Edited By ,Updated: 18 Jun, 2019 03:29 AM
एक चैरीटेबल संगठन की ओर से हाल ही में परिजनों द्वारा अपने बुजुर्गों की देखभाल और सेवा बारे ‘विश्व बुजुर्ग दुव्र्यवहार जागरूकता दिवस’(15 जून) पर करवाए सर्वेक्षण में बुजुर्गों की दयनीय हालत सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 35 प्रतिशत संतानें अपने...
एक चैरीटेबल संगठन की ओर से हाल ही में परिजनों द्वारा अपने बुजुर्गों की देखभाल और सेवा बारे ‘विश्व बुजुर्ग दुव्र्यवहार जागरूकता दिवस’(15 जून) पर करवाए सर्वेक्षण में बुजुर्गों की दयनीय हालत सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 35 प्रतिशत संतानें अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहतीं और उन्हें बड़ा बोझ समझने लगी हैं। इसीलिए बुजुर्गों के साथ सर्वाधिक दुव्र्यवहार की घटनाएं सामने आ रही हैं। अत: या तो आजकल की संतानें उनसे अलग रहने लगी हैं या उन्हें किसी ओल्ड एज होम में छोड़ जाती हैं जिससे वहां बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है।
इन लोगों के अनुसार अपने बुजुर्गों की देखभाल और सेवा करने में वे कतई प्रसन्नता एवं संतोष का अनुभव नहीं करते जबकि लगभग 14 प्रतिशत लोगों के अनुसार वे उन्हें भारी बोझ मानते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘अपने वयस्क बच्चों के हाथों अपमान और उपेक्षा सहने के बावजूद लगभग 82 प्रतिशत बुजुर्ग इस उम्मीद में परिवार में ही रहना पसंद करते हैं कि शायद कभी संतान का नजरिया बदल जाएगा।’’
‘‘संतानों के व्यवहार में आमतौर पर अपने बुजुर्गों के प्रति प्रेम का अभाव पाया जाता है। सर्वे में शामिल लगभग आधे लोगों ने कहा कि उन्हें अपने बुजुर्गों के इलाज व दवादारू पर खर्च करना पड़ता है जबकि एक-चौथाई लोगों ने कहा कि काम की थकान व अन्य परेशानियों के कारण वे अपने बुजुर्गों से आक्रामक व्यवहार करते और उन पर गुस्सा निकाल बैठते हैं।’’
बुजुर्गों की अनदेखी की एक वजह सोशल मीडिया भी है क्योंकि आजकल लोग सोशल मीडिया पर इतने व्यस्त रहते हैं कि वे घर के बुजुर्गों से बात ही नहीं करते और न कभी उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। उक्त रिपोर्ट से स्पष्टï है कि भारत में आज अधिकांश बुजुर्गों की स्थिति कितनी दयनीय हो गई है। इसीलिए केंद्र व राज्य सरकारों ने ‘अभिभावक और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण’ कानून बनाए हैं परंतु इन कानूनों तथा अपने अधिकारों की अभी तक ज्यादा बुजुर्गों को जानकारी नहीं है। अत: इन कानूनों का व्यापक प्रचार करने की आवश्यकता है ताकि बुजुर्गों को अपने अधिकारों का पता चले और उन्हें जीवन की संध्या में अपनी ही संतानों की उपेक्षा का शिकार न होना पड़े।—विजय कुमार