Edited By ,Updated: 12 Sep, 2019 01:02 AM
बर्दवान के एक गांव में एक घर का प्रांगण सैंकड़ों विद्याॢथयों के लिए एक कक्षा में बदल गया है। उनमें से अधिकतर ऑसग्राम से तथा आसपास के गरीब जनजातीय परिवारों से आते हैं, जो बर्दवान नगर से 46 किलोमीटर दूर है। विद्याॢथयों की फीस 1 रुपया प्रति वर्ष...
बर्दवान के एक गांव में एक घर का प्रांगण सैंकड़ों विद्यार्थियों के लिए एक कक्षा में बदल गया है। उनमें से अधिकतर ऑसग्राम से तथा आसपास के गरीब जनजातीय परिवारों से आते हैं, जो बर्दवान नगर से 46 किलोमीटर दूर है। विद्यार्थियों की फीस 1 रुपया प्रति वर्ष है। रामनगर उच्च माध्यमिक विद्यालय के पूर्व हैडमास्टर 76 वर्षीय सुजीत चट्टोपाध्याय ने 2004 में हुई अपनी सेवानिवृत्ति को विद्यार्थियों के जीवन को छूने के बीच बाधा नहीं बनने दिया। गत दिवस उन्होंने नजरुल मंच पर डा. (श्रीमती) एन.बी. ओ’ब्रायन स्मारकीय लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड प्राप्त किया।
वह अभी भी अपनी आधी पैंशन अपने विद्यार्थियों पर खर्च करते हैं। चट्टोपाध्याय ने कहा कि उन्हें अपनी अत्यंत कम ट्यूशन फीस को लेकर कोई अफसोस नहीं है। उन्होंने गर्वपूर्वक अपने स्कूल का नाम सदाई फकीरर पाठशाला यानी अविनाशी फकीर का स्कूल रखा है मगर चट्टोपाध्याय अपने ‘स्कूल’ में इतिहास, बंगाली, अंग्रेजी तथा संस्कृत पढ़ाने से अधिक के लिए दृढ़संकल्प हैं। वह थैलेसीमिया रोगियों के लिए धन एकत्र करने के अपने प्रयासों में उन्हें शामिल करके उनको मानवता का पाठ भी पढ़ाते हैं।
2015 में उन्होंने एक पड़ोसन को रोते देखा क्योंकि वह अपने बेटे के उपचार का खर्च वहन नहीं कर सकती थी, जिसको हाल ही में थैलेसीमिया बीमारी होने बारे पता चला था। तब चट्टोपाध्याय ने अपने विद्यार्थियों को अपनी वार्षिक पिकनिक के लिए इकट्ठे किए गए धन का आधा हिस्सा लड़के के उपचार हेतु देने का आग्रह किया। वे सहमत हो गए और तब से उन्होंने प्रति वर्ष 35,000 रुपए की राशि इकट्ठी की है।
चट्टोपाध्याय ने बताया कि अपने विद्यार्थियों तथा पड़ोसियों द्वारा उन्हें ‘मास्टरमोशाय’ बुलाया जाना सुनकर खुशी होती है लेकिन किसी मंच द्वारा उन्हें पहचान मिलना अत्यंत उत्साहवद्र्धक है। जो एक चीज वह चाहते हैं वह है प्रांगण में उनके विद्यार्थियों के लिए अधिक पैडस्टल पंखे। अभी वहां एक ही पंखा लगा है जो पास बैठे अध्यापक तथा विद्यार्थियों की ओर घूमता रहता है। (टी)