दिल्ली के 576 सरकारी बंगलों पर हारे हुए राजनेताओं व सेवानिवृत्त अधिकारियों का कब्जा

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2020 12:52 AM

576 govt bungalows in delhi occupied by loser politicians and retired officials

सेवानिवृत्ति के बाद नौकरशाह और चुनाव हारे राजनेता सरकारी बंगलों का मोह त्याग नहीं पाते व उन पर अवैध कब्जा जमाए रहते हैं। हालांकि पूर्व सांसदों को अपना बंगला लोकसभा भंग होने के एक महीने के भीतर खाली करना पड़ता है परंतु इस नियम का पालन भी आमतौर पर...

सेवानिवृत्ति के बाद नौकरशाह और चुनाव हारे राजनेता सरकारी बंगलों का मोह त्याग नहीं पाते व उन पर अवैध कब्जा जमाए रहते हैं। हालांकि पूर्व सांसदों को अपना बंगला लोकसभा भंग होने के एक महीने के भीतर खाली करना पड़ता है परंतु इस नियम का पालन भी आमतौर पर नहीं होता। राजधानी दिल्ली के लुटियन्स जोन के अलावा अन्य भागों में भी 576 सरकारी बंगलों पर सेवानिवृत्त अधिकारियों और पूर्व सांसदों-विधायकों का अवैध कब्जा बना हुआ है। 

कुछ मामलों में तो अलाटियों की मृत्यु भी हो चुकी है और उनके वारिस इन बंगलों में रह रहे हैं। इनमें से कई लोगों ने तो 1998 अर्थात 20 से भी अधिक वर्षों से सरकारी आवासों पर कब्जा जमा रखा है और उनमें से अनेक पर 95-95 लाख रुपए तक या उससे भी अधिक राशि भी बकाया हो चुकी है। उक्त मामले में सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस सी. हरिशंकर ने केंद्रीय शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय को कड़ी फटकार लगाई और इसे मंत्रालय के अधिकारियों की अक्षमता, सुस्त रवैया, मिलीभगत व आई.पी.सी. के अंतर्गत साजिश बताया। उन्होंने संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध संभावित एफ.आई.आर. दर्ज करने की चेतावनी दी तथा आवास मंत्रालय के सचिव पर 10,000 रुपए जुर्माना भी लगाया है। 

अदालत ने कहा कि ‘‘यदि कोई सरकारी आवास में अधिक समय तक रहा तो उसे हटाने के लिए पंचवर्षीय योजना की आवश्यकता तो नहीं? क्या आपने बकायों की वसूली के लिए उन्हें कोई नोटिस दिए हैं?’’ मान्य न्यायाधीशों ने आदेश दिया है कि ‘‘यदि कोई स्टे नहीं है तो आपने इन्हें खाली क्यों नहीं करवाया। अत: 2 सप्ताह के भीतर अवैध कब्जाधारियों से खाली करवाया जाए और यदि कोई बंगला खाली नहीं करता है तो उसका सारा सामान सड़क पर फैंक दिया जाए। करदाताओं के पैसे से आप उन्हें वर्षों से मुफ्त मकान, बिजली और पानी दे रहे हैं।’’ 

जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से देश की जनता के मार्गदर्शन की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में यदि हमारे जनप्रतिनिधि और उच्चाधिकारी ही कानून का उल्लंघन करेंगे तो फिर आम लोगों से कानून का पालन करने की अपेक्षा करना ही बेमानी है। यदि कानून का उल्लंघन करने पर आम नागरिकों पर त्वरित कार्रवाई हो सकती है तो इन पर क्यों नहीं? लिहाजा इस मामले में सभी संबंधित पक्षों पर उचित और त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए।—विजय कुमार 

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