‘ममता की ‘तृणमूल कांग्रेस’ में मची भगदड़’ ‘बिछड़ रहे सभी बारी-बारी’

Edited By ,Updated: 19 Dec, 2020 04:49 AM

a stampede in mamta s trinamool congress

अब जबकि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने में पांच महीने ही शेष रह गए हैं, 10 वर्षों से राज्य में सत्तारूढ़ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को सत्ताच्युत करने के लिए पिछले कुछ समय से भाजपा ने अभियान चला रखा है जो हाल ही में राज्य के दौरे पर पहुंचे...

अब जबकि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने में पांच महीने ही शेष रह गए हैं, 10 वर्षों से राज्य में सत्तारूढ़ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को सत्ताच्युत करने के लिए पिछले कुछ समय से भाजपा ने अभियान चला रखा है जो हाल ही में राज्य के दौरे पर पहुंचे भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा पर ‘हमले’ के बाद और तेज हो गया है। इसी सिलसिले में राज्यपाल जगदीप धनखड़ की रिपोर्ट पर गृह मंत्रालय द्वारा राज्य के मुख्य सचिव और डी.जी.पी. को दिल्ली तलब करने और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नड्डा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार 3 वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारियों को डैपुटेशन पर दिल्ली बुलाने और ममता बनर्जी द्वारा इससे इंकार करने पर भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस में कटुता और भी बढ़ गई है। 

मई, 2021 में संभावित विधानसभा चुनावों को जीतने के लिए दोनों ही मुख्य दलों की तैयारियों से स्पष्ट है कि इनमें न तृणमूल कांग्रेस पीछे रहना चाहती है और न ही राज्य पर पहली बार अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिशों में भाजपा कोई कमी रहने देना चाहती है। इसीलिए भाजपा के शीर्ष नेता राज्य के ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। इसी कड़ी में जहां कुछ ही समय के भीतर गृह मंत्री अमित शाह दूसरी बार 19 और 20 दिसम्बर को बंगाल के दौरे पर आ रहे हैं तथा अनेक केंद्रीय मंत्री व नेता यहां आने के लिए कतार में हैं। इस प्रकार एक ओर ममता बनर्जी को केंद्र के साथ टकराव और भाजपा द्वारा उनके और उनकी सरकार के विरुद्ध चलाए जा रहे जोरदार अभियान का सामना करना पड़ रहा है तो दूसरी ओर ममता के भरोसेमंद पार्टी नेताओं की एकाएक बढ़ी नाराजगी से उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। 

जहां ममता के विरोधी राज्य में लाकानूनी और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रहे हैं वहीं ममता से नाराज नेता पार्टी में अपनी बात न सुनी जाने का आरोप लगा रहे हैं तथा ममता के भतीजे और उत्तराधिकारी तथा ‘डायमंड हार्बर संसदीय सीट’ से सांसद ‘अभिषेक बनर्जी’ के विरुद्ध भी पार्टी काडर में रोष व्याप्त है। पिछले कुछ समय के दौरान अनेक तृणमूल सदस्य ममता बनर्जी को अलविदा कह चुके हैं जिनमें से एक पूर्व मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बहुत पहले ही तृणमूल कांग्रेस से नाता तोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया था और अब पिछले 48 घंटों में तृणमूल कांग्रेस के 4 विधायकों सहित पार्टी के कम से कम 9 नेता ममता का साथ छोड़ गए हैं। 

* 16 दिसम्बर को ममता बनर्जी के तीन बड़े भरोसेमंद साथियों ने उनसे नाता तोड़ लिया। सबसे पहले ममता को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने में भूमिका निभाने वाले नेता, मंत्री और ‘क्राऊड पुलर’ शुभेंदु अधिकारी, जिन्हें पार्टी में सबसे प्रभावशाली नेता माना जाता था, ने अपने सभी पदों से त्यागपत्र देकर धमाका कर दिया।
* 17 दिसम्बर को ‘साऊथ बंगाल स्टेट ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन’ के अध्यक्ष ‘दीप्तांगशु चौधरी’ ने इस्तीफा देते हुए कहा कि अब मुझे ममता से मिलने की जरूरत ही नहीं। 
* 17 दिसम्बर को ही विधायक जितेंद्र तिवारी ने पार्टी की सदस्यता और पश्चिम वद्र्धमान जिले के पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ते हुए अपने कार्यालय पर कुछ लोगों द्वारा तोड़-फोड़ करने का आरोप लगाया और कहा‘‘नगर निकाय मामलों के मंत्री ‘फिरहद हकीम’ जैसे चाटुकार पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं।’’ 

* 18 दिसम्बर को बैरकपुर विधानसभा सीट से तृणमूल विधायक शीलभद्र दत्त ने भी पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। शीलभद्र दत्त पिछले कुछ समय से ‘राजनीतिक रणनीतिकार’ के रूप में कुछ अन्य पाॢटयों के लिए काम कर रहे ‘प्रशांत किशोर’ द्वारा ‘तृणमूल कांग्रेस’ मामलों में हस्तक्षेप का विरोध करते आ रहे थे। 
* 18 दिसम्बर को ही मिदनापुर से तृणमूल कांग्रेस की विधायक ‘बनाश्री मैती’ ने भी पार्टी छोडऩे की घोषणा कर दी। 

उपरोक्त लगभग सभी नेताओं ने ममता बनर्जी के स्वभाव के साथ तालमेल न बन पाने की शिकायत की है। पार्टी को अलविदा कहने वाले अनेक तृणमूल नेता अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं परंतु ऐसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि 19-20 दिसम्बर की अमित शाह की कोलकाता यात्रा के दौरान ममता बनर्जी की पार्टी के अनेक बागी नेता भाजपा का दामन थाम सकते हैं। ममता बनर्जी ने अपने शासन काल के दौरान 8 साल तक तो बंगाल में काफी काम किया और पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की तरह काफी ख्याति प्राप्त की लेकिन पिछले कुछ समय से उन्हें मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है और पार्टी के मुस्लिम नेताओं के अलावा दूसरे बड़े नेता भी उनका साथ छोड़ रहे हैं, ऐसे में आने वाले दिनों में ममता बनर्जी को चुनाव के दौरान गंभीर राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 

हालांकि ममता बनर्जी की छवि जुझारू राजनेता की रही है और उन्होंने युवा अवस्था में कांग्रेस के भीतर अपनी जगह बनाई व कांग्रेस को छोडऩे के बाद तृणमूल कांग्रेस को चलाया और फिर वाम दलों से लम्बे संघर्ष के बाद बंगाल की सत्ता हासिल की। अब उनका मुकाबला पहले से ज्यादा आक्रामक भाजपा के साथ है और यदि वह इस जंग में जीत जाती हैं तो देश की राजनीति में एक बड़ा धमाका होगा।-विजय कुमार

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