Edited By ,Updated: 25 Nov, 2019 01:24 AM
‘चेहरों को पहचानने’ को लेकर लड़ाई चीनी युवाओं द्वारा ही नहीं, अमेरिकी युवाओं द्वारा भी छेड़ी जा चुकी है। कानून के रखवालों, सरकार, यहां तक सार्वजनिक सेवाओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे ‘फेशियल रैकॉग्निशन’ यानी चेहरे पहचानने वाले सॉफ्टवेयर को लेकर सभी...
‘चेहरों को पहचानने’ को लेकर लड़ाई चीनी युवाओं द्वारा ही नहीं, अमेरिकी युवाओं द्वारा भी छेड़ी जा चुकी है। कानून के रखवालों, सरकार, यहां तक सार्वजनिक सेवाओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे ‘फेशियल रैकॉग्निशन’ यानी चेहरे पहचानने वाले सॉफ्टवेयर को लेकर सभी में उबाल है।
चीन में युवा इसका विरोध और कई जगहों पर इसे स्वीकार करने से भी इंकार कर रहे हैं। वहां बसों तथा ट्रेनों में इनका इस्तेमाल शुरू किया जा रहा है। इसके बाद यदि कोई व्यक्ति टिकट लिए बिना ट्रेन में सवार होता है तो उसका चेहरा स्कैन होते ही टिकट के पैसे उसके क्रैडिट कार्ड से कट जाएंगे। यहां बहस इस मुद्दे पर है कि सरकार के पास व्यक्ति की सारी जानकारी जा रही है।
अमेरिका में चेहरा पहचाने वाला सिस्टम ‘बायोमैट्रिक सॉफ्टवेयर’ का उपयोग करता है। इसके लिए व्यक्ति के चेहरे के नाक-नक्श को वीडियो या फोटो से रिकॉर्ड करके डाटाबेस में सेव कर लिया जाता है ताकि पुलिस व्यक्ति की हर हरकत पर नजर रख सके फिर चाहे वह स्कूल या कॉलेज जाता है या फिल्म देखने। इस बीच कैलीफोर्निया राज्य में पुलिस को बॉडी कैमरों में चेहरा पहचानने वाली तकनीक का उपयोग करने से अस्थायी रूप से रोकने के लिए एक कानून पहले ही पास कर दिया गया है।
हालांकि, एप्पल के आईफोन्स में उन्हें अनलॉक करने के लिए भी ‘फेस आई.डी. फेशियल रैकॉग्निशन ऑथैंटिकेशन सिस्टम’ का उपयोग हो रहा है परंतु विज्ञापकों को इस तरह के डाटा बेचने वाली निजी कम्पनी के हाथ ऐसी जानकारी लगने पर इसके काफी नुक्सान हो सकते हैं। इतना ही नहीं, इस डाटा को सरकारी एजैंसियों के पास छोडऩे का मतलब है वह विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी, घूमने-फिरने की आजादी तथा अपने बचाव की आजादी को खो देंगे। सरकार का कहना है कि इस तरह का डाटा अपराधियों को पकडऩे तथा अवैध आप्रवासियों को देश से दूर रखने में मदद करेगा परंतु लोगों को लगता है कि ड्राइविंग लाइसैंस, नैशनल आई.डी., क्रैडिट इंफॉर्मेशन सहित इस तरह का सारा रिकॉर्ड सरकार के पास होना बेहद नुक्सानदायक हो सकता है।
अमेरिका के एम.आई.टी. इंस्टीच्यूट में हुए ‘जैंडर शेड्स’ नामक एक शोध से साबित हुआ है कि ‘फेशियल रैकॉग्निशन’ के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करना आसान हो सकता है क्योंकि चेहरों से व्यक्ति की वित्तीय स्थिति से लेकर धर्म तक का पता लग सकता है। गत वर्ष ए.सी.एल.यू. ने ‘फेशियल रैकॉग्निशन’ के अपने अध्ययन में पाया कि सॉफ्टवेयर ने कांग्रेस के 28 सदस्यों की गलत पहचान की थी। कम से कम न्यूयॉर्क तथा सान फ्रांसिस्को की अदालतें स्कूलों में ‘फेशियल रैकॉग्निशन सिस्टम्स’ को बैन कर रही हैं। इसे लेकर आम भय है कि मशीनों को अत्यधिक अधिकार तथा निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करना नुक्सानदायक होगा क्योंकि मशीनों के पास किसी तरह की तार्किक समझ-बूझ नहीं होती और कम्प्यूटरों से यह जानकारी पुलिस को उपलब्ध करवाई जाएगी जहां आसानी से इसका उपयोग लोगों को दबाने या प्रताडि़त करने के लिए हो सकता है।
इस तकनीक के दुरुपयोग का भय ही है कि एमेजॉन जैसी कम्पनी के कर्मचारी तक अपने संस्थापक जैफ बेजोस को यह टैक्नोलॉजी तैयार करने से मना कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ माइक्रोसॉफ्ट और आई.बी.एम. के कर्मचारी भी कर रहे हैं परंतु फिर भी चेहरा पहचानने वाला यह सॉफ्टवेयर अमेरिका का के कई एयरपोट्र्ïस पर इस्तेमाल होना शुरू हो चुका है।