नैतिकता बनाम समलैगिकता का अंत।

Edited By pooja,Updated: 07 Sep, 2018 02:59 PM

the end of ethics versus homosexuality

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की धारा 377 में सुधार करते हुए समलैगिकता को अपराध की श्रेणी से बहार कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की धारा 377 में सुधार करते हुए समलैगिकता को अपराध की श्रेणी से बहार कर दिया है। 1861 में अंग्रेजों ने भारत में समलैंगिको के मध्य संबंधों को अपराध समझा जाता था उनके लिए कानून में 10 वर्ष से लेकर उम्रकैद तक के सजा का प्रावधान था। चर्च और विक्टोरियन नैतिकता के दवाब से 16वी सदी से चली आ रही इस कानून से अमेरिका और यूरोप स्वमं को कई दशक पूर्व ही मुक्त कर लिए, किन्तु भारत और अन्य देशों में अब भी ये कानूनन अपराध बना हुआ था। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीबन 72 ऐसे देश है जहाँ आज भी समलैगिकता अपराध है। भारत के पडोसी  देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, सिंगापूर, मौरिसर्श जैसे देशों में अभी भी समलैगिकता को लेकर करे कानून मौजूद है।
 
भारत जैसे देश में इस तरह कानून का 157 सालों तक बना रहना अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण था। समलैगिकता को लेकर हमारे पूर्वज हमसे शायद ज्यादा सहिष्णु थे। समलैगिकता का उल्लेख हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। वात्सल्यन द्वारा रचित ग्रन्थ ‘कामसूत्र’ में बाकायदा इसको लेकर एक अध्याय लिखा गया है। साथ ही साथ कई प्राचीन मंदिरों के कलाकृतियों में समलैगिकता का उदाहरण देखने को मिलता है, अर्थात अतीत में भारतवर्ष में समलैगिकता को लेकर हम सहज थे तथाउनका भी समाज में एक सम्मानित स्थान था, ऐसे में आधुनिक समाज में जो स्वमं को ज्यादा शिक्षित और व्यवस्थित मानता है उसमें ऐसे कानून का होना समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। भारत में समलैगिकता को लेकर पहला मामला, अविभाजित भारत में सन 1925 में खानू बनाम सम्राट का समलैंगिकता से था। जिसमे यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानुत्पति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।

समय के साथ देश में समलैगिकता को लेकर व्यापक बहस छिड़ा, मामला दिल्ली हाइकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक आई। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के
समलैंगिको के हक़ वाले फैसले को पलटते हुए इसका फैसला देश के सांसद पर छोड़ दिया। समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बहार रखने के लिए सांसद शशि थरूर ने संसद में निजी बिल रखा। धीरे-धीरे मुखर होते आंदोलन में 2005 को गुजरात के राजपिपला के राजकुमार ने पहला शाही गे होने की घोषणा की। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री भी इस विषय के मद्देनजर ‘दोस्ताना’, ‘हनीमून ट्रेवल प्रा लिमिटिड’ जैसी कई फिल्मों के द्वारा समर्थन जताया। पहली गे पत्रिका ‘बॉम्बे दोस्त’ की
शुरुवात हुई। समलैगिकता को लेकर समाज में व्याप्त अवधारणाओं को समाप्त करते हुए आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने ‘नैतिकता बनाम समलैगिकता’ की बहस को ख़त्म करते हुए। समलैगिकता को अपराध के श्रेणी से मुक्त कराया, अब ये सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि इसे समाज में सही तरीके से अपनाया जाए और उनका सम्मान किया जाए।

> संदीप सुमन

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