आखिर भाजपा अपने सहयोगी दलों को क्यों नहीं संभाल पा रही!

Edited By ,Updated: 14 Nov, 2019 03:27 AM

after all why the bjp is unable to handle its allies

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ और उन्होंने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया। श्री वाजपेयी ने...

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ और उन्होंने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया। 

श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया परंतु उनके सक्रिय राजनीति से हटने के बाद से अब तक भाजपा के कई गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए हैं और यह गठबंधन आधा दर्जन से भी कम दलों तक सिमट गया है। यहां तक कि भाजपा की सबसे पुरानी गठबंधन सहयोगी शिवसेना ने भी भाजपा नेतृत्व से नाराज होकर इससे अपना तीस वर्ष पुराना नाता तोड़ लिया है और इसके नेता उद्धव ठाकरे ने 24 जून, 2013 को भाजपा नेतृत्व को अपने सहयोगियों का मान रखने की नसीहत देते हुए कहा था कि : ‘‘मित्र वृक्षों की तरह नहीं बढ़ते, उनका पोषण करना होता है। यदि कोई व्यक्ति उस वृक्ष की शाखाओं को ही काट देगा तो उसे सही मित्र कैसे मिल पाएगा!’’ 

न सिर्फ नई महाराष्टï्र सरकार में सत्ता की भागीदारी पर सहमति न बन पाने के कारण शिवसेना ने भाजपा से किनारा करके वहां राकांपा और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाने की कवायद शुरू कर रखी है बल्कि बिहार, झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश और केरल में भी भाजपा के गठबंधन सहयोगियों में बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं। बिहार में भाजपा के गठबंधन सहयोगी जद (यू) के नेता नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन सिर्फ बिहार तक ही सीमित है। झारखंड में 30 नवम्बर से पांच चरणों में 81 विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे चुनावों में जद (यू) के नेता नीतीश कुमार ने राजग से अलग होकर अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा कर रखी है। 

झारखंड में ही भाजपा द्वारा अपने 20 वर्ष पुराने गठबंधन सहयोगी ‘आल झारखंड स्टूडैंट यूनियन’ (आजसू) की उपेक्षा करने पर ‘आजसू’ ने भाजपा के विरुद्ध अपने 12 उम्मीदवार उतार दिए हैं। ‘आजसू’ नेताओं का आरोप है कि उन्होंने इन चुनावों में उन सीटों के लिए दावेदारी की थी जिन पर उनकी पार्टी 2014 में विजयी अथवा दूसरे स्थान पर रही। इनके अनुसार बातचीत के बाद भी ‘आजसू’ के दावे को भाजपा खारिज करती रही जिस कारण उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया है। ‘आजसू’ के भाजपा से अलग होने के बाद भाजपा के अनेक नेता ‘आजसू’ में चले गए हैं। झारखंड में राजग की एक अन्य सहयोगी ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ (लोजपा) ने भी अकेले ही चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान, जिन्हें कुछ ही दिन पूर्व ‘लोजपा’ का अध्यक्ष बनाया गया है, ने कहा है कि वह इस बार ‘टोकन’ के रूप में दी गई सीटें स्वीकार नहीं करेंगे। 

चिराग पासवान के अनुसार उन्होंने 6 सीटें मांगी थीं लेकिन भाजपा ने उनकी मांग न मानी और अपने 52 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी जिस पर ‘लोजपा’ ने भी 50 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। असम में गठबंधन सहयोगी ‘आल असम स्टूडैंट्स यूनियन’ (आसू) एन.आर.सी. के प्रश्र पर भाजपा से नाराज है तो उत्तर प्रदेश में ‘अपना दल’ भी मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व के प्रश्र को लेकर भाजपा नेतृत्व से नाराज दिखाई देता है।  केरल में भी भाजपा की नवीनतम गठबंधन सहयोगी पार्टी ‘केरल जन पक्षम (सैकुलर)’ खुलकर इसके विरोध में आ गई है और इसके नेता तथा 7 बार के विधायक पी.सी. जार्ज ने कहा है कि उनके लिए यह कहना मुश्किल है कि उनकी पार्टी कब तक राजग में बनी रहेगी। 

केरल में बड़ी धूमधाम से भाजपा का दामन थामने वाले पी.सी. जार्ज ने कहा है कि ‘‘यह बात मेरी समझ से बाहर है कि भाजपा की केरल इकाई के साथ क्या गड़बड़ है। सभी पाॢटयां चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार खड़े करती हैं पर यह पार्टी चुनाव हारने के लिए उम्मीदवार खड़े करती है।’’ भाजपा व सहयोगी दलों में बढ़ रही दूरी निश्चय ही भाजपा के हित में नहीं है। अत: जितनी जल्दी भाजपा नेतृत्व सहयोगी दलों के साथ आपस में मिल-बैठ कर मतभेद दूर कर सके भाजपा तथा सहयोगी दलों के लिए उतना ही अच्छा होगा। भाजपा नेतृत्व को मानना होगा कि इस तरह पुराने साथी खोना पार्टी और राजग को कमजोर ही करेगा।—विजय कुमार 

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