मिशन चंद्रयान-2: सम्पर्क टूटा है संकल्प नहीं, वैज्ञानिकों के हौसले को देश का नमन

Edited By vasudha,Updated: 10 Sep, 2019 05:42 PM

the nation salutes the scientists

भारत की शान "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन" (इसरो) के वैज्ञानिकों के लम्बे अथक प्रयास से चलाये गये पूर्ण रूप से स्वदेश निर्मित तकनीक पर आधारित "मिशन चंद्रयान-2" में, भारत शुक्रवार की रात इतिहास रचने से मात्र दो क़दम दूर रह गया...

भारत की शान "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन" (इसरो) के वैज्ञानिकों के लम्बे अथक प्रयास से चलाये गये पूर्ण रूप से स्वदेश निर्मित तकनीक पर आधारित "मिशन चंद्रयान-2" में, भारत शुक्रवार की रात इतिहास रचने से मात्र दो क़दम दूर रह गया। अभियान के अंतिम समय पर अगर लैंडर विक्रम से इसरो के वैज्ञानिकों का संपर्क बना रहता और सब कुछ ठीक रहता। तो आज भारत दुनिया पहला ऐसा देश बन जाता जिसका अंतरिक्ष यान चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव के क़रीब उतरता। इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने ही चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन वो भी दक्षिणी ध्रुव पर नहीं। क्योंकि कहा जाता है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाना बहुत जटिल है। अपने अंतिम क्षणों में भारत भी मिशन
चन्द्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर रह गया।

 

जिस तरह के बुलंद हौसलों के साथ भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रमा को अपने आगोश में लेने के लिए मिशन "चंद्रयान-2" की चांद पर सफल लैन्डिंग कराने का प्रयास किया वह काबिलेतारीफ है। देश की जनता इसरो के सभी वैज्ञानिकों व कर्मचारियों के बुलंद हौसलों को नमन् करती है। देश के इस महत्वाकांक्षी "मिशन चंद्रयान-2" को शनिवार तड़के उस समय बड़ा झटका
लगा, जब मिशन के अंतिम क्षणों में लैंडर विक्रम का चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों से संपर्क टूट गया। सम्पर्क टूटने कि इस बड़ी घटना के साथ ही इसरो के वैज्ञानिक इतिहास दर्ज कराने से भी महज एक कदम दूर रह गये। इस मिशन के समीक्षकों का मानना है कि यह मिशन 95 प्रतिशत कामयाब रहा व मात्र 5 प्रतिशत नाकामयाब रहा है। क्योंकि विक्रम लैंडर से भले ही निराशा मिली है लेकिन यह मिशन नाकाम नहीं रहा है, क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में अपना काम सही ढंग से कर रहा है। इस ऑर्बिटर में कई साइंटिफिक उपकरण हैं जो कि बहुत ही अच्छे से काम कर रहे हैं। इस घटना के साथ ही इसरो के 978 करोड़ रुपये लागत वाले इस महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के भविष्य पर अब सस्पेंस बन गया है। इसरो के वैज्ञानिक लैंडर विक्रम से संपर्क साधने का लगातार प्रयास कर रहे है।

 

इस मिशन पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने इसरो के वैज्ञानिकों का लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने का ऐलान करते हुए कहा कि चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी पहले तक लैंडर विक्रम का काम वैज्ञानिकों की प्लानिंग के मुताबिक सफलतापूर्वक चल रहा था। उन्होंने बताया कि उसके बाद लैंडर विक्रम का संपर्क टूट गया हैं। हम उसके डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो के मुख्यालय बेंगलुरु पहुंचे थे। लेकिन आख़िरी पल में मिशन चंद्रयान-2 का 47
दिनों का सफ़र अधूरा रह गया।

 

आईये जानते है आखिर क्या है भारत का महत्वाकांक्षी "मिशन चंद्रयान-2"

*मिशन चंद्रयान-2 की शुरुआत -:* इस मिशन की नींव 12 नवम्बर 2007 को रखी गयी थी। जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) के प्रतिनिधियों ने चंद्रयान-2 परियोजना पर साथ काम करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। जिसके अनुसार ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की होगी तथा रोसकोसमोस लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा।

मिशन चंद्रयान-2 को तत्कालीन भारत सरकार ने 18 सितंबर 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में स्वीकृति दी थी। अंतरिक्ष यान के डिजाइन को अगस्त 2009 में पूर्ण कर लिया गया था। हालांकि इसरो ने चंद्रयान -2 कार्यक्रम के अनुसार पेलोड को अंतिम रूप दिया। परंतु अभियान को जनवरी 2013 में स्थगित कर दिया गया तथा अभियान को 2016 के लिये पुनर्निर्धारित किया। क्योंकि रूस लैंडर को समय पर विकसित करने में असमर्थ था।रोसकोसमोस को बाद में मंगल ग्रह के लिए भेज़े फोबोस-ग्रन्ट अभियान मे मिली विफलता के कारण चंद्रयान-2 कार्यक्रम से अलग कर दिया गया था। तथा भारत ने चंद्रयान-2 मिशन को स्वतंत्र रूप से इसरो के नेतृत्व में विकसित करने का फैसला किया था।

*मिशन चंद्रयान-2 का उद्देश्य -:* आपको बता दे कि इसरो का बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 अब तक के सभी मिशनों से भिन्न है। करीब दस वर्ष के लम्बे वैज्ञानिक अनुसंधान और अभियान्त्रिकी विकास के कामयाब दौर के बाद चंद्रयान-2 को इस मिशन पर भेजा गया था। इस मिशन का लक्ष्य भारत के द्वारा चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अब तक के अछूते भाग के बारे में जानकारी हासिल करके इतिहास रचना था। इस मिशन के द्वारा व्यापक भौगौलिक, मौसम सम्बन्धी अध्ययन, चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्त्व में आने और उसके क्रमिक विकास की और ज़्यादा जानकारी मिल पाती। इसके चंद्रमा पर रहने के दौरान हम चाँद की सतह पर अनेक और परिक्षण भी करते जिनमें चाँद पर पानी होने की पुष्टि और वहां अनूठी रासायनिक संरचना वाली नई किस्म की चट्टानों का विश्लेषण शामिल हैं। मिशन चंद्रयान-2 से चाँद की भौगोलिक संरचना, भूकम्पीय स्थिति, खनिजों की मौजूदगी और उनके वितरण का पता लगाने, सतह की रासायनिक संरचना, ऊपर मिट्टी की ताप भौतिकी विशेषताओं का अध्ययन करके चन्द्रमा के अस्तित्व में आने तथा उसके क्रमिक विकास के बारे में नई जानकारियां मिल पाती।

 

इस मिशन के दौरान ऑर्बिटर पे-लोड 100 किलोमीटर दूर की कक्षा से रिमोट सेंसिंग अध्ययन करेगा, जो कि पूर्ण रूप से सफलतापूर्वक अपना कार्य करते हुए इसरो के वैज्ञानिकों को लगातार अपने संदेश प्रदान कर रहा है। जिससे भारतीय वैज्ञानिकों का यह मिशन 95 प्रतिशत कामयाब रहा हैं। जबकि लैंडर विक्रम और रोवर पे-लोड लैंडिंग साइट के नज़दीक चन्द्रमा की संरचना समझने के लिए वहां की सतह में मौजूद तत्वों का पता लगाने और उनके वितरण के बारे में जाने के लिए व्यापक स्तर पर और इन - सिटु स्वर पर परीक्षण करता। साथ ही चन्द्रमा के चट्टानी क्षेत्र "रेगोलिथ" की विस्तृत 3-डी मैपिंग की जाती। चन्द्रमा के आयनमंडल में इलेक्ट्रान घनत्व (डेंसिटी) और सतह के पास प्लाज़्मा वातावरण का भी अध्ययन किया जाता। चन्द्रमा की सतह के ताप भौतिकी गुणों (विशेषताओं) और वहां की भूकम्पीय गतिविधियों को भी मापा जाता। इंफ़्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, सिंथेटिक अपर्चर रेडियोमीट्री और पोलरीमिट्री की सहायता से और व्यापक स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकों से चाँद पर पानी की मौजूदगी के ज़्यादा से ज़्यादा आंकड़े इकठ्ठा किए जाते। लेकिन अफसोस मिशन के अंतिम क्षणों कि लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया और मिशन को अपने अंतिम चरण में सफलता की जगह विफलता हाथ लगी।

*चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण -:*
भारत का "मिशन चंद्रयान-2" चंद्रयान-1 मिशन के बाद भारत का दूसरा महत्वाकांक्षी चन्द्र अन्वेषण अभियान है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने विकसित किया है। इस चंद्रयान-2 अभियान को जीएसएलवी संस्करण 3 प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित किया गया। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र कक्षयान, एक रोवर एवं एक लैंडर विक्रम शामिल हैं। इन सब का विकास इसरो के द्वारा किया गया है। भारत ने चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा रेंज के "सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र" प्रक्षेपण स्थल से भारतीय समयानुसार 02:43 अपराह्न को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया था। उसके बाद 14 अगस्त तक पृथ्वी की कक्षा में रहने के बाद चंद्रमा की ओर उसकी यात्रा शुरू हुई थी और छह दिन बाद 20 अगस्त को वह चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा था।

 

*मिशन चंद्रयान-2 के आखिरी क्षण -:* शनिवार तड़के लगभग 1.38 बजे जब 30 किलोमीटर की ऊंचाई से 1,680 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से 1,471 किलोग्राम का लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ना शुरू किया, उस समय तक सबकुछ ठीक था। विक्रम लैंडर योजना के अनुरूप चंद्रमा की सतह पर उतरने के जा रहा था और गंतव्य से 2.1 किलोमीटर पहले तक उसका प्रदर्शन सामान्य था। उसके बाद लैंडर का संपर्क जमीन पर स्थित केंद्र से टूट गया। जिसके डेटा का विश्लेषण वैज्ञानिकों के द्वारा किया जा रहा है।” इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क केंद्र के स्क्रीन पर देखा गया कि विक्रम अपने निर्धारित पथ से थोड़ा हट गया और उसके बाद उसका संपर्क टूट गया। लैंडर बड़े ही आराम से नीचे उतर रहा था, लैंडर ने सफलतापूर्वक अपना रफ ब्रेक्रिंग चरण को पूरा किया और यह अच्छी गति से सतह की ओर बढ़ रहा था। उसके बाद मात्र 2.1 किलोमीटर की दूरी पर इसरो का विक्रम से संपर्क टूट गया। हालांकि 978 करोड़ रुपये लागत वाले चंद्रयान-2 मिशन में सभी कुछ समाप्त नहीं हुआ है। इस मिशन के सिर्फ 5 प्रतिशत भाग लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर वाले हिस्से कोनुकसान हुआ  है, जबकि बाकी 95 प्रतिशत भाग चंद्रयान-2 व ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा के सफलतापूर्वक चक्कर काट रहा है। एक साल मिशन अवधि वाला ऑर्बिटर चंद्रमा की तस्वीरें लेकर लगातार इसरो को भेज रहा है। भविष्य में यह भी संभावना है कि ऑर्बिटर लैंडर विक्रम की तस्वीरें भी लेकर भेज सकता है, जिससे उसकी सही स्थिति के बारे में पता चल सकता है। इस मिशन के लिए बने चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान में तीन खंड हैं -ऑर्बिटर (2,379 किलोग्राम, आठ पेलोड), विक्रम (1,471 किलोग्राम, चार पेलोट) और प्रज्ञान (27 किलोग्राम, दो पेलोड)। विक्रम दो सितंबर को आर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग हो गया था।

इस महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम के चंद्रमा की सतह पर उतरने की प्रक्रिया का जीवंत प्रसारण का अवलोकन करने के लिए इसरो के बेंगलुरु स्थित टेलीमेंट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) केन्द्र में खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मौजूद थे। जिन्होंने लैंडर विक्रम का संपर्क टूटने के बाद इसरो के चेयरमैन डॉक्टर के. सिवन और वहां मौजूद सभी वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा, “ जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है, देश को आप पर गर्व है, बेहतर की उम्मीद रखें।”

 

*मिशन चंद्रयान-2 पर प्रधानमंत्री का संबोधन -:*
मिशन की विफलता के बाद प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह आठ बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए वैज्ञानिकों की हौसलाअफजाई करते हुए कहा कि,''आप वो लोग हैं जो माँ भारती के लिए उसकी जय के लिए जीते हैं। आप वो लोग हैं जो माँ भारती के जय के लिए जूझते हैं। आप वो लोग हैं जो माँ भारती के लिए जज्बा रखते हैं। और इसलिए माँ भारती का सिर ऊंचा हो इसके लिए पूरा जीवन खपा देते हैं। अपने सपनों को समाहित कर देते हैं। साथियों मैं कल रात को आपकी मनोस्थिति को समझता था। आपके आंखें बहुत कुछ कहती थीं। आपके चेहरे की उदासी मैं पढ़ पाता था और उसलिए ज्यादा देर मैं आपके बीच नहीं रुका। कई रातों से आप सोए नहीं है फिर भी मेरा मन करता था कि एक बार सुबह फिर से आपको बुलाऊं आपसे बातें करूं।"

 

प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा, ''इस मिशन के साथ जुड़ा हुआ हर व्यक्ति एक अलग ही अवस्था में था। बहुत से सवाल थे और बड़ी सफलता के साथ आगे बढ़ते हैं और अचानक सबकुछ नजर आना बंद हो जाए। मैंने भी उस पल को आपके साथ जिया है जब कम्युनिकेशन ऑफ आया और आप सब हिल गए थे। मैं देख रहा था उसे। मन में स्वाभाविक प्रश्न था क्यों हुआ कैसे हुआ। बहुत सी उम्मीदें थी। मैं देख रहा था कि आपको उसके बाद भी लगता था कि कुछ तो होगा। क्योंकि उसके पीछे आपका परिश्रम था। पल-पल आपने इसको बड़ी जिम्मेदारी बढ़ाया था। साथियों आज भले ही कुछ रुकावटे हाथ लगी हों, लेकिन इससे हमारा हौसला कमजोर नहीं पड़ा है। बल्कि और मजबूत हुआ है।''

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ''हम अपने रास्ते के आखिरी कदम पर रुकावट पर आई हो, लेकिन हम इससे अपने मंजिल के रास्ते से डिगे नहीं है। आज भले ही हम अपनी योजना से आज चाँद पर नहीं जाए लेकिन किसी कवि को आज की घटना का लिखना होगा तो जरूर लिखेगा कि हमनें चाँद का इतना रोमांटिक वर्णन किया है कि चंद्रयान के स्वभाव में भी वह आ गया। इसलिए आखिरी चरण में चंद्रयान चंद्रमा को गले लगाने के लिए दौड़ पड़ा। आज चंद्रमा को छूने की हमारी इच्छा शक्ति, संकल्प और प्रबल और भी मजबूत हुई है। बीते कुछ घंटे से पूरा देश जगा हुआ है। हम अपने वैज्ञानिकों के साथ खड़े हैं और रहेंगे। हम बहुत करीब थे लेकिन हमें आने वाले समय में और दूरी तय करना है। सभी भारतीय आज खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे है। हमें अपने स्पेस प्रोग्राम और वैज्ञानिकों पर गर्व है।''

(दीपक कुमार त्यागी)

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