का बहुत आदर-सत्कार किया। बाबा जी ने प्रसन्न हो कर उन लोगों को कहा,‘बिखर जाओ’। बाबा जी की ये बात भाई मरदाना जी को कुछ विचित्र लगी। वे स्वयं को इसका कारण पुछने से रोक न सके। उन्होंने पुछा,‘गुरूदेव आपने उन लोगों को आबाद रहने का आशीर्वाद दिया जिन्होंने आपका तिरस्कार किया और उन्हें बिखर जाने का आशीर्वाद दिया जिन्होंने आपका इतना सत्कार किया। ऐसा क्यों ?’ गुरू नानक देव जी ने उत्तर दिया,‘मरदानियां,सज्जन लोग जहां भी जायेंगे,वहां का वातावरण उत्तम कर देंगे। इसलिए मैंने उन्हें बिखर जाने का आशीर्वाद दिया। दुर्जन लोग जहां भी जायेंगे वहां का वातावरण दूषित कर देंगे। इसलिए मैंने उन्हें आबाद रहने को कहा।
रमेश बग्गा चोहला
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