अमरीकी सैनिकों के बाद रूस और चीन की नजर अफगानिस्तान पर

Edited By shukdev,Updated: 24 Dec, 2018 12:18 AM

after the us troops the eyes of russia and china on afghanistan

सीरिया से अमरीकी सैनिकों की वापसी के फैसले के तुरंत बाद अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान से बड़ी संख्या मेें अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है। एक अमरीकी अधिकारी के अनुसार अफगानिस्तान में मौजूद 14000 के लगभग अमरीकी...

सीरिया से अमरीकी सैनिकों की वापसी के फैसले के तुरंत बाद अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान से बड़ी संख्या मेें अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है। एक अमरीकी अधिकारी के अनुसार अफगानिस्तान में मौजूद 14000 के लगभग अमरीकी सैनिकों में से बड़ी संख्या में (लगभग 50 प्रतिशत अर्थात 7000) सैनिकों को अफगानिस्तान से अगले 2 महीनों में वापस बुला लिया जाएगा।

इस रिपोर्ट से पहले वीरवार को ट्रम्प के रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। माना जाता है कि वह अफगानिस्तान व सीरिया में सैनिक रखने के पक्ष में थे। वह ऐसे अंतिम जरनैल थे जो वहां से सेना हटाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन सुरक्षाबलों की कटौती के बारे में अमरीकी रक्षा अधिकारियों ने अभी पुष्टिï नहीं की है।

सरकारी व सैन्य ठिकानों पर लगातार हमले करते आ रहे तालिबानी अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्से (लगभग 70 प्रतिशत) में सक्रिय हैं। इन्होंने 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन किया जिस दौरान उन्होंने वहां कठोर शरिया कानून लागू किए जिनमें सार्वजनिक फांसी देना, अंग-भंग करना व महिलाओं के सार्वजनिक जीवन में भाग लेने पर रोक लगाना शामिल था।

अमरीका 2001 में 9/11 के हमलों के बाद से ही अफगानिस्तान में मौजूद है। अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लाडेन ने 9/11 का हमला करवाने का दावा किया था। राष्ट्रपति बुश द्वारा किए इस हमले में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता गंवा दी और करीब 10 वर्षों के इंतजार के बाद ओसामा अमरीका को पाकिस्तान में मिला और 2 मई, 2011 को जलालाबाद के ऐबटाबाद में उसे अमरीकी नेवी के सील कमांडो ने मार गिराया था।

आधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान में अमरीकी नेतृत्व वाले युद्ध अभियान 2014 में समाप्त हो गए थे लेकिन इसके बाद से वहां तालिबान की ताकत में काफी वृद्धि हुई, लिहाजा अमरीका ने वहां स्थिरता कायम करने के दृष्टिगत न केवल अपने सैनिकों को वहां रोके रखा है बल्कि अफगान सेना को शस्त्र देने के अलावा उनका मनोबल भी बढ़ा रहे हैं।

बहरहाल अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के प्रवक्ता के अनुसार अफगानिस्तान से अमरीकी सेनाएं हटाने का सुरक्षा की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। परंतु हाल ही की एक अमरीकी सैन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि युद्ध द्वारा विस्थापित हुए हजारों अफगानी नागरिकों को यह भय है कि शायद वे कभी अपने घरों को नहीं लौट सकेंगेे।

रिपब्लिकन सीनेटर ​लिंडसे ग्राहम ने कहा है कि सैनिकों की वापसी ‘‘एक अन्य  9/11’’ की ओर मार्ग प्रशस्त कर सकती है। उन्होंने अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी को एक उच्च जोखिम वाली रणनीति बताया है। उन्होंने ट्विटर पर कहा है कि ‘‘हम अपने सभी लाभों के नुक्सान की स्थापना कर रहे हैं।’’

दूसरी ओर अमरीकी मिथक टैक विल्सन सैंटर के उपनिदेशक माइकल कगलमैन का कहना है कि ‘‘अमरीकी सेनाओं की वापसी का प्रभाव विनाशकारी हो सकता है। वहां बड़े पैमाने पर ङ्क्षहसा हो सकती है जो तालिबान के लिए बड़ी फायदे की स्थिति होगी। यह तालिबानी प्रचार की जीत होगी क्योंकि वह यह दावा कर सकता है कि उसने बगैर किसी शांति समझौते के ही अमरीकी सैनिकों को देश से बाहर करने में सफलता प्राप्त की है। यह अफगान सैनिकों के लिए भी एक मनोवैज्ञानिक झटका होगा। उन्होंने वहां बहुत संघर्ष किया है इसलिए उनके लिए यह फैसला निराशाजनक होगा।’’

जहां तक इस फैसले का भारत पर पडऩे वाले प्रभाव का संबंध है भारत का अफगानिस्तान में अरबों डालर का निवेश और हिस्सेदारी है। अफगानिस्तान में अमरीकी सैनिकों के न रहने से तालिबान सक्रिय होगा और पाकिस्तान भी आतंकवाद का सहारा लेकर अफगानिस्तान को निशाना बनाएगा। पाकिस्तान की शह पर वहां सक्रिय आतंकवादी अफगानिस्तान में रहने वाले भारतीयों, कम्पनियों और परियोजनाओं को विशेष रूप से निशाना बनाएंगे।

गौरतलब है कि अमरीका के अफगानिस्तान में आने से पहले रूसी सेनाएं वहां अपना वर्चस्व बनाए हुए थीं और यह स्थिति अब दोबारा बन सकती है परंतु इस बार चीन भी तालिबान को सहायता देकर अफगानिस्तान में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है। 

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