ग्रीष्म ऋतु......उफ्फ कितनी गर्मी है

Edited By Seema Sharma,Updated: 10 Apr, 2019 01:32 PM

summer season

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख एवं ज्येष्ठ का माह भारत में ग्रीष्म ऋतु कहलाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार माह अप्रैल से मध्य जून की समयावधि ग्रीष्म ऋतु में आती है। इस ऋतु में रातें छोटी व दिन लम्बे होते हैं। इस ऋतु में सूर्योदय के साथ ही तपन बढ़ना...

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख एवं ज्येष्ठ का माह भारत में ग्रीष्म ऋतु कहलाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार माह अप्रैल से मध्य जून की समयावधि ग्रीष्म ऋतु में आती है। इस ऋतु में रातें छोटी व दिन लम्बे होते हैं। इस ऋतु में सूर्योदय के साथ ही तपन बढ़ना प्रारंभ हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु अपने नाम के अनुसार गर्म व तपन से भरी मानी जाती है। पोखर व तालाब इत्यादि सूखने लगने हैं। अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण ही इसे ग्रीष्म नाम दिया गया है। ग्रीष्म ऋतु में सभी प्राणी गर्मी की मार से बेहाल हो जाते हैं। लू के थपेड़ों से जीना मुश्किल होने लगता है। हजारों लोगों की मृत्यु प्रति वर्ष भीषण गर्मी के कारण होती है। हालांकि विज्ञान की प्रगति ने लोगों को गरमी से बचने हेतु पंखा, कूलर एवं ए०सी० इत्यादि उपलब्ध करा दिया है, किन्तु गरीबों को यह सुविधा नहीं मिल पाती। गरीब व्यक्ति का जीवन आज भी प्रकृति की दया पर ही निर्भर है। अत्यधिक गरमी व तपन के कारण स्कूल एवं कॉलेज में छुट्टियाँ घोषित कर दी जाती है। कई कार्यालयों का समय परवर्तित कर प्रातःकाल से कर दिया जाता है। सड़कों में जगह-जगह शर्बत, लस्सी एवं कोल्ड-ड्रिंक के स्टाल सज जाते हैं। इस मौसम के विशेष फल 'आम' को बहुत पसंद किया जाता है। तरह-तरह की आइस-क्रीम सभी का मन लुभाती हैं। ग्रीष्म में पृथ्वी का प्रत्येक प्राणी गरमी की मार से व्यथित हो रहा होता है। गरम लू लोगों को त्रस्त कर डालती है। लू लगने से हर वर्ष हज़ारों लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

ऋतु में मौसमी फलों ; जैसे - जामुन , शहतुत , आम , खरबूजे , तरबूज आदि फलों की बहार आई होती है। अत्यधिक गरमी के कारण लोग परेशान व बेहाल हो जाते हैं। लोग इस समय नींबू पानी , लस्सी और बेलपथरी का रस पीकर गरमी को दूर भागने का प्रयास करते हैं। लोग दोपहर में घर से निकलना बंद कर देते हैं। दोपहर के समय चारों तरफ सन्नाटा छा जाता है। भारत में मध्य जून में सूरज गरमा रहा होता है। मुहल्लों की गलियां सन्नाटों से भर उठती हैं। देर रात की भीड़-भाड़ बढ़ जाती है। मौसम अनमना होने लगता है। इसी समय प्रारंभ होते हैं ग्रीष्मकाल के अनेक आयोजन और मनोरंजन। वातानुकूलन, तरह तरह के ठंडे-मीठे व्यंजनों और मानव निर्मित तरणतालों ने गरमी के मौसम का मज़ा बनाए रखा है पर प्राचीनकाल में जब तकनीकी विकास आज जैसा नहीं था, तब गरमी के लंबे दिन कैसे कटते होंगे?हज़ारों साल पहले भारतीय गरमी के मौसम का आनंद कैसे उठाते थे इसके रोचक प्रसंग साहित्य में मिलते हैं। हड़प्पा काल के लोगों ने अपने घरों में एक फ्रिज बना रखा था।

वे मिट्टी के संदूक का आकार बनाते जिसके एक भाग में जल कोवाष्पीकृत किया जाता। इस प्रक्रिया द्वारा जब एक ग्राम पानी सूख कर वाष्प बनता तो साढ़े पाँच सौ कैलरी गरमी सोख लेता और मिट्टी के इस संदूक में पानी आठ अंश दस अंश सेंटीग्रेट तापमान तक ठंडा रहता। खाने पीने के अन्य सामान भी इसमें रखे जाते थे। हर ऋतु का अपना एक अलग ही महत्व होता है । ग्रीष्म ऋतु भी आवश्यक है धरती पर संतुलन बनाए रखने के लिये। प्रकृति ने भी कैसा सोचा समझा भूगोल बनाया है । कहीं एक विशेष स्थान पर अत्यधिक गरमी पड़ती है तो उसी क्षण किसी दूसरी जगह मूसलाधार बारीश का मौसम होता है । हो स्थान समुन्द्र तल के जितना निकट है वह सदैव मध्यम रूप से गरम ही रहता है । समुन्द्र तल से जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जाती है तापमान में गिरावट बढ़ती जाती है। तो, लुत्फ उठाईए इस जबरदस्त गर्मी का भी। पहाड़ी स्थल भ्रमण के कई विकल्प मौजूद हैं । उतरांचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, या फिर पूर्वी राज्यों में भी आजकल टूरिज़्म को काफी प्रोत्साहित किया जा रहा है।

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