देश में चल रहे ‘1-1 अध्यापक’ और ‘1-1 कमरे’ वाले ‘1 लाख स्कूल’

Edited By ,Updated: 29 Mar, 2017 09:54 PM

1 million teachers running in the country and 1 million schools with 1 1 room

जनता को स्वच्छ पानी, अनवरत बिजली, सस्ती व स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा ....

जनता को स्वच्छ पानी, अनवरत बिजली, सस्ती व स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा उपलब्ध करवाना केन्द्र और राज्य सरकारों का कत्र्तव्य है परन्तु इस दिशा में सरकारों का ध्यान न के बराबर ही है। 

संसद द्वारा 26 अगस्त 2009 को कानून के रूप में अधिसूचित ‘राइट टू एजुकेशन’ (आर.टी.ई.) के अंतर्गत केंद्र सरकार की ओर से 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा की गारंटी दी गई और इसे 1 अप्रैल 2010 को लागू भी कर दिया गया। इसके अंतर्गत अन्य बातों के अलावा स्कूली लड़के-लड़कियों को अलग शौचालय, स्वच्छ पेयजल, अच्छे क्लास रूम, पर्याप्त अध्यापक आदि उपलब्ध करना वांछित है परंतु लागू होने के 7 वर्ष बाद भी यह योजना स्कूलों को बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने में असफल रही है। अधिकांश सरकारी स्कूलों में उपरोक्त आवश्यक सुविधाएं नदारद हैं।

प्राइमरी एवं सैकेंडरी स्कूलों के स्तर पर तो हालत बहुत ही खराब है तथा इनमें बुनियादी ढांचे के साथ-साथ लगभग 10 लाख अध्यापक-अध्यापिकाओं के अलावा अन्य स्टाफ की भी कमी है। ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून के अनुसार देश में सभी सरकारी और निजी स्कूलों में प्रत्येक 30-35 छात्रों पर एक अध्यापक होना चाहिए परंतु देश में एक लाख के आसपास (97,923) प्राइमरी और सैकेंडरी स्कूल ऐसे हैं जो मात्र एक-एक अध्यापक के सहारे ही चल रहे हैं जो इन स्कूलों के मुख्याध्यापक, अध्यापक, क्लर्क और चपड़ासी सभी कुछ हैं। ज्यादातर स्कूल 1-1 कमरे में चल रहे हैं और इनमें प्राइमरी स्कूलों की संख्या 82,000 है। जब भी इन स्कूलों में पढ़ाने वाला कोई अध्यापक बीमार हो जाता है तो इन स्कूलों में भी छुट्टी कर दी जाती है। 

‘जिलावार एकीकृत शिक्षा संबंधी सूचना प्रणाली’ द्वारा एकत्रित वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में देश भर में सर्वाधिक 18,190 1-1 अध्यापक वाले स्कूल थे। इसके बाद उत्तर प्रदेश (15,699) और राजस्थान (12,029) का स्थान आता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘बाल विहार’ के नाम से चलाए जा रहे ‘एकल अध्यापक’ वाले स्कूल में बुनियादी ढांचे के नाम पर कुछ भी नहीं है और वहां पांच कक्षाओं को मात्र एक ही अध्यापक पढ़ा रहा है। 

बच्चों को पढ़ाने के लिए उसने ‘एक दिन एक विषय’ का नियम बना रखा है। वह सभी कक्षाओं के छात्रों को बारी-बारी से विभिन्न विषय पढ़ाता है। सोमवार को सभी को कोई एक विषय, मंगलवार को कोई अन्य विषय और इसी प्रकार सप्ताह के शेष दिनों में अलग-अलग विषय पढ़ाता है। बिहार में ‘बिहटा’ के एक सरकारी स्कूल में एक ही कमरे में पहली से पांचवीं तक की कक्षाओं में 80 छात्र पढ़ रहे हैं। वहां 2003 से तैनात एकमात्र अशोक कुमार ही मुख्याध्यापक से चपड़ासी तक के सारे दायित्व निभा रहा है और तब से आज तक यहां कुछ भी नहीं बदला। 

शिक्षा की इस बदहाली पर ‘सैंटर फार चाइल्ड राइट्स’ की प्रोग्राम आफिसर (चिल्ड्रन एंड गवर्नैस) अनीशा घोष का कहना है, ‘‘यदि यही स्थिति जारी रही तो देश में समरूप प्राथमिक शिक्षा प्रणाली लागू करने का लक्ष्य 2030 तक भी पूरा नहीं किया जा सकेगा जो 2015 में पूरा हो जाना चाहिए था।’’ 

किसी भी देश की प्रगति के लिए उसकी युवा पीढ़ी का बौद्धिक और शारीरिक रूप से मजबूत होना बहुत जरूरी है। यदि शुरूआती चरण में ही बच्चे स्तरीय शिक्षा से वंचित रह जाएंगे तो नींव ही कमजोर रह जाने के कारण ऊंची कक्षाओं में उनसे उच्च शिक्षा स्तर की आशा कदापि नहीं की जा सकती और वे देश के लिए उपयोगी नागरिक सिद्ध नहीं हो सकते। ऐसे में प्राइमरी व सैकेंडरी चरण पर ही स्कूलों का बुनियादी ढांचा मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है ताकि शुरू से ही बच्चों की शिक्षा का स्तर उन्नत हो सके और वे बड़े होकर उपयोगी नागरिक सिद्ध हों। —विजय कुमार

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